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Last Updated : बुधवार, 24 जून 2015 (11:53 IST)

दुबले-पतले भी हो सकते हैं दिल के मरीज...

दुबले-पतले भी हो सकते हैं दिल के मरीज... - Slim, heart disease, diabetes, India
ज्यादातर माना जाता है कि मोटे लोगों को ही दिल की बीमारी होती है, लेकिन अगर आपको पता चले कि दुबले-पतले लोग भी इन बामीरियों का शिकार हो सकते हैं तो आपकी प्रतिक्रिया क्या होगी?

शायद  आप यकीन न करें  लेकिन अगर आप सोच रहे हैं कि आप दुबले-पतले हैं और दिल की बीमारी और डायबिटीज के खतरे से दूर हैं तो आप गलत हैं, क्योंकि यह बीमारी आपको भी हो सकती है। 
 
आपने लोगों को हमेशा यह कहते सुना होगा कि हमें चिकनाई वाली चीजों का सेवन कम करना चाहिए  और फास्ट फूड और सॉफ्ट ड्रिंक से जितना दूर रहें, उतना ही बेहतर है। साथ ही हमें दौड़ते वक्त अपने  जूतों के फीते अच्छी तरह से बांधने चाहिए। इससे हमारा हार्ट (दिल) मजबूत, शरीर दुबला-पतला और  ब्लड शुगर सही रहता है। 
 
लेकिन क्या इतना करने से आप दिल संबंधी बीमारियों से बच सकते हैं। अगर आप ऐसा सोचते हैं तो  आप गलत हैं, क्योंकि एक अध्ययन के मुताबिक दक्षिण एशिया के रहवासी होने से ही आपमें दिल का  दौरा पड़ने की आशंकाएं बढ़ जाती हैं। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप दुबले-पतले हैं, धूम्रपान नहीं  करते, वेजेटीरियन हैं या नॉन वेजेटीरियन। आप इस बीमारी के खतरे के बराबर दूरी पर हैं। सिर्फ भारतीय  होने से आप इस खतरे के बेहद नजदीक हैं। 
 
यूएस के एचएमओ संगठन ने पाया कि दिल की बीमारी और डायबिटीज से जूझ रहे लोग सबसे ज्यादा  भारत में हैं। इन बीमारियों से जूझ रहे भारत के लोगों की संख्या चीन के मरीजों से 6 गुना ज्यादा है।  

1. भारत में भौगौलिक स्थिति के हिसाब से लोगों को 50 से 400 प्रतिशत तक दिल संबंधी रोग व  डायबिटीज होने की आशंका होती है। 
 
2. वहीं कई लोगों का सोचना है कि दिल संबंधी बीमारी सिर्फ पुरुषों को होती है, लेकिन भारत में पुरुषों  की ही तरह महिलाओं को भी इस तरह की बीमारियों से जूझना पड़ता है। 
 
3. अगर कोई वेजेटीरियन है तो इसका मतलब यह नहीं है कि उसको इस तरह की बीमारी होने का  खतरा कम हो जाता है, बल्कि वेजेटीरियन और नॉन-वेजेटीरियन में इस तरह की बीमारी होने का खतरा  बराबर होता है। 
 
4. अगर आप दुबले-पतले और फिट हैं तो ये मत सोचिए कि आपको दिल संबंधी बीमारी और डायबिटीज  नहीं होगी बल्कि भारत में उन लोगों को भी ये बीमारियां होती हैं जिनका बीएमआई नॉर्मल है। 
 
सबसे ज्यादा चौंकाने वाली बात यह है कि किसी स्वस्थ व जवान भारतीय को भी दिल संबंधी बीमारी  किसी भी समय हो सकती है। आधे से ज्यादा भारतीय पुरुषों को इस तरह की बीमारी 50 साल की उम्र  से ज्यादा या उससे कम व एक तिहाई लोगों को 40 साल की उम्र से ज्यादा या उससे कम उम्र में होती  है। 
 
विश्व में लोगों को ज्यादातर परंपरागत कारणों से हृदय संबधी रोग व डायबिटीज होते हैं। लेकिन ये कारक  भारतीय लोगों पर लागू नहीं होते। आइए नजर डालते हैं परंपरागत कारणों पर 

 भारतीयों में इस बीमारी के होने की संभावनाए ज्यादा क्यों होती हैं अगले पेज पर...

हृदय संबंधी बीमारियों के लिए परंपरागत कारक में ये शामिल हैं-
1. धूम्रपान
2. मोटापा
3. उच्च रक्तचाप 
4. कॉलेस्ट्रॉल का ज्यादा होना
5. अगर आप एक ही जगह बैठे रहते हों, ज्यादा काम या कसरत न करते हों।
6. पहले से आपको डायबिटीज हो।
 
टाइप 2 डायबिटीज होने के परंपरागत कारक- 
 
1. मोटापा
2. एक गतिहीन जीवनशैली 
3. ज्यादा मीठा खाते हों
4. उच्च रक्तचाप रहता हो 
5. आपको पहले से डायबिटीज हो 
 
हालांकि ये रिस्क फैक्टर विश्व में रह अन्य लोगों के लिए तो सही हैं, लेकिन भारतीयों के परिप्रेक्ष्य में ये  सही नहीं हैं, क्योंकि भारतीयों को इससे फर्क नहीं पड़ता कि वे मोटे हैं या पतले हैं या किस उम्र के हैं  उन्हें किसी भी उमर में या किसी भी दशा में ये बीमारियां घेर सकती हैं। 
 
पिछले 15 सालों में विश्व के विभिन्न संस्थानों द्वारा किए गए अध्य्यन में पाया गया है कि कुछ कारक  भारतीयों की आनुवांशिकी में पाए जाते हैं जिसकी वजह से इस तरह की बीमारियां इनको होती हैं। 
 
उदाहरण के तौर पर अगर हम दक्षिण एशियन लोगों को किसी दूसरे महाद्वीप के लोगों से तुलना करें तो  हम पाएंगे कि दक्षिण एशियाई लोगों के शरीर में एक विशेष प्रकार का प्रोटीन म्यूटेशन होता है, जो  इंसुलिन रजिस्टेंस से जुड़ा रहता है। जिसके चलते इनकी हृदय संबंधित बीमारी बीमारी होने की आशंकाएं  किसी भी कोलेस्ट्रॉल स्तर पर लगभग दुगुनी होती है।
 
अगले पेज पर इन कारकों की वजह से भारतीयों को होती हैं ये बीमारियां...

साथ ही रिसर्च ने साउथ एशियन लोगों की लाइफ-स्टाइल व आनुवांशिकी को भी इसका जिम्मेदार  ठहराया है। 
 
1. लाइपो प्रोटीन की अत्यधिक मात्रा : एलपी(ए) एक प्रकार का एलडीएल कॉलेस्ट्रॉल होता है। इसे बुरा  कॉलेस्ट्रॉल माना जाता है। एलपी(ए) कॉलेस्ट्रॉल एलडीएल कॉलेस्ट्रॉल से ज्यादा खतरनाक होता है और यह  हृदय संबंधी बीमारियों से जुड़ा रहता है। भारतीयों का एलपी(ए) स्तर आनुवांशिकी रूप से ज्यादा रहता है।  इसकी वजह से हृदय संबंधी रोगों और डायबिटीज होने का खतरा इनमें बना रहता है। 
 
2. शरीर में होमोसाइसटीन की मात्रा ज्यादा होना : होमोसाइसटीन एक अमीनो एसिड है, जो आपका  शरीर उत्पन्न करता है। और यह हृदय रोगों से मजबूती से जुड़ा रहता है। एलपी(ए) से उलट, आपका  होमोसाइसटीन स्तर आपके खाना खाने से जुड़ा रहता है। दूसरे महाद्वीप के लोगों के मुकाबले भारतीयों में  ज्यादा होमोसाइसटीन पाया जाता है। यह भी इस तरह के रोगों की आशंकाओं को ज्यादा बढ़ाता है। 
 
3. शरीर में हाई सेंसटिव सी- रिएक्टिव प्रोटीन का ज्यादा होना : हाई सेंसटिव सी- रिएक्टिव प्रोटीन का  स्तर दोनों हृदय रोगों और डायबिटीज से जुड़ा रहता है। यह पदार्थ भी भारतीयों में ज्यादा पाया जाता है। 
 
4. एबडोमिनल ओबेसिटी : ज्यादातर भारतीयों का बीएमआई नॉर्मल होता है, हाथ और पैर पतले होते हैं,  लेकिन तोंद (पेट) बड़ा होता है। इसको एबडोमिनल ओबेसिटी कहते हैं। यह बीएमआई से भी ज्यादा  डायबिटीज व हृदय रोग से जुड़ी होती है। ज्यादातर भारतीयों को इसके चलते भी इन बीमारियों का  शिकार होना पड़ता है। कई लोगों के शरीर के भीतर फैट जमा होता रहता है, जो बाहरी रूप से दिखाई  नहीं देता और इस तरह की बीमारियों का हवा देता है। 
 
सबसे अच्छी खबर यह है कि इसके रिस्क कारकों को आप प्रभावपूर्ण तरीके से मैनेज करने के लिए  आपको कुछ विशेष बातों पर गौर फरमाना होगा। तब ही आप इस जानलेवा बीमारी से छुटकारा पा सकते  हैं। 
 
सही खान-पान, व्यायाम, किसी भी बात को लेकर टेंशन कम लेना, जमकर सोना और समय-समय पर  अपने स्वास्थ्य से संबंधित डॉक्टरी सलाह लेते रहना, अगर आप इन बातों पर नियमित रूप से अमल  करते हैं तो आप इन खतरों को कम कर सकते हैं।