गुरुवार, 18 अप्रैल 2024
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Written By रवींद्र व्यास

एक जरूरी कोना-किताबी कोना

इस बार ब्लॉग चर्चा में हिन्दी किताबों का ब्लॉग

एक जरूरी कोना-किताबी कोना -
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एक ऐसे ब्लॉग पर क्यों लिखा जाए जिस पर सवा चार महीनों से कोई नई पोस्ट नहीं है, लेकिन हिन्दी का सबसे सम्माननीय और बड़ा पोर्टल होने के नाते वेबदुनिया और एक पुस्तक प्रेमी होने के नाते मैं इस पर एक जिम्मेदारी की तरह लिखना चाहता हूँ। इसलिए कि हिन्दी समाज के लिए यह एक जरूरी ब्लॉग है

एक ऐसे समय में जब हमारा ग्रेट इंडियन मिडिल क्लास बारह सौ रुपए के जूते खरीदने के लिए एक पल नहीं गँवाता और ढाई सौ रुपए की किताब खरीदने के लिए जिसकी पेशानी पर बल आ जाते हों तब यह एक प्यारा-प्यासा कोना हमारे लिए किताबों पर कुछ पुस्तक प्रेमियों को इकट्ठा कर किताबों पर बातें करता है। यहाँ आलोचना या समीक्षा का कोई पेशेवराना अंदाज नहीं है बल्कि किताबों पर अपने मन की सहज-सरल बातें हैं। किताबीलाल का यह ब्लॉग है किताबी कोना।

हिन्दी किताबों का यह कोना कहता है कि आजादी के बाद की प्रकाशित चर्चित, दिलचस्प किताबें... जो सामाजिक-दुर्भाग्य से अब विलुप्तप्राय हैं- उन्हें सहेजने-सँजोने, याद करने का एक छोटा-सा प्रयास है।
  एक ऐसे ब्लॉग पर क्यों लिखा जाए जिस पर सवा चार महीनों से कोई नई पोस्ट नहीं है, लेकिन हिन्दी का सबसे सम्माननीय और बड़ा पोर्टल होने के नाते वेबदुनिया और एक पुस्तक प्रेमी होने के नाते मैं इस पर एक जिम्मेदारी की तरह लिखना चाहता हूँ।      


इस प्रयास की खूब तारीफ की जाना चाहिए लेकिन किताबीलाल के इस कोने के नौ तोपची हैं फिर भी कुछ अच्छी पोस्ट होने के बावजूद यहाँ सन्नाटा पसरा है। हिन्दी का संसार फैला-पनपा है। समकालीन हिन्दी साहित्य में एक साथ जितनी पीढ़ियाँ सक्रिय हैं, यह शायद अभूतपूर्व है। पुरानी किताबों के नए संस्करणों के साथ कई विधाओं में नई किताबें खूब छप रही हैं। बावजूद इसके यहाँ पसरे सन्नाटे का क्या अर्थ लगाया जा सकता है? इसका तीखा अहसास किताबीलाल को है।

इसीलिए उन्होंने लिखा है कि इस ब्लॉग में अपनी आखिरी पोस्ट (http://kitabikona.blogspot.com/2008/04/blog-post.html) पर आई एक प्रतिक्रिया के जवाब मेभैया चंद्रभूषण ने ज़रा झल्लाई आवाज़ में हिन्दकिताबी कोने की दिनोंदिन बेहाल होते हाल की शिकायत दर्ज़ करवाई थी... और ग़लत नहीकरवाई थी... इन गुज़रे चंद महीनों में अपने किताबी कोने की स्थिति कमोबेश वैसी हहो चली है जैसे छोटे शहरों में (या कहें, अब तो हर जगह?) हिन्दी किताबों की दुकान पउपलब्ध साहित्यिक दोने में जैसे सुख कम, टोटके और टोने ज़्यादा मिलते हैं ...तो कुउसी अंदाज़ में बीच-बीच में हम कुछ टोने-टोटकों से किताबी कोने को जियाए हुए हैं... इस तरह किताबी कोना जीता रहेगा, मगर कुछ उसी तरह जीता रहेगा जैसे बहुत सारराष्ट्रीयकृत बैंकों की सालाना हिन्दी पत्रिकाएँ जीती रहती होंगी?...

बावजूद इस पोस्ट का सन्नाटा बरकरार है। यहाँ पोस्ट किए गए कमेंट्स भी बताते हैं कि इसे नियमित होना चाहिए। ब्लॉग चर्चा में इस ब्लॉग को शामिल करने का हमारा मकसद भी यही है कुछ दबाव हम भी बनाएँ ताकि इस ब्लॉग पर कुछ हलचल हो। खैर। इस ब्लॉग पर आपको किताबों पर बातें तो मिलेंगी ही लेकिन कुछ अधिक आत्मीय ढंग से। ये बातें एक सहृदय पाठक की बातें हैं।

किसी किताब को देखने-पढ़ने और सुनने का यह बिलकुल अलग ढंग है। उदाहरण के लिए धीरेंद्र अस्थाना के उपन्यास देशनिकाल पर चंद्रभूषण की टिप्पणी पर गौर किया जा सकता है। वे लिखते हैं कि फिल्मी दुनिया इस किताब में महज एक पृष्ठभूमि की तरह मौजूद है, ठीक वैसे ही जैसमुंबई शहर की जीवंतता। लेकिन पैसे और महत्वाकांक्षा का एक महाभँवर जब आपको खींच रहहोता है, तब भी दुनिया की और किसी भी जगह की तरह आप अपना स्वतंत्र अस्तित्व कैसबनाए रख सकते हैं, इस नोडल प्वाइंट की खोजबीन इसे फिल्मी दुनिया के शरीर के बजाय इसकी आत्मा के ज्यादा करीब ला देती है

इस पर आए प्रमोद सिंह के एक कमेंट पर चंद्रभूषण कहते हैं कि यह ब्लॉग बिलकुल ठहर-सा गया लगता है। इसका कुछ गतिरोध भंग होना चाहिए। आप यहाँ एक और व्याख्यात्मक पोस्ट डालिए और फिर कम से कम एक किताब पर लिखकर लोगों को कुछ लिखने के लिए उकसाइए। कहने की जरूरत नहीं कि किताबों पर बात करने के साथ ही यहाँ उलाहना-उकसाना भी है।

मैथिली गुप्त ने मेरे साक्षात्कार (भीष्म साहनी) किताब पर एक परिचयात्मक टिप्पणी है तो चंद्रभूषण ने कवि गिरधर राठी की एक पुरानी किताब को चीन में हो रहे ओलिंपिक का संदर्भ देते हुए बात की है कि इस किताब का सबसे गहरा पहलू है चीन में कविता, कला-संस्कृति की स्थिति के बारे में की गई पड़ताल, जिसके जरिए बाकायदा एक तरह का चीन-मंथन सामने आता है लेकिन इस ब्लॉग की इरफान की एक पोस्ट एक दुर्लभ किताब है। यह किताब है फिल्मी सितारे।

इसका जिक्र किया है कि यह 1957 में छपी थी और इसकी कीमत थी दो रुपए पचास पैसे। इसके कवर से लेकर इसमें दिए गए फोटो और सितारों के रेखाचित्रों पर जानकारी है। इसमें तेईस सितारों के रेखाचित्र हैं

ये तेईस सितारे हैं- अशोक कुमार, उषा किरण, कामिनी कौशल, गीता बाली, जयराज, डेविड, दिलीप कुमार, दुर्गा खोटे, देव आनंद, नरगिस, नलिनी जयवंत, निम्मी, निरुपा राय, नूतन, बलराज साहनी, मधुबाला, बीना राय, मनहर देसाई, मीना कुमारी, मोतीलाल, राजकपूर, वैजयंती माला और सुरैया। इसी पोस्ट में इस किताब से दिलीप कुमार का क्रिकेट खेलते हुए एक दिलचस्प फोटो है। इसमें दिलीप कुमार सेट पर ब्रेक के बीच गोल दामन की कमीज़ और पैजामा पहने हुए बल्लेबाज़ी कर रहे हैं और मुकरी विकेटकीपरी कर रहे हैं।

प्रत्यक्षा ने बचपन में पढ़ी रूसी किताबों को याद करते हुए बॉबी मोरिस के साथ जहान की सैर अच्छी पोस्ट लिखी है। वे लिखती हैं किताब इतनी रोचक थी कि हम उसे कई बार पढ़ गए थे। शैली मज़ेदार थी और कहानी में बच्चों और कुत्तों की मानसिकता का इतना प्यारा वर्णन था कि कई बार बड़ी तीव्र इच्छा होती कि काश उन बच्चों सी हमारी जिंदगी होती।
हमारा ज्ञान अंतरिक्ष के बारे में भी खासा बढ़ गया था और यूरी गगारिन, वैलेंतीना तेरेश्कोवा जैसे नाम हमारी ज़बान पर चढ़ गए थे। ये किताब शायद उस दौर में लिखी गई थी जब सोवियत संघ और अमेरिका में दौड़ चल रही थी, अंतरिक्ष में पहली घुसपैठ किसकी हो, स्पूतनिक और अपोलो, चाँद और पहली अंतरिक्ष यात्रा? वोस्तोक और सोयूज़, जेमिनी और अपोलो।

पठनीयता और प्रवाह कसाथ अस्ट्रोनोमी और विज्ञान का ऐसा अद्भुत संसार इस किताब ने खोला कि हम हैरानसाइंस फिक्शन पढ़ने का चस्का इसी किताब की देन है

हैं ना किताबों को याद करने का आत्मीय ढंग। इसी तरह चंद्रभूषण ने लंबी दाढ़ी किताब के बहाने लेखक जीपी श्रीवास्तव को याद किया है। गाँधीजी की संक्षिप्त आत्मकथा किताब का एक मार्मिक अंश भी दिया गया है जिसमें बीड़ी पीने और आत्महत्या करने की कोशिश का वर्णन है। बारह आने की यह किताब अब दुर्लभ होगी और इसकी असल कीमत क्या है हम जानते हैं।

इसके लेखक मथुरादास विक्रमजी और अनुवादक काशीनाथ त्रिवेदी हैं। पढ़ने के अलावा यहाँ सुनने का मजा भी लिया जा सकता है। टॉलस्टॉय ने अपने बेटे को अपनी किताब समर्पित की थी- निकिता का बचपन। इसके एक अंश को यहाँ सुना भी जा सकता है। यहाँ किताबीलाल ने अपनी फेवरिट किताबों की लिस्ट भी दी है जिसमें यशपाल के झूठा सच से लेकर मंजूर एहतेशाम के सूखा बरगद और चंद्रभूषण व आर. चेतनक्रांति के कविता संग्रहों क्रमशः इतनी रात गए और शोकनाच का जिक्र है।

किताबीलाल के इस ब्लॉग के नौ तोपची हैं। इनमें v9y, मैथिली गुप्त, चंद्रभूषण, प्रमोद सिंह, इरफान, प्रियंकर, प्रत्यक्षा, अभय तिवारी, यूनुस और काकेश शामिल हैं। इनमें से कुछ की ही पोस्ट हैं। बाकी अभी खामोश हैं।

अंत में इस ब्लॉग पर आए चर्चित युवा-कवि कथाकार गीत चतुर्वेदी के इस कमेंट से यह चर्चा खत्म करते हैं कि जिन गिने-चुने ब्लॉग्स पर मेरा आना-जाना है, उनमें से एक है ये किताबी कोना पअक्सर ख़ाली हाथ लौट जाना होता है यहाँ से। किताबीलालजी (मुझे पता नहीं, कौन हैं और प्रोफ़ाइल में कोई मेल आईडी भी नहीं, वरना अलग से आपको मेल करता), आपसगुज़ारिश है कि इस बंदप्राय अवस्था को समाप्त करें और इसे रेगुलर चलाएँ/चलवाएँ। भले इसके फॉर्मेट में थोड़ा बदलाव कर लें (यानी हिन्दी-अँग्रेजी दोनों ही हों)।

इस ब्लॉग का पता है-
http://kitabikona.blogspot.com