गुरुवार, 25 अप्रैल 2024
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Written By राम यादव

काला धन: जानिए कहां है ब्लैक मनी के नए 'स्वर्ग'...

काला धन: जानिए कहां है ब्लैक मनी के नए ''स्वर्ग''... -
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स्विट्ज़रलैंड नहीं तो सिंगापुर ही सही : ऑस्ट्रिया और सिंगापुर तो बैंक खातों की गोपनायता के मामले में स्विट्ज़रलैंड के भी कान काटते हैं। जानकारों का कहना है कि स्विट्ज़रलैंड जब से अपनी तीखी आलोचना के कारण कुछ नरम पड़ने लगा है, वहाँ के बैंक अपने ग्राहकों को अपना पैसा सिंगापुर में अपनी ही शाखा या किसी दूसरे बैंक में स्थानांतरित करने की सलाह देने लगे हैं।

वित्त परामर्श कंपनी 'प्राइस वॉटरहाउस कूपर्स ' का कहना है कि सिंगापुर अगले कुछ वर्षों में स्विट्ज़रलैंड से भी आगे निकल जाएगा। अनुमान है कि निजी निवेशक स्विस या अन्य यूरोपीय बैंकों में जमा अपने धन में से 5 खराब डॉलर अभी से सिंगापुर में स्थानांतरित कर चुके हैं।

बैंकों में ऐसे सेफ़ भी होते हैं, जहाँ नोटों की गड्डी से अधिक सोने, चाँदी और प्लैटिनम जैसी मूल्यान धातुएँ रखी रहती हैं। गुप्त खातों के मालिक अपने धन के साथ बाज़ीगरों की तरह सट्टेबाज़ी भी करते हैं।
50 अंतरराष्ट्रीय वित्तसेवा कंपनियों के एशियाई मुख्यालय सिंगापुर में ही हैं। वहाँ वे सारी क़ानूनी सुवाधाएँ और सुरक्षाएँ उपलब्ध हैं, जो विदेशी निवेशक चाहेगा। निवेशित पूँजी पर लाभ या धन-संपत्ति के उत्तराधिकारी हस्तांतरण पर कोई कर नहीं लगता। विदेशियों की आमदनी चाहे जितनी हो, उन्हें केवल 15 प्रतिशत आयकर देना पड़ता है।

बैंक गोपनीयता इतनी अभेद्य है कि डेटा सीडी तो क्या, कोई जानकारी किसी बैंक से अब तक लीक नहीं हुई है। सिंगापुर के अधिकारी विदेशी सरकारों के किसी अनुरोध पर तभी नज़र डालते हैं, जब उस के साथ विश्वास करने के पूरे प्रमाण हों और कोई कार्रवाई तभी करते हैं, जब सिंगापुर का हाई कोर्ट अनुरोधकर्ता देश को सूचना देने का आदेश जारी करे।

गुमराह करने वाली गुहार : इस वैश्विक परिदृश्य को देखने के बाद यही कहना पड़ता है कि भारत में जो लोग विदेशी काले धन को भारत लाने की गुहार लगा रहे हैं, वे वास्तव में सीधी-सादी जनता को गुमराह कर रहे हैं। सबसे पहले तो सरकार से लेकर सरकार-आलोचकों तक न तो कोई यह जानता है और न आसानी से जन सकता है कि किस देश के किस बैंक में कितने भारतीयों के खाते हैं और उनमें कितना पैसा है।

बैंकों में ऐसे सेफ़ भी होते हैं, जहाँ नोटों की गड्डी से अधिक सोने, चाँदी और प्लैटिनम जैसी मूल्यान धातुएँ रखी रहती हैं। ऐसा भी नहीं है कि गुप्त खातों के मालिक एक बार पैसा जमा करने के बाद खर्राटे भरने लगते हैं। वे अपने धन के साथ बाज़ीगरों की तरह सट्टेबाज़ी भी करते हैं।

खाते में प्रायः अस्थाई तैर पर केवल ब्याज की आय, विदेशों में चल-अचल संपंत्ति या शेयरों के क्रय-विक्रय से मिला लाभ या डिविडेंड होता है। मुख्य धन तो शेयरों, निवेशपत्रों और जीवन बीमा पॉलिसियों में लग कर सारे विश्व के अर्थचक्र में घूम रहा होता है। वह केवल खातेदार के माँगने पर उसी को मिल सकता है।

जैसा कि अमेरिका और जर्मनी के उदाहरण भी दिखाते हैं, स्विट्ज़रलैंड जो भी द्विपक्षीय समझौते करता है या आंशिक सूचनाएँ देता है, उनमें केवल ब्याज, लाभ या डिविडेंड पर आयकर लगाने की बात लिखी होती है, न कि उस मूल धन को लैटाने की, जिस की नींव पर ये लाभ पैदा होते हैं। ब्याज या अन्य लाभों पर पहली बार आयकर देने के साथ ही मूल धन अपने आप काले से सफ़ेद, यानी अवैध से वैध धन बन जाता है।

स्विट्ज़रलैंड की बराबरी में सिंगापुर के उभरने का उदाहरण दिखाता है कि काले धन के मालिकों को जैसे ही लगता है कि उनका ब्याज या शेयरों पर लाभ भी ख़तरे में है, वे तुरंत किसी दूसरे कर-स्वर्ग को तलाश लेते हैं। सभी कर-स्वर्ग बहुत छोटे-मोटे देश हैं। मुख्य रूप से पर्यटन और बैंकिंग की आय पर जीते हैं।

अनुमान लगाया जा सकता है कि भारतीय फ़िल्म निर्माता, अभिनेता और पर्यटक स्विट्ज़रलैंड, सिंगापुर या मॉरिशस की मनोरम सुंदरता पर ही मुग्ध हो कर वहाँ भीड़ नहीं लगाते होंगे, वहाँ के बैंकों में पूछ-ताछ भी करते होंगे।
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