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Written By WD

जिका वायरस से जुड़े मुख्य तथ्य

जिका वायरस से जुड़े मुख्य तथ्य - Zika Virus
जिका वायरस, इन दिनों चारों तरफ इसी का आतंक मचा है। इस रहस्यमयी वायरस ने सबकी नींद हराम कर दी है। वास्तव में यह वायरस सबसे पहले बंदरों में देखा गया था। वर्ष 1947 में यूगांडा स्थित जिका के जंगलों में जो बंदर थे वह इस वायरस से संक्रमित थे और इसी वजह से इस वायरस का नाम जिका पड़ा था।


 


वर्ष 1954 में पहली बार इंसानों के शरीर में इस वायरस के लक्षण देखे गए। हालांकि कई दशकों तक कभी भी यह वायरस मानव जाति के लिए बड़े खतरे के तौर पर सामने नहीं आया। इस वजह से कभी भी वैज्ञानिकों ने इसकी वैक्सीन को विकसित करने के बारे में नहीं सोचा।

इस वायरस को वर्ष 2007 में कैरीबियन कंट्री माइक्रो‍नेशिया के एक आईलैंड याप में देखा गया और यहां से यह वायरस लैटिन अमेरिकी देशों की ओर बढ़ता गया। दिसंबर 2015 में लैटिन अमेरिकी देश प्यूर्टो रिको में इसका पहला लक्षण दिखा। 

जिका आरएनए वायरस से संबंधित है। डब्ल्यूएचओ के अनुसार अगर किसी व्यक्ति को इस वायरस से संक्रमित मच्छर काट लेता है तो उस व्यक्ति में इसके वायरस आते हैं। इसके बाद जब कोई और मच्छर उन्हें काटता है तो उस मच्छर में फिर से यह वायरस प्रवेश कर जाता है। इस तरह से यह वायरस एक जगह से दूसरी जगह फैल जाता है। 
 
डब्ल्यूएचओ ने इस बीमारी को लेकर पूरी दुनिया में अलर्ट जारी कर दिया है। यह अलर्ट खासतौर पर उत्तरी और दक्षिणी अमेरिकी देशों के लिए है। ब्राजील की सरकार की ओर से कहा गया है कि यह उनके देश में फैली अब तक की सबसे खतरनाक बीमारी है
 
मच्छरों के जरिए फैलने वाले इस वायरस से बच्चों में मस्तिष्क का विकास रुक जाता है और मस्तिष्क का आकार भी सामान्य से छोटा हो जाता है। 

ब्राजील में अक्टूबर से अब तक इसके 4,120 संदिग्ध केस आ चुके हैं। इनमें से 270 की लैब टेस्ट में पुष्टि हो चुकी है। बताया जा रहा है कि करीब 40 लाख लोग इसके शिकार हो सकते हैं। 




वायरस की वजह से होने वाले बुखार से पीड़ित व्यक्ति के शरीर में दर्द रहता है, आंखों में सूजन होती है, उसे ज्वांइट पेन रहता है और साथ ही शरीर में चकत्ते पड़ जाते हैं। कभी-कभी तो इसके लक्षण कुछ लोगों में नजर ही नहीं आते हैं। कभी-कभी इस वायरस से संक्रमित व्यक्ति पैरालैसिस का शिकार भी हो सकता है। इस बीमारी का इलाज अभी तक दुनिया तलाश नहीं पाई है। 

वैज्ञानिकों का कहना है कि इसकी वैक्सीन तैयार होने में कम से कम दो वर्ष का समय लगेगा। लेकिन एक दशक बाद वैक्सीन को आम लोगों तक पहुंच पाएगी।


न्यूरोलॉजिस्ट कहते हैं कि ट्रैवलर्स के साथ इस वायरस के आने की संभावना काफी कम है। वह कहते हैं कि एक एडल्ट मच्छर बहुत ही नाजुक होता है और उसकी मौत की संभावना बढ़ जाती है। ऐसे में इस वायरस की संभावना भी घट जाती है।