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Written By रवींद्र व्यास

गपशप जैसी फिल्म समीक्षाएँ

इस बार 'सिनेमा की गपशप' ब्लॉग की चर्चा

blog charcha | गपशप जैसी फिल्म समीक्षाएँ
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ब्लॉग की दुनिया ने तमाम लोगों को आकर्षित किया है। वे अपने को अभिव्यक्त करने के लिए इस मंच का बेहतर उपयोग कर रहे हैं। यही कारण है कि आए दिन नित नए ब्लॉग बनते जा रहे हैं। इधर एक नया ब्लॉग फिल्मों पर बना है। यह ब्लॉग है फिल्मों की गपशप। लेकिन रूकिए। फिल्मी गपशप नाम पढ़कर इसके बारे में राय बनाने की कोई जल्दबाजी न कीजिए। यह मूलतः फिल्म समीक्षा का ब्लॉग है और इसकी ब्लॉगर हैं फिल्म समीक्षक वंदना अरविंद सोनी।

इसमें कोई दो मत नहीं कि हिंदी में अच्छी फिल्म समीक्षाएँ बहुत ही कम पढ़ऩे को मिलती हैं। एक समय था जब हिंदी में नेत्रसिंह रावत जैसे दिग्गज फिल्म समीक्षक थे। यूँ तो हिंदी में फिल्म समीक्षाएँ ज्यादातर युवा और वरिष्ठ साहित्यकार लिखते रहे हैं। मिसाल के तौर पर कुँवरनारायण से लेकर विष्णु खरे, प्रयाग शुक्ल से लेकर विनोद भारद्वाज और उदयन वाजपेयी से लेकर कुणाल सिंह फिल्म समीक्षाएँ करते रहे हैं। विनोद अनुपम ने इस दिशा में बहुत अच्छा काम किया है। इसका एक कारण तो यह भी रहा है कि तमाम अखबारों और पत्रिकाओं में साहित्यकार ही पत्रकार हुआ करते थे लिहाजा उन्होंने फिल्म समीक्षा और कॉलम लिखे लेकिन शुद्ध फिल्म समीक्षक बहुत कम हैं। यही नहीं, हिंदी में स्तरीय फिल्म पत्रिकाएँ भी कम हैं।

इस कमी को एक हद तक ब्लॉग की दुनिया पूरी करती दिखाई देती है। इधर दिनेश श्रीनेत का ब्लॉग इंडियन बाइस्कोप, प्रमोद सिंह का ब्लॉग सिलेमा-सिनेमा, और कभी-कभार रवीश कुमार का ब्लॉग कस्बा, अविनाश का ब्लॉग मोहल्ला, अनुराग वत्स का ब्लॉग सबद पर फिल्म संबंधी बेहतरीन लेख और समीक्षाएँ पढ़ने को मिल जाते हैं। इसी दिशा में वंदनाजी का यह नया ब्लॉग फिल्म समीक्षाएँ करता है।

यह नया ब्लॉग है और इसमें फिलहाल पाँच पोस्ट हैं। इसमें फिल्म हैरी पॉटर एंड द हाफ ब्लड प्रिंस, जश्न, लक, न्यूयॉर्क, शार्टकट फिल्मों की समीक्षाएँ हैं। हालाँकि वंदनाजी ने अपने ब्लॉग पर लिखा है कि वे हिंदी सिनेमा का कीड़ा हैं। फिल्म की चर्चा उनके भीतर जुनून की हद तक है। लेकिन इन पाँच पोस्ट को पढ़कर लगता है कि ये थोड़े से अध्ययन और मेहनत से बेहतर फिल्म समीक्षाएँ बन जाती।

इसमें फिल्म की संश्लिष्ट समीक्षाओं के बजाय फिल्म की कुछ खूबियों और और कमजोरियों का जिक्र भर है। उदाहरण के लिए वे 'जश्न' फिल्म की समीक्षा करते हुए लिखती हैं कि भारी आर्केस्ट्रा की वजह से संगीत का दम निकल गया है और गाने भी ऐसे हैं कि जनता की जुबान पर जल्द चढ़ते नहीं। बस गिटार से निकले टुकड़े अच्छे हैं। इसी तरह वे इस फिल्म पर भट्ट की फिलॉसफी के प्रभाव का जिक्र भी करती हैं।

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लक की तारीफ में वे लिखती हैं कि इसका बढ़िया कैमरा वर्क और एक्शन फिल्म की खासियत है जबकि शार्टकट की आलोचना में कहती हैं कि इसकी कहानी लचर है, औसत दर्जे का निर्देशन, फूहड़ मजाक और बेमजा संवाद इसकी कमजोरियाँ हैं। अक्षय खन्ना और अमृता राव के अभिनय की तारीफ करती हैं लेकिन इसकी वजहें नहीं बताती हैं।

हैरी पॉटर की नई फिल्म के बारे में वे कहती हैं कि यह निराश करती है क्योंकि इसमें रोमांच नहीं है और निर्देशक प्रेम कहानी के चक्कर में पड़कर असली चीज भूला बैठे हैं। यह भी समीक्षा नाकाफी है क्योंकि इसमें न तो स्पेशल इफेक्ट के बारे में कोई गंभीर टिप्पणी है न ही निर्देशकीय कमजोरी पर कोई आलोचनात्मक टिप्पणी। जाहिर है ये सब अधूरी टिप्पणियाँ हैं।

न्यूयॉर्क फिल्म की समीक्षा में भी वे यही तेवर अपनाती हैं। यानी चुस्त निर्देशन, बेहतरीन पटकथा अच्छा अभिनय की तो बात करती हैं लेकिन यह बताने में नाकामयाब रहती हैं कि निर्देशन क्यों चुस्त है, अभिनय क्यों अच्छा है और पटकथा क्यों बेहतरीन है। कहा जा सकता है कि ये गपशप जैसी ही फिल्म समीक्षाएँ हैं। इसमें अच्छी बात यह है कि कुछ दर्शकों की राय को भी जगह दी गई है।
इसका पता ये रहा - http://filmoia.blogspot.com/