गुरुवार, 25 अप्रैल 2024
  • Webdunia Deals
  1. सामयिक
  2. »
  3. विचार-मंथन
  4. »
  5. विचार-मंथन
Written By ND

अमेरिका के अहंकार की थोथी जीत

अमेरिका के अहंकार की थोथी जीत -
-कैलाश विजयवर्गीय

संसद में सरकार द्वारा विश्वास मत प्राप्त करने के पहले व सदन की कार्रवाई के दौरान जो भी हुआ वह हम सबने देखा, सुना और भोगा है। हर व्यक्ति की अपनी राय हो सकती है। किसी एक के तरफ मुँह करें तो दूसरे की ओर पीठ हो ही जाती है, इसलिए इस सारे खेल के किसी भी खिलाड़ी को लेकर मैं कुछ नहीं कहना चाहता। चूँकि खेल भी सभी के सामने हुआ है, इसलिए उस पर कुछ भी कहना व्यर्थ है।

  पोखरण के विस्फोट ने सारी दुनिया को लगभग चकित कर दिया था। हमारी सहायता बंद हुई, हमें धमकाया गया। वाजपेयी की पूरी टीम ने अर्थव्यवस्था को पूरी तरह नियंत्रित किया, सीमाओं पर दुश्मनों को न सिर्फ हराया बल्कि अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत को गौरवान्वित किया      
घटना बहुत बड़ी है। ऐसी घटनाएँ इतिहास में इक्का-दुक्का ही होती हैं और इनके पीछे कोई न कोई बड़ा कारण भी जरूर होता है, इसलिए इस घटना को एक विशेष दृष्टि से देखा जाना जरूरी है। स्मरण कीजिए रामायण की वह घटना जब श्रीराम का राजतिलक होना तय हो गया था। निर्धारित घड़ी आने ही वाली थी और कैकयी ने एक अलग जिद ठान ली। घटनाक्रम दशरथ की मृत्यु और राम के वनवास तक जा पहुँचा। आप ही सोचें कि एक भारतीय नारी अपनी जिद के लिए अपने सौभाग्य तक की बलि दे सकती है। पति रूपी सबसे महत्वपूर्ण जीवनसाथी की मृत्यु भी उसके समक्ष अपनी जिद की तुलना में छोटी हो जाती है।

इसी तरह महाभारत युद्ध की जड़ों में गांधार राज परिवार की सर्वांग सुंदर कन्या का विवाह एक दृष्टिहीन से होना हो सकता है। उसकी टीस भी निरंतर षड्यंत्रों को जन्म देती रही है और एक कुनबा समाप्त हो गया। भारतीय मूल की ये दो सबसे बड़ी घटनाएँ अपने मूल में ही अहम की चोट और टीस लिए हुए हैं। भारतीय राजनीति या वर्तमान सार्वजनिक जीवन के एक बहुत छोटे पात्र के नाते मैं पिछले दस दिनों की घटनाओं को किसी अहम के पिटने से जोड़कर देखता हूँ।

पोखरण के विस्फोट ने सारी दुनिया को लगभग चकित कर दिया था। हमारी सहायता बंद हुई थी, हमें धमकाया गया था और हम अंतरराष्ट्रीय बिरादरी से लगभग जात बाहर जैसे हो गए थे। लेकिन 'अटल चुनौती अखिल विश्व को भला बुरा चाहे जो माने', हमने ही बचपन से गाया था। अटलबिहारी वाजपेयी की पूरी टीम ने अर्थव्यवस्था को पूरी तरह नियंत्रित किया, सीमाओं पर दुश्मनों को न सिर्फ हराया बल्कि अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत को गौरवान्वित भी किया।

  क्षेत्रीय मुद्रित मीडिया जरूर अपनी तीखी धार से बुराई पर अपनी क्षमता से अधिक वार कर रहा था,लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर सिर्फ और सिर्फ खबरें रोपी जा रही थीं। देश-दर्शक और लोकतंत्र पूरे समय लुटता-पिटता रहा। किसने किस पर क्यों विश्वास किया, मालूम नहीं      
बात आई-गई हुई। सब सामान्य हो गया। लेकिन कहीं न कहीं किसी का अहंकार पिट गया था। मन में एक गाँठ बनी रह गई थी। वह अहंकार अमेरिका का था, गाँठ उसके दिमाग में थी, इसलिए पिछले दस दिनों के घटनाक्रम में मैं अमेरिकी हाथ देखता हूँ। वर्तमान सरकार बची रहे। किसी भी तरीके से बचे। जायज, नाजायज, कुछ भी हो, सरकार बचना ही चाहिए। प्रत्येक क्षण अमेरिका की रुचि बनी रही। उसकी इस रुचि को कार्यान्वित करने में हमारे बड़े औद्योगिक घराने माध्यम बने। बड़े मीडिया घराने खबरों की प्लांटेशन के उर्वर खेत बन गए।

क्षेत्रीय मुद्रित मीडिया जरूर अपनी तीखी धार से बुराई पर अपनी क्षमता से अधिक वार कर रहा था,लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर सिर्फ और सिर्फ खबरें रोपी जा रही थीं। देश-दर्शक और लोकतंत्र पूरे समय लुटता-पिटता रहा। किसने किस पर क्यों विश्वास किया, मालूम नहीं। अत्यधिक विश्वास में लोकहित की जानकारी जरूर प्राप्त हो गई। किंतु उसका नजरिया कुछ और ही कर दिया गया। बात अर्थहीन हो गई और झूठे बतंगड़ सिक्के की तरह चल निकले।

वैसे भी प्रगति कर चुके हर देश को भारत एक खरीददारों की मंडी ही दिखता है। हम 100 करोड़ से ज्यादा भारतीयों की व्यक्तिगत क्रय क्षमता भले ही कम हो पर एक बड़ी संख्या के आधार पर रिटेल वर्ल्ड के सामने हम महाशक्ति हैं। इसलिए भारत की लोकसभा में भारतीय तंत्र को भ्रष्ट करने का बड़ा आरोपी भी अमेरिका है।

राजनीतिक संस्कारों की दृष्टि से मध्यप्रदेश को गर्व करने के पूरे कारण हैं। अपनी राजनीतिक प्रतिबद्धता के लिए हर सीमा तक जाकर बलिदान देने की परंपराएँ मध्यप्रदेश में तुलनात्मक रूप से अधिक हैं। कुशाभाऊ ठाकरे, राजमाता विजयाराजे सिंधिया, मोरू भैया गद्रे, राजाभाऊ महाकाल हमारे ही पूर्वज और अग्रज थे जो अपने प्राणों तक को विचार के आगे दूसरी प्राथमिकता पर रखते थे। आज लोकतंत्र को दागी करने में हमारे ही साथियों की भूमिका सबसे पहले पता चली थी। कैडर-बेस्ड दल के रूप में पहला उदाहरण पहले हमारा ही दिया जाता था। अब यह क्या हो गया।

पूरी विनम्रता और शर्म से मैं स्वीकार करता हूँ कि हाँ, मैं उसी समुदाय का एक अकिंचन सदस्य हूँ जो लोकतंत्र को दागी करने का सिद्ध दोष अपराधी है। लेकिन मैं यह बात कहने की इजाजत चाहता हूँ कि व्यक्ति, समूह, संस्थाएँ और दल आएँगे-जाएँगे व प्रजातंत्र सदैव जीवित रहेगा।

अब हमें यह सोचना होगा कि आने वाले कल को भी हमें ही अपना चेहरा दिखाना है। हमारे पूर्वजों ने हमें परिपक्व व्यवस्था, समृद्ध परंपराएँ और उज्ज्वल इतिहास दिया था। हमें अपनी पहली पीढ़ी पर गर्व है। हम अपनी आने वाली पीढ़ी को लोकतंत्र का कैसा स्वरूप देकर जाएँगे। लोकतंत्र को हमने जैसा कर दिया है, उसे क्या भविष्य स्वीकार भी करेगा? इन डरावने प्रश्नों पर तत्काल विचार करना होगा। विचार ही नहीं, निर्णय भी उतनी ही जल्दी लेना होगा। (लेखक मप्र के लोक निर्माण, विज्ञान तकनीक एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री हैं)