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Written By वर्तिका नंदा

गीतिका-कांडा मामला और मीडिया

अखबारी रिपोर्टिंग पर एक शोध

गीतिका-कांडा मामला और मीडिया -
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रिपोर्टिंग सिर्फ किसी एक घटना का विवरण भर नहीं होती बल्कि वह समाज का चेहरा और उसकी सेहत का आईना भी होती है। महिला के खिलाफ अपराध के मामले में रिपोर्टिंग और भी ज्यादा गहन शोध की मांग करती है क्योंकि यहां हर तस्वीर और हर अक्षर सालों तक पीड़ित या उसके परिवार पर असर डाल सकता है।

इसके अलावा रिपोर्टिंग कथित अपराधी को लेकर समाज की सोच को भी उद्‍घाटित करती है। वैसे भी 82,000 से ज्यादा रजिस्टर्ड समाचार पत्रों के इस देश में आज भी संवेदनहीन और एकपक्षीय रिपोर्टिंग को लेकर कोई ठोस कानून नहीं बना है। इसलिए मीडिया ट्रैवलर ग्रुप यह पहल कर रहा है कि ऐसा शोध अब नियमित तौर पर हो सके।

अपराध की रिपोर्टिंग कई कोणों से की जा सकती है और हर कोण का असर समाज के बड़े हिस्से पर पड़ता ही है। इसलिए दिखाई देने वाले अपराध की रिपोर्टिंग की पड़ताल की जानी जरूरी है। वैसे भी रिपोर्टिंग सिर्फ नीति निर्धारकों को ही नहीं बल्कि कानूनविदों और संभावित पीड़ितों को भी बहुत गहरे तक प्रभावित कर सकती है।

गीतिका शर्मा मामले में देश के तीन प्रमुख समाचार पत्रों की रिपोर्टिंग क्या कहती है, इसके लिए 6 अगस्त से लेकर 21 अगस्त तक इन अखबारों का सैंपल लिया गया। ये समाचार पत्र हैं- हिन्दुस्तान टाइम्स, टाइम्स ऑफ इंडिया और नवभारत टाइम्स।

प्रकाशित खबरों का विवरण

हिन्दुस्तान टाइम्स

कुल खबरेंतस्वीरों की संख्‍यापुरुष रिपोर्टरमहिला रिपोर्टरबिना बाईलाइन की खबरें या एजेंसी की खबरें
3229100220

टाइम्स ऑफ इंडिया

कुल खबरेंतस्वीरों की संख्‍यापुरुष रिपोर्टरमहिला रिपोर्टरबिना बाईलाइन की खबरें या एजेंसी की खबरें
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नवभारत टाइम्स

कुल खबरेंतस्वीरों की संख्‍यापुरुष रिपोर्टरमहिला रिपोर्टरबिना बाईलाइन की खबरें या एजेंसी की खबरें
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इससे यह बात साफ है कि गीतिका-कांडा मामले में और अगर सही परिप्रेक्ष्य में देखें तो कांडा-गीतिका मामले में मीडिया ने भरपूर सक्रियता दिखाई। प्रमुख तौर पर मीडिया की सक्रिय भागीदारी और फॉलो-अप की वजह से ही कांडा पुलिस के सामने आने के लिए मजबूर हुआ। इसके अलावा राजनीति और अपराध के बीच की लंबी-काली सुरंग पर भी लंबी बहस होने लगी हैं।

इन तीनों प्रमुख अखबारों में इन 16 दिनों में 30 से ज्यादा खबरें प्रकाशित की गईं पर यहां कई बातें और भी गौर करने लायक हैं। यह चौंकाने वाला तथ्य है कि इन तीनों ही प्रतिष्ठित और स्थापित अखबारों में महिला अपराध से जुड़ी इस घटना की रिपोर्टिंग में ‍महिला रिपोर्टरों की उपस्थिति न के बराबर दिखाई दी (कम से कम बाईलाइन देखकर तो ऐसा ही आभास होता है)।

भाषा और संभावित प्रभाव : खबर को पेश करते हुए सीधी भाषा और वाक्यों के बीच में निहित अर्थ- दोनों ही खबर को प्रभावित करते हैं। कांडा-गीतिका मामले में एक रोचक बात यह रही कि हिन्दी के ज्यादातर अखबार कांडा को 'उन्हें' ही कहते रहे जबकि गीतिका 'उसे' रही। आरोपी के प्रति अनकहे सम्मान भाव और पी‍ड़ित के लिए एक औपचारिक भाव की अपनी वजहें हो सकती हैं।

इसके अलावा खबरों का विश्लेषण करते समय बार-बार गीतिका के गर्भपात और उसके 'महत्वाकांक्षी' होने को तवज्जो दी गई। महत्वाकांक्षी होना किसी अपराध को करने सरीखा ही दिखता गया और पुरुष इस बोध से बचता हुआ कि मानो पुरुष का महत्वाकांक्षी होना न तो खबर होता है और न ही किसी अतिरिक्ति विश्लेषण को चिपकाने की वजह। एक भाव यह भी उभरता हुआ दिखा कि जैसे अगर गीतिका कथित तौर पर महत्वाकांक्षी न होती तो जैसे वह आत्महत्या करती ही न और न ही वि‍विध घटनाओं का चक्रव्यूह यूं बनता।

ऐसा नहीं है कि ‍गीतिका की आत्महत्या की खबर के चलते अकेले कांडा या उसके परिवार ने ही उसका चरित्र हनन किया। यह काम जाने-अनजाने पत्रकार की कलम से भी होता गया। मूल खबर और आत्महत्या की खबर को गैर-जरूरी और अफवाह आधारित खबर से जोड़कर खबर को रसीला और ध्यान को भटकाने की कोशिश भी होती हुई दिखाई दी। इसकी वजह से गीतिका के चरित्र पर कैमरे की आंख का टिकना जितना स्वाभाविक था, उतनी ही गैर जिम्मेदाराना भी।

हैरानी की बात यह कि इस सारे मामले पर सरकारी और राजनीतिक बयान काफी सीमित ही रहे। हां, कुछ बयान राज्य सरकार की अपनी छवि को लेकर चिंतित अंदाज में जरूर दिखे पर यहां गीतिका को लेकर कोई सरोकार तकरीबन नदारद ही रहा।

एक छिपनछिपाई दिल्ली पुलिस के रोल को लेकर भी रही। कांडा ने आत्मसमर्पण किया, पुलिस ने उसे गिरफ्तार किया या फिर उसने पहले आत्मसमर्पण किया और गिरफ्तारी हुई, यह बात भी साफ तौर पर रखी नहीं गई। ‍हां, दिल्ली पुलिस यह दावा करती जरूर दिखी कि कांडा को पकड़ने के लिए उसने एक-दो नहीं, बल्कि 25 टीमों का गठन कर डाला। दिल्ली पुलिस कमिश्नर का ट्‍विटर का यह बयान भी कुछ हास्यास्पद नजर से ही देखा गया जहां उन्होंने दावा किया कि उनके 'बेस्ट बॉयज' काम पर हैं।

महिला से जुड़े अपराध की रिपोर्टिंग में पुरुषों का वर्चस्व विचार के नए मुद्दों को खोलता है। इससे विचार के नए दरवाजे भी खुलते हैं, लेकिन आधी आबादी होने के बावजूद जब महिला विषयक मुद्दों पर रिपोर्टिंग की बात आती है तो महिला का वर्चस्व हाशिए पर दिखना कोई बहुत सुखद संकेत नहीं है। महिला पर होने वाले अपराध के अनुपात में महिला रिपोर्टरों की कमी का खलना स्वाभाविक भीव है। जेंडर रिपोर्टिंग को ‍लेकर मीडिया के अंदर भी किसी तरह के प्रशिक्षण का जज्बा उभर नहीं सका है। इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि इस तरह की रिपोर्टिंग संवेदना के स्तर पर सूखी हो सकती है, एकतरफा और कम संवेदनशील भी। महिला रिपोर्टरों की कम से कम बराबरी की मौजूदगी अपराध की रिपोर्टिंग को ज्यादा मानवीय बना सकती है।

शब्दों और भाषा के मामले में रिपोर्टिंग को कुछ और एहतियात बरतनी ही चाहिए। एक अदद स्टाइल शीट और साथ ही चटखारे से परे निष्पक्ष और सिर्फ खबर की खबर देती रिपोर्टिंग का माहौल बनाने की जरूरत महसूस होती है। गीतिका का गर्भपात कहां हुआ, से ज्यादा जरूरी यह जानना है कि क्यों हुआ, किसकी वजह से हुआ।

तस्वीरों में पीड़ित का बिलखता हुआ परिवार, उसके घर के बाहर खड़ी पुलिस और परेशान भाई, यह तस्वीरें घटना से पीड़ित परिवार और किसी भी तरह की यातना से गुजर रहे दूसरे पीड़ितों के लिए दर्दनाक हो सकती है। मी‍डिया अलग-अलग अपराधों में आरोपियों को सुखी दिखाकर क्या कहना चाहता है (याद कीजिए राठौर की हंसी और प्रियदर्शिनी मट्‍टू मामले में गिरफ्तार संतोषसिंह की हंसी)। इस हंसी से पीड़ित समाज का रुदन बढ़ता है और आपराधिक प्रवृत्ति के लोगों की हिम्मत।

लेकिन यह बात जरूर है कि तमाम तरह की राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय खबरों के दबाव के बीच इन अखबारों ने कांडा को पूरी तवज्जो देकर इस केस को जिंदा बनाए रखा है। मीडिया का दबाव न होता तो शायद कांडा अब तक जनस्मृति से लोप हो चुका होता।

पर यह भी गौर कीजिए- इस मामले में बार-बार किसका नाम याद दिलाया जाना जरूरी है, कांडा का या गीतिका का। चांद के मामले में चांद का या फिजा का। न्यायसंगत और तर्कसंगत क्या है और अंतिम लक्ष्य क्या है- आपराधिक रिपोर्टिंग इसकी मांग भी करती है। बहरहाल, इंतजार रहेगा कि ‍मीडिया की सक्रियता अपराध के बाद अंजाम तक पहुंचने में कितनी कारगर साबित होती है।

मीडिया ट्रैवलर ग्रुप के बारे में : मीडिया यात्री ग्रुप एक ऐसा मंच है जिसके जरिए महिला अपराधों से जुड़ी बड़ी और विवादास्पद खबरों की रिपोर्टिंग को खंगालने की कोशिश की जाती रहेगी। इसका मकसद खास तौर से महिला अपराध की रिपोर्टिंग को समझना और समाज की दशा और दिशा को लेकर साफ तौर पर दिख रहे संकेतों पर काम करना होगा।