शनिवार, 20 अप्रैल 2024
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Written By WD

जहाँ गुनाहगार हैं 'अनंत'

जहाँ गुनाहगार हैं ''अनंत'' -
-चन्दन मिश्र
बिहार अपराधों का गढ़ बना हुआ है। इससे किसी को भी इनकार नहीं हो सकता, पर जिस तरह से वहाँ के एक बाहुबली विधायक द्वारा पत्रकारों पर हमला किया गया, उससे यह साफ हो गया है कि नीतीश सरकार अपराध पर लगाम कसने में पूरी तरह नाकाम रही है।

यह बात किसी से छिपी नहीं है कि मोकामा से जदयू विधायक अनंत कुमार सिंह आपराधिक छवि के व्यक्ति हैं और उन पर पटना के डाक बंगला चौराहा समेत कई स्थानों पर अवैध कब्जा करने, मारपीट और हत्या के दर्जनों मामले दर्ज हैं। हाल ही में एक महिला के साथ बलात्कार करने और उसकी हत्या करवाने के मामले में उनका नाम सामने आया था। इसी मामले में एक पत्रकार द्वारा उनसे सवाल पूछे जाने पर पत्रकार को पीटने के साथ ही उसे मारने की धमकी देना, उनके दुस्साहस को ही उजागर करता है।

पर बिहार में ऐसे बाहुबलियों की कोई कमी नहीं है, वहाँ एक अनंत नहीं वरन कई अनंत कुमार सिंह हैं, जिन्हें अपराध जगत में धुरंधर माना जाता है। ऐसे लोगों का स्थानीय और देश की राजनीति में खासा दबदबा है।

बिहार में नीतीश कुमार के नेतृत्व में सरकार के गठन के समय दावा किया गया था कि तीन महीने के भीतर प्रदेश में कानून का राज स्थापित किया जाएगा, पर जब सरकार को समर्थन देने वाले ही अपराधी हों तो ऐसे वादों पर यकीन करना मुश्किल हो जाता है।

बिहार में सत्ताधारी जनता दल (यूनाइटेड) के एक दर्जन भर विधायक और सांसद ऐसे हैं जिन पर आपराधिक मुकदमे चल रहे हैं, पर इनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई है। सिर्फ अनंत ही नहीं, महाराजगंज से जदयू सांसद प्रभुनाथसिंह औरे पीरो से जदयू विधायक सुनील पांडे का नाम भी ऐसे ही बाहुबलियों में शुमार होता है, जिनके खिलाफ अपहरण, डकैती और मारपीट समेत कई आपराधिक मामले दर्ज हैं। सुनील पांडे का खौफ पुलिस में इतना है कि अदालत द्वारा गिरफ्तारी वारंट जारी किए जाने के बावजूद पुलिस उन्हें गिरफ्तार करने की बजाय उनके घर के बाहर सिर्फ नोटिस चस्पा कर चली गई।

सिर्फ सत्ताधारी हीं नहीं विरोधी पार्टियों के भी कई विधायक ऐसे हैं, जिन पर हाथ डालने से पहले पुलिस के हाथ काँपने लगते हैं। मोकामा के राजद विधायक दिलीपसिंह, गया से सुरेंद्र यादव, वैशाली से लोजपा के रमासिंह, बलिया से सूरजभानसिंह आदि ऐसे नाम हैं जो सत्ता से बाहर रहते हुए भी सत्ताधारियों से कहीं ज्यादा पहुँच रखते हैं।

बिहार में ऐसे विधायकों की एक लम्बी फेहरिस्त है, जो किसी पार्टी से नहीं जुड़े, पर अपने रौब और आतंक की वजह से बिहार की राजनीति के जाने-पहचाने चेहरे हैं। वैशाली से मुन्ना शुक्ला, पलामू से विनोदसिंह, बिहार शरीफ से रामनरेशसिंह, राजेंद्र तिवारी, सतीश पांडे कुछ ऐसे नाम हैं, जो बिना किसी राजनीतिक एजेंडे और पार्टी के बिहार में एकछ्त्र राज चलाते हैं।

सिर्फ विधायक ही देश की संसद में बैठकर कानून बनाने वाले सांसद भी इस मामले में पीछे नहीं हैं। बिहार से सांसद बने नेताओं का आपराधिक ग्राफ खासा ऊपर है। फिर चाहे वो सीवान से राजद सांसद मो. शहाबुद्दीन हों या फिर मधुबनी से राजद सांसद और मौजूदा केंद्रीय मंत्री मोहम्मद तस्लीमुद्दीन, दोनों का ही सियासत में आगाज का तरीका एक जैसा ही है। पहले अपराध में नाम कमाया और फिर राजनीति में सत्ता के शिखर तक पहुँचे।

शहाबुद्दीन ने तो पिछला संसदीय चुनाव जेल से ही लड़ा था और जीता भी। बीमारी के नाम पर अस्पताल में भर्ती शहाबुद्दीन वहीं से अपना चुनाव प्रचार और जनता दरबार चलाते थे और किसी सरकारी अधिकारी की तरफ से उन पर कभी अँगुली तक नहीं उठी।

पत्रकारों पर हमले के बाद नीती बाबू ने फौरन हरकत में आते हुए न सिर्फ विधायक समेत उनके साथियों को गिरफ्तार करवाया, वरन इस मामले की सीबीआई जाँच की सिफारिश भी की है। पर क्या सिर्फ एक मामले में कार्रवाई से अपराधियों का गढ़ और ऐशगाह बन चुके बिहार की जनता को राहत मिल जाएगी? नीती बाबू की कार्रवाई से यह प्रतीत होता है जैसे सदियों से प्यासी जमीन पर एक लोटा पानी डाला गया हो। पर जहाँ अपराधी ही अनंत हों वहाँ अपराधों का अंत कैसे होगा? यह एक यक्ष प्रश्न है।

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क्या पत्रकारों पर हमला करने वाले जदयू विधायक अनंतसिंह की विधानसभा सदस्यता समाप्त कर देनी चाहिए?