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'पर्वतराज पर भीड़ से आहत हूं'

'पर्वतराज पर भीड़ से आहत हूं' - Sir Edmund Hillary,
2007 में जब सर एडमंड हिलेरी 87 वर्ष के हो गए थे, तब 'आउटलुक' साप्ताहिक के लिए रोहित कुमार 'हैप्पी' ने उनका साक्षात्कार लिया था। 20 जुलाई को हिलेरी की जयंती है। इस मौके पर हिलेरी से लिए साक्षात्कार के अंश...
 
सर एडमंड हिलेरी 87 वर्ष के हो गए हैं, पर उनका हौसला हिमालय और विश्व की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट की तरह बुलंद है। शेरपा तेनजिंग नोर्गे के साथ 1953 में 8848 मीटर ऊंचे एवरेस्ट पर विजय प्राप्त करने वाले पहले इंसान न्यूजीलैंड निवासी हिलेरी पर्वतारोहण में सारी दुनिया के हीरो हैं मगर स्वयं को साधारण ही मानते हैं और यह भी मानते हैं कि उन्होंने एवरेस्ट को फतह करके कोई बड़ा कारनामा नहीं किया। हिलेरी से हुई बातचीत...
माउंट एवरेस्ट पर विजय रोमाचंक रही होगी? हिमालय को पराजित कर आप क्या सोच रहे हैं?
एवरेस्ट से पहले मैं न्यूजीलैंड में कई जगह पर्वतारोहण कर चुका था, मगर हिमालय अनुपम था। शेरपा तेनजिंग नोर्गे मुझसे अधिक रोमांचित थे। शेरपा ने मुझे बधाई दी। मैंने तेनजिंग की तस्वीरें खींचीं, मगर अपनी तस्वीर लेना जैसे भूल गया। 
 
एवरेस्ट शिखर पर आप लोग करीब 15-20 मिनट ठहरे, इस बीच आपने क्या किया?
तेनजिंग की फोटो लेने के अतिरिक्त मैंने एवरेस्ट के आसपास के अन्य पहाड़ों की तस्वीरें लीं। इस बीच तेनजिंग ने माउंट एवरेस्ट पर बर्फ हटाते हुए थोड़ी सी खुदाई करके वहां कुछ मिठाई दबा दी और ईश्वर से प्रार्थना की। उसका विश्वास था कि शिखर पर कई बार ईश्वर समय बिताने आते हैं। यह मिठाई उन्हीं को भेंट की गई थी। 
माउंट एवरेस्ट का सफर रोमांचक तो था, मगर खतरनाक भी रहा होगा, क्या कभी डर भी लगा?
हां, मैं लगातार डरता रहा, विशेषकर उन जगहों पर, जहां बर्फ खिसककर गिरती थी। उस समय मेरा ध्यान पूर्णतया चढ़ाई पर केंद्रित था और सबसे उपयुक्त रास्ता तलाशने में भी ध्यान लगा रहता था। सबसे कठिन काम शिखर की चोटी के समीप वाले 40 फुट ऊंचे मार्ग को लांघना (जिसे अब हिलेरी स्टेप कहा जाता है) था। मैं इस बात के लिए दृढ़प्रतिज्ञ था कि तेनजिंग की भांति शिखर पर जहां तक हो सकेगा चढूंगा।

नेपाली लोगों के साथ आपके कैसे संबंध रहे?
ओह, नेपाली लोगों को मैं बहुत पसंद करता हूं। मुझे वहां अच्छे स्वभाव वाले, उदार और बहुत परिश्रमी लोग मिले। मैंने वहां अस्पताल, स्कूल, पुलों के अतिरिक्त एक हवाईअड्‍डे का निर्माण भी करवाया। नेपाली लोगों के लिए काम करके मुझे बहुत आनंद की अनुभूति हुई है। नेपाली प्यार से मुझे बर्रा साहब कहकर बुलाते थे, जिसका मतलब होता है बड़ा आदमी। उन्होंने मुझसे जिस चीज की भी आवश्यकता जताई, उसका मैंने निर्माण भी करवाया और मुझे इसका गर्व है। 
हिमालय की अपनी यादों के बारे में कुछ बताएं?
हिमालय से मेरी सुखद और दु:खद दोनों यादें जुड़ी हुई हैं। जिस हिमालय ने मुझे प्रसिद्ध बनाया, उसी की तराई में मैंने अपनी पहली पत्नी और बेटी खोई। उनकी मौत 1975 में एक हेलीकॉप्टर दुर्घटना में हुई। मगर मैं मानता हूं कि व्यक्ति को अपना संग्राम जारी रखना चाहिए। 
 
एवरेस्ट विजय के साथी शेरपा तेनजिंग नोर्गे से जुड़ी कुछ यादें। 
मैं तेनजिंग से पहले परिचित नहीं था। पहली बार काठमांडू में एवरेस्ट पर्वतारोहण के समय ही उनसे मुलाकात हुई। तब तेनजिंग हमारे दल में शामिल हुए थे। वे पूरी तरह से तन्दुरुस्त, शक्तिशाली थे और मैं स्वयं भी बहुत सक्षम था। मैंने यह निर्णय लिया कि मैं तेनजिंग के साथ जोड़ बनाकर पर्वतारोहण करूंगा।

तेनजिंग उस समय अच्छी अंग्रेजी नहीं बोल सकते थे और मैं उनकी भाषा नहीं बोल सकता था। बाद में जब मैं उच्चायुक्त के रूप में दिल्ली में था, तेनजिंग का कायाकल्प हो चुका था। वे बहुत अच्छी अंग्रेजी बोलने लगे थे। वास्तव में उनकी अंग्रेजी उतनी ही अच्छी कही जा सकती है, जितनी मेरी थी। अब हम पूर्ण रूप से वार्तालाप कर सकते थे और इसी समय मैंने तेनजिंग के बारे में सबसे अधिक जाना और हम घनिष्‍ठ मित्र भी बने। 

आपके और तेनजिंग में एवरेस्ट पर पहले कौन पहुंचा, इस बात को लेकर विवाद क्यों है?
इसका कारण शायद राजनीतिक और क्षेत्रीय है। काठमांडू में कुछ लोग यह चाहते थे कि तेनजिंग नोर्गे को एवरेस्ट पर पहुंचने वाला पहला व्यक्ति होना चाहिए था। बहुत वर्षों तक हम (हिलेरी-तेनजिंग) इस बात पर सहमत थे कि हम सभी जगह यही कहेंगे कि हम दोनों लगभग एक साथ एवरेस्ट पर पहुंचे थे। उनकी मौत के बाद मैंने सच बताने का फैसला किया। मैं तेनजिंग से कुछ कदम आगे था, परंतु यह कहना कि मैं उनसे पहले एवरेस्ट पर पहुंचा था, बड़ा कठिन है। हकीकत तो यह है एवरेस्ट के शिखर पर हम एक दल के रूप में ही पहुंचे थे। 
आज एवरेस्ट पर्वतारोहियों के लिए पूरी तरह खुला है। इस बारे में आप क्या सोचते हैं? 
एवरेस्ट मार्ग जिस प्रकार आज पर्वतारोहियों के लिए खुला है और जिस प्रकार दुर्घटनाएं हो रहीं हैं, उससे मैं बहुत आहत हूं। इसके लिए नेपाल की सरकार ही जिम्मेदार है। मैंने इस बारे में नेपाल सरकार से बातचीत भी की थी और यह सुझाव दिया था कि एवरेस्ट पर पर्वतारोहण करने वालों की संख्या निर्धारित होनी चाहिए। मगर सरकार को अच्छी आमदनी होती है, इसलिए वह नीति नहीं बदलती।
 
अपने भारत प्रवास के बारे में बताएं।
वहां सबसे अधिक आनंद मुझे गंगा ने दिया। गंगा में जेट बोटिंग सभी विजय यात्राओं में सबसे अधिक आनंददायक थी। यूं तो जेट बोट बड़ी रोमांचक होती है, मगर गंगा पर लोगों के दोस्ताना स्वभाव ने मुझे सबसे अधिक प्रभावित किया। एक दिन हम गंगा तट पर अपना‍ शिविर लगाकर रुके, वहां एक छोटा सा गांव था। गांव के बाहर ही मक्के का एक खेत था। हमने गांव के मुखिया से शाम के खाने के लिए कुछ मक्का खरीदने की बात की। मुखिया ने अपने कुछ नौजवान लड़कों को जल्दी से मक्का लाने के लिए कहा। मक्का लेने के बाद मैंने कीमत पूछी। उन्होंने कहा, यह हमारी ओर से उपहार है। आपकी महान यात्रा पर यह हमारी भेंट है। मैं अभिभूत हो गया, इस भारत में जीवन बहुत अच्छा था। मैंने और मेरी पत्नी ने वहां बहुत अच्छा समय बिताया और हमें बहुत आनंद आया। 
 
आप पूरी दुनिया घूमते रहे फिर भी वापस न्यूजीलैंड में ही बसने का फैसला क्यों किया? 
न्यूजीलैंड मेरा घर है। मैं यहां पैदा हुआ। न्यूजीलैंड में वह सब है, जो मैं पसंद करता हूं। यहां पार करने को नदियां हैं, चढ़ने को पहाड़ और तैरने को समुद्र। हकीकत तो यह है कि मैंने इसके अलावा और कहीं बसने के बारे में सोचा तक नहीं। मैंने खूब भ्रमण किया और बहुत सी सुंदर और रोमांचक जगहें देखीं, परंतु न्यूजीलैंड ही मेरे अनुकूल है।
 
एवरेस्ट पर जाने वाले युवाओं को क्या कहना चाहेंगे? 
बड़े लोगों के अनुभव सुनें और समझें। पूर्ववर्ती पर्वतारोहियों के ज्ञान और अनुभव से लाभ उठाएं। 
(लेखक रोहित कुमार 'हैप्पी' न्यूजीलैंड से प्रकाशित हिंदी पत्रिका 'भारत-दर्शन' के संपादक हैं)