गुरुवार, 25 अप्रैल 2024
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Written By रवींद्र व्यास

रूह के इलाके में ले जाता रहमान का संगीत

ब्लॉग चर्चा में गोल्डन ग्लोब के रहमान की चर्चा

रूह के इलाके में ले जाता रहमान का संगीत -
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भारतीय संगीत के मान एआर रहमान को गोल्डन ग्लोब अवॉर्ड मिला तो जाहिर है दूसरे दिन तमाम चैनल्स ने तमाम खबरों को दरकिनार कर राग-रहमान गाया और अखबारों के पन्ने उनके कसीदे में पढ़े गए स्तुति गान से भरे पड़े थे। यह हो भी क्यों न?

आखिर रहमान के संगीत ने विश्वव्यापी फलक पर भारतीय संगीत की गूँज पैदा की और उसकी खुशबू ने सबको बावला कर दिया। हिंदी में रोजा फिल्म से लोग उन्हें जानने लगे थे, मानने लगे थे। उस फिल्म के गीत छोटी-सी आशा, आसमान को छूने की आशा ने धूम मचा दी थी। इसके बोल तो मधुर थे ही लेकिन इसे जिस कोमल और प्यारी धुन में बाँधा गया था, वह लाजवाब थी।

इसके बाद रहमान उस राह निकल गए जहाँ रूहें गुनगुनाती हैं और उनकी नशीली और कशिश भरी धुनों में राहगीर अपना रास्ता भूलकर रूहानी इलाके में मगन हो जाते हैं। रोजा के बाद तो कई ऐसी फिल्में हैं जिनमें रहमान ने संगीत देकर न केवल अपनी प्रयोगधर्मिता का चमत्कार दिखाया बल्कि भारतीय संगीत की जड़ों से रस लेकर उसकी भारतीय खुशबू को कायम रखा।

उनके संगीत में दुनिया के कई संगीत की खूबियाँ सुनाई दे सकती हैं लेकिन इसके बावजूद वह कितना ठेठ हमारा ही संगीत है। अब हिंदुस्तान में ही नहीं, उनके दीवाने संसार में हैं। तो फिर ब्लॉग की दुनिया इससे कैसे पीछे रह सकती थी। उनके संगीत के कुछ दीवाने यहाँ भी मौजूद हैं।

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रवीश कुमार ने इस अवॉर्ड के बहाने गुलजार के गीत जय हो जय हो पर लिखते हुए कहा है कि - या खुदा। या रहमान। हिंदू होकर मुस्लिम हो गए। मुस्लिम होकर सूफी हो गए। सूफी होकर मस्त मौला। हे मौला। कहाँ से पाया इतना जादू। साजों को बाँधकर डमरू से हाँक देने का फन। गोल्डन ग्लोब मुबारक। रहमान। आज भी थिरकता है मन में कहीं चुपके से। दिल है छोटा सा...छोटी सी आशा।

कहने की जरूरत नहीं इस भाववादी टिप्पणी में रहमान के लिए अथाह प्रेम और श्रद्धा है और उनके सूफियाना अंदाज का नोटिस लिया गया है। इसी तरह हिंदुयुग्म ब्लॉग पर रहमान को करोड़ों भारतीयों का सलाम शीर्षक से पोस्ट लिखी गई है। इसमें कहा गया है कि रहमान नामचीन लोगों के साथ नहीं बल्कि उन लोगों के साथ काम करना चाहते हैं जो रचनात्मक हों। इस पोस्ट में उनके मित्र जी. भरत के साथ उनके किए गए काम को याद किया गया है।

वंदे मातरम् से लेकर माँ तुझे सलाम एलबम की तारीफ की गई है। यही नहीं इस ब्लॉग पर रहमान के बचपन का एक बेहद सुंदर फोटो भी दिया गया है। ख्वाब का दर ब्लॉग पर पंकज पाराशर लिखते हैं कि गोल्ड़न ग्लोब की बात ही कुछ और है। वे यह भी रेखांकित करते हैं कि इसके पहले रहमान को क्रिटिक अवॉर्ड मिल चुका था लेकिन गोल्डन ग्लोब से उनकी प्रतिष्ठा ज्यादा बढ़ी है। कबाड़खाना पर भी गुलजार के गीत का विश्लेषण पढ़ा जा सकता है।
रहमान ने कई नए गायक-गायिकाओं को मौके दिए और उनके टैलेंट का अपनी कल्पनाशीलता से बेहतरीन इस्तेमाल किया। यही कारण है कि मनीष कुमार ने अपने ब्लॉग पर रहमान का संगीतबद्ध किया गीत अदिति की चर्चा करते हुए नए गायक राशिद अली की बात की है। रहमान ने जाने तू या जाने ना फिल्म में युवा को ध्यान में रखते हुए धुनें तैयार की और पप्लू कांट डांस साला तो युवाओं में बेहद लोकप्रिय हुआ लेकिन अदिति गीत के बोल भी अच्छे हैं, इसकी धुन रहमान की रेंज का पता देती है।

ख्वाहिशें ऐसी अपने ब्लॉग पर रामकुमार सिंह रहमान के बहाने एक सही सवाल उठाते हैं कि यह निश्चित ही बड़ा सम्मान है लेकिन सम्मान की बात तब होगी जब बॉलीवुड की प्रतिभाएँ हॉलीवुड की फिल्मों में अपना जलवा दिखाएँ। इसी तरह यूनुस अपने ब्लॉग में यह तीखा सवाल उठाते हैं कि भारत की गरीबी को दिखाकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर वाहवाही लूटना गलत है।

वे स्लमडॉग मिलिनेयर और अरविंद अडिगा के बुकर सम्मान प्राप्त उपन्यास व्हाइट टाइगर के बहाने ये सवाल उठाते हैं और कहते हैं कि इन दोनों में भारतीय गरीबी और विशेषकर गंदी बस्तियों और बदहाली का वर्णन है। लेकिन इसके बावजूद ब्लॉगर रहमान को मिले इस सम्मान से अपनी भावनाएँ व्यक्त कर रहे हैं। दुनिया मेरी नजर से ब्लॉग में इसीलिए कहा गया है कि सबसे आगे होंगे हिंदुस्तानी। जय हो रहमान की।

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