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Written By रवींद्र व्यास

ब्लॉग की दुनिया का हबीब साहब को सलाम

हबीब की रचनात्मकता को श्रद्धांजलि

blog charcha | ब्लॉग की दुनिया का हबीब साहब को सलाम
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हबीब तनवीर को याद करना सिर्फ रंगकर्म से जुड़े एक व्यक्ति को याद करने की तरह नहीं है। दसों दिशाओं से टकराते उस व्यक्ति की कल्पना कीजिए, जिसके सिर पर टूटने को आसमान आमादा हो, धरती पाँव खींचने को तैयार बैठी हो और कुहनियाँ अन्य दिशाओं से टकराकर छिल रही हों, और वह व्यक्ति सहज भाव से सजगता तथा बेफ़िक्री दोनों को एक साथ साधकर चला जा रहा हो।

अब तक कुछ ऐसा ही जीवन रहा है हबीब तनवीर का। भारतेन्दु के बाद भारतीय समाज के सांस्कृतिक संघर्ष को नेतृत्व देनेवाले कुछ गिने-चुने व्यक्तित्वों में हबीब तनवीर भी शामिल हैं। भारतेन्दु का एक भी नाटक अब तक मंचित न करने के बावजूद वे भारतेन्दु के सर्वाधिक निकट हैं।

उन्होंने लोक की व्यापक अवधारणा को अपने रंगकर्म का आधार बनाते हुए अभिव्यक्ति के नये कौशल से दर्शकों को विस्मित किया है। यह कहना है ऋषिकेश सुलभ का। यह पोस्ट सबद ब्लॉग पर पढ़ी जा सकती है और हबीब साहब के रंग कर्म यह एक सारगर्भित टिप्पणी है। वे शायद भारतीय रंगमंच पर एक अकेले व्यक्तित्व थे जिन्होंने सिर्फ और सिर्फ लोक भूमि से अपना आसमान रचा और उसे उसकी गंध से महका दिया था।

नौ जून को उनकी मृत्यु की खबर फैलते ही ब्लॉग दुनिया में उनके रंगकर्म को विश्लेषित करने और उन्हें श्रद्धांजलि देने का दौर शुरू हो गया जो इस बात का गवाह की ब्लॉगर पल पल की खबर रखते हैं और उस पर अपनी त्वरित प्रतिक्रिया भी देते हैं।

इसी तरह से एक और टिप्पणी पर गौर करें जो उनके किसी साक्षात्कार का हिस्सा है- जो थिएटर छोड़कर फिल्मों, सीरियलों की तरफ जा रहे हैं, वहाँ काम की तलाश में जूतियाँ चटकाते हैं। कुछ चापलूसी, कुछ जान-पहचान काम करती है। मुझे उनसे कुछ शिकायत नहीं है। क्या करें पेट पर पत्थर रखकर काम मुश्किल है। हमारे जमाने में दुश्मन बहुत साफ नजर आता था। साम्राज्यवाद से लड़ाई थी। एक मकसद (सबका) - अंग्रेजों को हटाओ, रास्ते कितने अलग हों (भले ही)। अब घर के भीतर दुश्मन है, उसे पहचान नहीं सकते। विचारधारा बँटी है।

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पार्टियों की गिनती नहीं, हरेक की मंजिल अलग-अलग। इस अफरातफरी में क्या किसी से कोई आदर्श की तवक्को करे। हाँ, मगर लिबरेलाइजेशन, ग्लोबलाइजेशन, नए कालोनेलिज्म के खिलाफ आवाजें उठ रही हैं सब तरफ से। खुद उनके गढ़ अमेरिका, फ्रांस, ब्रिटेन में भी। तो ये उम्मीद बनती है। यह कहना था हबीब तनवीर का।

यह उस इंटरव्यू का हिस्सा है जब वे दिल्ली में सहमत ने कुछ लोग के बीच बातचीत रखी थी। यह उसी बातचीत का एक हिस्सा है। इसे धीरेश सैनी के ब्लॉग एक जिद्दी धुन पर पढ़ा जा सकता है यह महसूस किया जा सकता है कि देश के किन मुद्दों पर उनका सोच और चिंताएँ क्या थीं।
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एक स्याह और शोकाकुल तारीख हबीब तनवीर का जाना शीर्षक पोस्ट में हिंदी के मशहूर कहानीकार-कवि उदय प्रकाश अपने ब्लॉग पर लिखते हैं कि उनका जाना सिर्फ़ भारतीय रंगमंच की एक महान समर्पित प्रतिभा और धर्मनिरपेक्षता और प्रगतिशील मूल्यों के प्रति एक समर्पित और प्रतिबद्ध योद्धा-कलाकार का जाना ही नहीं है, मेरे जैसे तमाम लोगों के लिए यह एक निजी क्षति भी है। अपने समय में उनके होने का भरोसा अब नहीं रहा। अलविदा हबीब साहब ...! अलविदा ! आप हमारे दिलों में हमेशा-हमेशा रहेंगे....!

वे हमारे बर्टोल्ट ब्रेख्त थे शीर्षक से कबाड़खाना पर एक पोस्ट का। कबाड़खाना पर जन संस्कृति मंच के प्रणय कृष्ण लिखते हैं कि हबीब साहब को सरकारों और अकादमियों ने बहुत से सम्मानों से नवाज़ा- संगीत नाटक अकादमी अवार्ड,फ़ेलोशिप, पद्मश्री, पद्मभूषण, राज्य सभा की सदस्यता वगैरह, लेकिन ये सब उनके कलाकार के सामने बहुत छोटे साबित होते हैं।

पांडवानी और नाच जैसी लोक कलाओं को दुनिया के स्तर पर अगर अपने नाटकों के ज़रिए ख्याति दिलाई तो हबीब तनवीर ने। छ्त्तीसगढ़ी भाषा को दुनिया हबीब साहब के चलते जानती है,जो 'चरनदास चोर' जैसे उनके महान नाटक की भाषा है। आज कितने संस्कृतिकमी ऎसे हैं, जिन्हें विदेशों मे इतना सम्मान मिला,जो योरप के उच्चतम संस्थानों से संबद्ध रहे, लेकिन अपनी माटी के अलावा जिनका न कोई आदि था न अंत, जैसा कि हबीब साहब का।

इसी ब्लॉग पर अशोक पांडे लिखते हैं कि हजरत बाबा नज़ीर अकबराबादी के जीवन पर आधारित उनका नाटक 'आगरा बाज़ार' किसी परिचय का मोहताज नहीं है. यही बात उनके एक और नाटक चरणदास चोर के बारे में कही जा सकती है। तीखी नजर पर दिव्य दृष्टि काव्यांजलि अर्पित करते हुए कहते हैं कि -

पाँच दशक तक मंच पर छाए रहे हबीब
पंच तत्व में ले गया आखिर उन्हें नसीब
आखिर उन्हें नसीब, हो गया पूरा नाटक
अंतिम पर्दा गिरा बंद जीवन का फाटक
दिव्यदृष्टि की दुआ यही जन्नत वह पाएँ
तन-मन से तनवीर थियेटर नया सजाएँ ।

धरोहर ब्लॉग पर अभिषेक मिश्रा ने उन्हें श्रद्धांजलि देते हुए कहा है कि उन्होने नाटक में अपना अमूल्य योगदान दिया है। इसी तरह से नहीं रहे वीर जिन्हें कहते थे हबीब तनवीर शीर्षक वाली अपनी पोस्ट में राजकुमार ग्वालानी अपने ब्लॉग राजतंत्र पर कहते हैं कि-बहुत कम लोग जानते हैं कि तनवीर के नाटक 'जिन लाहौर नईं वेख्या, ते जन्म्या नईं' में जिसने लड़की का किरदार निभाया था, असल में वह लड़का था।

विभाजन की त्रासदी पर आधारित इस नाटक में लड़की को मर्दाना आवाज में अपना दु:ख व्यक्त करना था और यही कारण था कि इस भूमिका के लिए एक पुरुष का चयन करना पड़ा। प्रभाषकुमार झा अपने ब्लॉग मेरा मत में लिखते हैं कि हबीब तनवीर के कुछ नाटके आगरा बाजार, मिट्टी की गाड़ी और चरणदास चोर प्रसिद्ध नाटक थे। वे नाटककार के साथ ही कवि, अभिनेता भी थे। इन भूमिकाओं को भी उन्होंने बखूबी निभाया।

हिंदी निकष ब्लॉग पर मंच वज्रताप का दिन शीर्षक के तहत लिखी गई अपनी पोस्ट में आनंद कृष्ण कहते हैं कि वरिष्ठ रंगकर्मी हबीब तनवीर का भोपाल में 86 वर्ष की उम्र में निधन हो गया। रंगमंच की एक महत्वपूर्ण कठपुतली को जगत-नियंता ने वापस बुला लिया।

जनवादी लेखक संघ की ओर से परेश टोकेकर कबीरा लिखते हैं कि पोंगा पंडित, जिन लाहोर नहीं देख्याँ, चरणदास चोर, आगरा बाजार जैसे नाटको को मंचित-निर्देशित करने वाले वरिष्ठ रंगकर्मी हबीब तनवीर के निधन पर जनवादी लेखक संघ, इन्दौर अफसोस जाहिर करता है।

अंदर की बात ब्लॉग पर कपिल लिखते हैं कि हिन्‍दी रंगमंच के एक महत्‍वपूर्ण अंक का पटाक्षेप हो गया। हबीब साहब का जाना न सिर्फ रंगमंच की क्षति है बल्कि धार्मिक रूढ़ि‍यों, अंधविश्‍वासों और साम्‍प्रदायिकता के खिलाफ लड़ने वाले हर कलाकार, बुद्धिजीवी और आम लोगों की क्षति है। हबीब तनवीर साहब को विनम्र श्रद्धांजलि.....!

हाहाकार पर अनंत विजय ही कहते हैं कि किसी भी विधा में ये देखने को कम ही मिलता है कि अपने जीवन काल में ही उसमें काम करनेवाला लीजेंड बन जाता है । लेकिन हबीब के साथ यही हुआ और वो रंगमकर्म की दुनिया के लीविंग लीजेंड बन गए थे।

नुक्कड के ब्लॉगर का कहना है कि उन्होंने हिंदी रंगमंच को जन जन तक दोबारा ले जाने में बहुत बड़ी भूमिका निभाई। उनके रंगमंच की विशेषता उनका, उन लोक कलाकारों को साथ लेकर काम करना रहा जिन्हें आज का शहर भुलाता चला जा रहा है। ये कलाकार लोक संस्कृति के वाहक रहे, साथ ही अपने रंगमंडल में उन्होंने विभिन्न स्थानीय सक्रिय रंगकर्मियों को भी जोड़ा। जाहिर है ब्लॉग की दुनिया में हबीब तनवीर साहब का और उनके रंगकर्म का सम्मान के साथ नोटिस लिया गया और एक बार फिर यह जताया गया कि ब्लॉग माध्यम किसी भी माध्यम से पीछे कतई नहीं है।

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