गुरुवार, 18 अप्रैल 2024
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Written By रवींद्र व्यास

ब्लॉग चर्चा में मनोज बाजपेयी का ब्लॉग

ब्लॉग चर्चा में मनोज बाजपेयी का ब्लॉग -
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हिंदी ब्लॉगिंग की दुनिया फैल रही है, बढ़ रही है। इसे मिलती लोकप्रियता आम और खास को लुभा रही है। इसे संवाद के नए और लोकप्रिय माध्यम के रूप में जो पहचान मिली है उसका सबसे बड़ा कारण यही है कि सीधे लोगों तक पहुँच कर आप उनसे हर बात बाँट सकते हैं, कह सकते हैं।

इससे एक अंतःक्रियात्मक संबंध बनता है। यह संबंध ज्यादा अनौपचारिक होता है। आत्मीय होता है। बिना किसी हिचकिचाहट के लोग ब्लॉग पर अपने कमेंट्स देते हैं। इसीलिए रोज-ब-रोज कई ब्लॉगर परिदृश्य पर अपनी सार्थक मौजूदगी दर्ज करा रहे हैं। अमिताभ बच्चन और आमिर खान के साथ कई अभिनेता-अभिनेत्रियाँ ब्लॉगर बन रहे हैं। इसकी ताजा कड़ी ख्यात अभिनेता मनोज बाजपेयी हैं।

उनका ब्लॉग अन्य अभिनेता-अभिनेत्रियों से इस मायने में अलग है क्योंकि यहाँ प्रचार की हवस दिखाई नहीं देती। इस अभिनेता ने हाल ही में जो चीजें पोस्ट की हैं, उससे लगता है ये एक प्रतिबद्ध अभिनेता हैं। ऐसा अभिनेता जो अपने प्रचार और फिल्मों पर ही बात नहीं करता बल्कि देश-समाज के सूरते हाल पर सतत नजर रखे है।

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देश में जो कुछ भी घट रहा है, हो रहा है, वह इस अभिनेता को परेशान करता है। वह चिंतित होता है। सोचता है और दुःखी होता है। बिना लाग लपेट के अपनी बात कहता है। बिना ज्यादा भावुक हुए लेकिन पूरी संवेदनशीलता के साथ। सवालों-समस्याओं पर बात करते हुए सवाल करता हुआ। लेकिन मनोज बाजपेयी सिर्फ सोचते ही नहीं, कुछ करने की इच्छा भी रखते हैं। करते भी हैं। कुछ अच्छा करने के लिए लोगों को प्रेरित भी करते हैं, उत्साहित करते हैं।

मिसाल के तौर पर बिहार में आई बाढ़ पर उनकी दो पोस्ट पढ़ी जा सकती हैं। बिहार में आई बाढ़ उन्हें परेशान करती है। पानी में घिरे असहाय लोगों का दुःख उन्हें सालता है। वे गाँव के लोगों के पक्षधर हैं। उनकी तरफ खड़े होकर सोचते हैं और लिखते हैं।


बिहार की बाढ़ से हारना नहीं शीर्षक की अपनी पोस्ट में वे लिखते हैं- कोसी नदी या कोई भी पहाड़ी नदी, जो उत्तर के पहाड़ से निकलकर बिहार में प्रवेश करतै, उसका कहर और उसके किस्से मैं बचपन से सुनता आ रहा हूँ। आश्चर्य इस बात का है कि हम सब देखते रह गए और पानी घुस आया। इसका मतलब यह है कि इतने साल में उन सारबाँधों पर कोई काम नहीं हुआ है। कब तक गरीब इसी तरह से अपनी जान गँवाते रहेंगे। कतक हम सिर्फ शहर को ही हिन्दुस्तान मानते रहेंगे। सवाल इस बात का है

कहने की जरूरत नहीं कि यह अभिनेता प्रदेश और केंद्र सरकारों की नीति पर सवाल खड़े करता है। असंगत विकास के चलते गाँव और शहर के बीच बढ़ती खाई और गाँवों की लगातार अनदेखी पर वे सवाल करते हैं।

बाढ़ से घिरे लोगों की मदद के लिए वे अपनी कोशिशों की बात भी करते हैं और दूसरे लोगों को भी इस दिशा में कुछ सार्थक करने के लिए प्रेरित करते हैं।
अपनी एक अन्य पोस्ट शक्तिहीन अभिनेता और बाढ़ का दर्द में वे लिखते हैं आज मैं एक फिल्म की डबिंग कर रहा था लेकिन दिमाग में लोगों की चीख-पुकार ही सुनादे रही थी। मॉल के बढ़ते संसार में हम शहर के ठीक बाहर की तकलीफ को भूलते जा रहहैं। मॉल से ही सिर्फ विकास नहीं होगा। अगर गाँव और गाँव वाले ही दु:खी रहेंगे तो इदेश का कुछ नहीं हो सकता। इन्हीं सब पीड़ा को महसूस करते हुए मैं आपके साथ अपने दु:को बाँट रहा हूँ और असहाय सा महसूस कर रहा हूँ। आगे मैं चाहूँगा कि किसी तरीके सशारीरिक और भावनात्मक तौर पर ही सही, मैं अपनी तरह से पीड़ित लोगों की कुछ मदद कपाऊँ


इन दो पोस्टों से जाहिर है कि यह संवेदनशील अभिनेता बिहार में बाढ़ से कितना व्यथित है।
सत्या फिल्म से अपने अभिनेता की ताकत महसूस करवा चुका यह अभिनेता अभिनय के लिए कैसे और कहाँ से ताकत हासिल करता है इसे जानने के लिए उनकी एक पोस्ट मददगार साबित हो सकती है।

बाजार में करता हूँ अभिनय का होमवर्क में खरीददारी के बहाने बड़ी सादगी और सरलता से बताते हैं कि वे कैसे बाजारों में घूम कर लोगों से मिलते-जुलते हैं, उनके बारे में जानकारी हासिल करते हैं और इससे प्राप्त अनुभव को अपना होमवर्क बनाकर अपने अभिनेता को लगातार माँजते रहते हैं। जीवन से अभिनय की प्रेरणा लेने से ही यह अभिनेता सत्या से लेकर जुबैदा, रोड, पिंजर और शूल जैसी सशक्त फिल्मों में बेहतरीन अभिनय किया है।


बुढापा और मैं उनकी एक दिलचस्प पोस्ट है। इस पोस्ट में वे एनडीटीवी इंडिया के कार्यक्रम को देखकर बूढ़ों को याद करते हैं जिन्होंने उन्हें मार्गदर्शन दिया। इसमें वे अपने पिता औऱ ससुर से लेकर तमाम बुजुर्गों को याद करते हैं।

वे लिखते हैं दरअसल, एसएन वर्मा में मैं खुद को देख रहा था। कई सारे युवाओं को देख रहा था, अपने यौवन के मद में चूर हैं। उन्हें कहीं भी इस बात का अहसास नहीं है कि वे भी कशायद एसएन वर्मा की जगह खड़े होंगे। आज का वृद्ध वैसा हो चुका है, जैसे कि घास-फूस, जिसे काटकर अलग कर दिया जाता है ताकि नई फसल की बुवाई हो सके।

वह खुद को अलग-थलग महसूस करता है। उसके बारे में समाज तो दूर उसके अपने भी सुध नहीं लेते। क्यकरें अपने बूढ़ों का? क्या हम उन्हें सहेज कर नहीं रख सकते? क्या हम उनसमार्गदर्शन नहीं ले सकते? और अगर उसके बदले में हमें सिर्फ उनका ख्याल रखना है तअधिक क्या गया? यही सोचते-सोचते दिन कटा
जाहिर है यह पोस्ट मनोज बाजपेयी की आंतरिक दुनिया की एक मार्मिक झलक दिखलाती है और बताती है कि यह किस कदर अपने बड़े-बूढ़ों को याद करता है, प्यार करता है।
अपनी शुरुआती पोस्ट में वे नाम से लेकर ब्लॉग के लिए पीआरशिप और अच्छी हिंदी कैसे लिख लेते हैं के सवालों पर अपनी राय देते हैं। कमेंट पर कमेंट देते हैं।
अविश्वास के बावजूद पढि़ए यह मेरा ब्लॉग में एक कमेंट पर वे कमेंट करते हैं कि हिन्दी के बारे में आरसी मिश्रा साहब ने लिख डाला कि ‘कौन लिख रहा है ये ब्लॉग। अमनोज बाजपेयी तो इतनी अच्छी हिन्दी लिखने से रहे‘ दरअसल, ये दोष उनका नहीं है जयह सवाल पूछ रहे हैं कि एक फिल्म अभिनेता हिन्दी में कैसे लिख सकता है?

अमूमन जितनभी बड़े स्टार्स हैं, वे कामचलाऊ हिन्दी तो बोल लेते हैं लेकिन शायद हिन्दी मेनहीं लिख पाएँगे। वे हिन्दी में इंटरव्यू भी बमुश्किल दे पाते हैं। इससकहीं-न-कहीं दर्शकों-पाठकों के मन में ये आशंका होनी लाजिमी है कि एक अभिनेतहिन्दी में कैसे ब्लॉग लिख सकता है। आपकी जानकारी के लिए अमिताभ बच्चन बहुअच्छी हिन्दी जानते हैं।

आशुतोष राणा बहुत अच्छी हिन्दी लिखते-बोलते हैं और जितनभी लोग रंगमंच से आए हैं, उनकी हिन्दी और अँग्रेजी अच्छी है। अगर आपको अभी भअविश्वास है तो उसे रहने दीजिए, लेकिन पढ़ना जारी रखिए क्योंकि यह मेरा यानी मनोबाजपेयी का ही ब्लॉग है और मनोज बाजपेयी की ही बात है
तो दोस्तो, ये मनोज बाजपेयी का ही ब्लॉग है, मनोज बाजपेयी की हिंदी है और उनकी ही बातें हैं। ये बातें कहीं-कहीं मार्मिक हैं, कहीं-कहीं मजेदार हैं। इनमें अपने गाँव के पुराने स्कूल की, स्वतंत्रता दिवस की, मास्टरजी के कहने पर रातभर तिरंगा बनाने औऱ माता-पिता के सामने टूटी-फूटी भाषा में जन गण मन गाने की यादें भी हैं।

यही नहीं 1971 फिल्म की शूटिंग के बहाने वे यह भी कहते हैं कि इस शानदार फिल्म की शूटिंग वे इसलिए भी पूरे मन से कर रहे थे क्योंकि वे अपने देश के प्रति प्यार और सम्मान भी प्रकट कर सकें।
आपने फिल्मों में इस उम्दा फनकार के तेवर तो देख ही लिए हैं। अब इस कलाकार की कलम का कमाल भी पढ़ लीजिए।
ये रहा उनका यूआरएल-http://manojbajpayee.itzmyblog.com/