शुक्रवार, 29 मार्च 2024
  • Webdunia Deals
  1. धर्म-संसार
  2. व्रत-त्योहार
  3. दीपावली
  4. 5 दिवसीय महापर्व दीपावली का महत्व
Written By

5 दिवसीय महापर्व दीपावली का महत्व

5 दिवसीय महापर्व दीपावली का महत्व - 5 दिवसीय महापर्व दीपावली का महत्व
डॉ. रामकृष्ण डी. तिवारी
 
पर्व उत्साह के कारक होते हैं। इनकी महत्ता सर्वव्यापी है। भारत में वर्ष के दिनों से अधिक पर्व की संख्या है। भौतिक साधन के अभाव के पश्चात देश के प्रत्येक जन में अपार जोश का मुख्य स्रोत त्योहार ही हैं। उत्सव में दीपावली का प्रमुख स्थान है। महालक्ष्मी की कृपा के अभाव में किसी भी भौतिकी कार्य अथवा सांसारिक कार्य का होना असंभव है। 
 
इस प्रधान आवश्यकता की पूर्ति हेतु इस पर्व को साधना व उत्साह से संपन्न करने की अपेक्षा सदैव जन मन में रहती है। इस पर्व को प्रकाश पर्व कहने का तात्पर्य भी यही है कि संपन्नता की रोशनी में ही श्रेष्ठ जीवन की संभावना है। 
 

 
इस अवसर पर निवेश, हिसाब-किताब (बही), यम (पाप कार्य का स्मरण), कुबेर, (बचत व भंडारण), संपत्ति, पूँजी, पर्यावरण-प्रकृति पूजन व संबंधों की महत्ता से बद्ध पंच पर्व मनाए जाते हैं। इन सभी की प्रचुरता या उपलब्धता के उपरांत ही मानवीय जीवन की सफलता निश्चित होना है। 
 
इस उत्सव को शास्त्रोक्त प्रकार से मनाने की नियम व पद्धति सभी धर्म ग्रंथों में उपलब्ध है। दीपावली का शाब्दिक अर्थ दीपों की पंक्ति या समूह है। उस दिन लोग बड़े उत्साह व उमंग के साथ घर, दुकान, गली, रास्ते, मकान, भवन आदि की सफाई कर सायंकाल सैकड़ों-हजारों दीप जलाकर सजावट करते हैं। इसीलिए यह त्योहार दीपावली के नाम से जाना जाता है। यों तो लोग दीपक प्रतिदिन घर, दुकान, देवालय और पूजन काल में जलाते हैं। किंतु वह दीपावली नहीं कहलाता। अतः दीपावली कोई विशेष उद्देश्य को लेकर है। यह उद्देश्य जानने की जिज्ञासा स्वाभाविक है।
 
युगों से चली आ रही पारंपरिक पर्वों के लिए कोई न कोई शास्त्रीय या पारंपरिक व्यवस्था ही आधार मानी जाती है। दीपावली प्रायः दोनों सिद्धांतों का आधार है। प्रथम यद्यपि भगवान ने गीता में कहा है कि महीनों में मार्गशीर्ष मैं ही हूँ। फिर भी उन्हीं भगवान के वचनानुसार बारह महीनों में कार्तिक मास धार्मिक दृष्टि से उत्कृष्टतम माना गया है। चातुर्मास्य जो भगवान का विश्राम या शयन समय माना जाता है, उसका अंत कार्तिक में ही होता है और देवोत्थान एकादशी को भगवान का जागरण दिन माना जाता है। इस महीने में धर्मनिष्ठ लोग गंगा, काशी, प्रयाग, हरिद्वार में गंगातट पर महीने भर निवास कर पवित्र स्नान का लाभ उठाते हुए अपने मोक्ष का मार्ग प्रशस्त करते हैं।

 
दीपावली अमावस्या को ही मनाई जाती है। उसका भी कुछ विशेष तर्क है। सूर्य चंद्रमसौ सह परः सन्निकर्ष अमावस्या। सूर्य और चंद्रमा दोनों अत्यंत सन्निधि में जिस दिन आते हैं, वह अमावस्या तिथि है। कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा से चंद्रमा की कला क्रमशः क्षीण होती हुई अमावस्या को सूर्य और चंद्र दोनों अत्यंत समीप होने से चंद्रमा कलाहीन होकर पुनः सूर्य से पृथक होता हुआ नवीन कला को धारण करता है। इसी अमावस्या से चंद्रमा की नवीन किरणें प्राप्त होती हैं। अतः अमावस्या को अंधकार का अंत और प्रकाश का प्रारंभ दोनों का प्रतीक कहा जा सकता है।
 
शास्त्रीय और लौकिक उपाख्यान है कि भगवान मर्यादा पुरुषोत्तम राम लंका पर विजय प्राप्त कर जब अयोध्या आए तो खुशी में लोगों ने घर-घर, गलियों और मार्गों पर दीपक जलाकर विजयोल्लास का प्रदर्शन किया था। 
 
दीपक लक्ष्मी का प्रतीक है। लक्ष्मीजी प्रकाश, स्वच्छता और पवित्रता को अधिक पसंद करती हैं। अतः दीपावली के साथ ही लक्ष्मी पूजा भी प्रारंभ हुई जो आजकल दीपावली का दूसरा नाम लक्ष्मी पूजन का विशेष त्योहार भी कहा जाता है।
 
पूर्व में राजाओं के यहाँ शारदीय पूर्णिमा को प्रदोष काल में लक्ष्मी पूजन किया जाता था। राजा लोग रात्रिभर पाशा खेलते थे। और रात्रि जागरण करते थे। उस रात्रि को कोजागरा भी कहते हैं। शास्त्रों में कोजागरा प्रदोषे लक्ष्मी पूजन का भी उल्लेख है। दीपावली की लक्ष्मी पूजा प्रारंभ में वणिक्‌वृत्ति वालों की थी किंतु धीरे-धीरे सभी ने दीपावली को ही लक्ष्मी पूजन करना प्रारंभ किया। आज सारा समाज ही दीपावली के दिन लक्ष्मी पूजन बड़े उत्साह के साथ करता है।
 
दीपावली की तैयारी में लोग दस-पंद्रह दिन पूर्व से ही लग जाते हैं। लोग मकान, भवन की सफाई, लिपाई-पुताई व चिनाई करवाने लगते हैं। मकानों में नई चमक आ जाती है। लोग बरसात से कुप्रभावित घरों व भवनों का संस्कार कर उन्हें नवीन रूप देते हैं।


 
यों तो गरीब से अमीर तक सबके सब दीपक जलाकर उत्साह मनाते हैं, लक्ष्मी पूजन करते हैं, धनवानों, सेठ-साहूकारों के महलों और दुकानों की सजावट निराली रहती है। लक्ष्मी माता मानों साक्षात विराजमान होकर उस अनोखी छटा को चार चाँद लगा देती है। लक्ष्मी पूजन के बाद एक-दूसरे का प्रेम मिलन, मिठाई वितरण आदि प्रक्रिया लोगों में आपसी सौहार्द तथा नए जीवन का संचार कर देती है। दीपावली त्योहार की शुरुआत व समापन की अवधि 5 दिनों की होती है। पर्व की शुरुआत धनतेरस से होती है और भ्रातृ द्वितीया को उनका समापन होता है।