मंगलवार, 19 मार्च 2024
  • Webdunia Deals
  1. सामयिक
  2. विचार-मंथन
  3. विचार-मंथन
  4. Rampal Satlok Ashram
Written By

एक था रामपाल, एक था रावण

एक था रामपाल, एक था रावण - Rampal Satlok Ashram
-वर्तिका नन्दा
एक था रामपाल। हरियाणा में 12 एकड़ के फैले अपने साम्राज्य में वह एक राजा की-सी ठाठ के साथ रहता था। खुद को भगवान मानता था और अनुयायियों को भी ऐसा ही मानने के लिए मनवा लेता था। इसी रामपाल ने इस बार उसी पुलिस और न्यायिक व्यवस्था को होश फाख्ता कर दिए जिसके नाक के तले वह रामपाल से बाबा रामपाल बना। वह उसी मीडिया पर हमले करवाता हिंसक पशु बन गया जिसकी वजह से वह अब तक अपनी सत्ता पर काबिज होने का साहस जुटा पाया था। जब याद आया कि उस पर मामला देशद्रोह का बनता है तो सब जुटे लेकिन अनुयायी तब भी आखिरी समय तक रामपाल का सुरक्षा कवच बने रहे।
 
एक हफ्ते की कवायद, पत्रकारों पर जानलेवा हमले के प्रयासों, अनुयायियों के जरिए हमले और मीडिया पर पूरी कवरेज के बीच रामपाल की गिरफ्तारी के बाद तकरीबन सबने राहत की सांस ली। रामपाल जेल पहुंचे और भाग्य पर लिखी अपनी ही किताब पढ़ते रहे। उनके साथ ही 789 अनुयायी भी जेल पहुंचे। अब बारी मीडिया, पुलिस और न्यायिक व्यवस्था की है कि वह आत्म-मंथन करे ताकि आने वाले समय में नए रामपालों की पैदाइश न हो। 
 
क्या रामपाल एक ही दिन में राजानुमा हो गया था या फिर पुलिस इतनी मासूम थी कि उसे पता ही न चला कि अपने बड़े सिंहासन के नीचे रामपाल हथियारों का जखीरा लिए बैठता था। पिछले 20 सालों में निजी मीडिया के आने के बाद कई अपराधी बाबाओं के सम्मान से नवाजे जाने लगे हैं। उनका स्टेटस बढ़ गया है, साथ ही उनकी तिजोरी का भार और अनुयायियों की संख्या भी। वे खुलेआम सरकारी मोहर के साथ टैक्स-फ्री बदमाशियां करते हैं और बदले में पाते हैं – आस्था और सम्मान। इसलिए रामपाल का यह जो काला पन्ना खुला है, सभी को उसे बार-बार पढ़कर आने वाले समय के लिए बदलाव की मुहिम शुरू करनी चाहिए।
 
यहां एक बात अनुयायियों की भी। बेशक सामाजिक संरचना में जिंदगियां डर पर बसती हैं। डगमगाती मानसिक स्थितियों के बीच इन अनुयायियों को बाबाओं में ताकत का च्यवनप्राश ढूंढने की आदत होती है। वे तमाम अनुयायी जो बाबा को नहलाने में इस्तेमाल होने वाले दूध की खीर प्रसाद समझकर खा रहे थे, काश, ऐसी आस्था अपनी कर्मशीलता को बढ़ाने और स्व-विकास पर लगा लेते। इन्हीं अनुयायियों ने जब मीडिया पर एसिड की बोतलें फैंकी, तब सोचा तक नहीं कि यही मीडिया कई बार उन्हें ऐसे बाबाओं से बचने की हिदायतें देता रहा है और लोकतंत्र के चौथे स्तंभ के रूप में उन्हें सतर्क रहने की अपनी जिम्मेदारी निभा रहा था।
 
कोई नहीं जानता कि इस मामले में न्यायिक प्रक्रिया कितनी लंबी पारी खेलेगी। बेशक रामपाल को एक बढ़िया वकील मिलेगा ही। रामपाल को बेगुनाह, निरीह और मासूम साबित करने की तमाम जिरहें होंगी लेकिन इन सबके बीच क्या यह सोचने का समय भी नहीं है कि हमें कानूनी व्यवस्था में भी ढीले पड़े पेंचों को अब ठीक करना चाहिए।
 
रामपाल अब जेल में है। आसाराम भी जेल में ही हैं। अनुयायी अब जो भी सोचें, इस समय इन खबरों को तन्मयता से फॉलो किया जाना चाहिए। मीडिया के स्वभाव में हड़बड़ाहट होती है। वह जल्द अगली स्टोरी की तलाश में निकल पड़ता है, लेकिन जिन खबरों से सामाजिक व्यवस्थाएं चरमराने के कगार पर पहुंच रही हों, उन्हें बार-बार दिखाया और बताया जाना जरूरी है। जिन आंखों पर काली पट्टी बंधी हो, उन्हें बार-बार आईना दिखाना चाहिए। साल में एक बार रावण को जलाने से रावण नहीं मरते। जब हमारे पास असल जिंदगी में रावण मौजूद हैं तो फिर उन्हीं के जरिए असली कथा क्यों न कही जाए।