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Last Updated : शनिवार, 10 जनवरी 2015 (13:14 IST)

फ्रांस में जातीय हिंसा बढ़ने का खतरा...

फ्रांस में जातीय हिंसा बढ़ने का खतरा... - Paris Violence
फ्रांस में बढ़ रही मुस्लिम जनसंख्या और स्थानीय निवासियों के बीच तनाव बढ़ रहा है और इस कारण से इस देश में भी जातीय तनाव के चलते फ्रंट नेशनल (फ्रांस की भाजपा) की लोकप्रियता बढ़ रही है। यह पार्टी देश में परंपरागत फ्रांसीसी सांस्कृतिक पहचान की पक्षधर है। इस कारण से इस्लाम को लेकर देश में अलगाव और सदमे की स्थिति है। बहुत से उदारवादी लोगों का मानना है कि समाज अब गहरे तक विभाजित हो गया है। इस स्थिति हाल में हुई कुछ घटनाएं जिम्मेदार हैं और अब शार्ली एब्दो के कार्यालय में गोलीबारी से बारह लोगों की मौत हो गई, जबकि वर्ष 2012 में तूल्से में अल कायदा के कट्‍टरपंथियों द्वारा सात लोगों की हत्या लोगों के दिमाग से नहीं मिटी है। 
 
इसी तरह पिछले वर्ष ब्रसेल्स में एक यहूदी म्यूजियम में हत्याएं कर दी गई थीं। इसके लिए फ्रांस और अल्जीरिया नागरिकता वाले एक व्यक्ति को गिरफ्तार किया गया था। साठ वर्ष पहले अल्जीरिया के स्वतंत्रता संग्राम होने के बाद से देश के स्थानीय लोगों और बढ़ती मुस्लिम जनसंख्या के बीच शत्रुता बढ़ रही है। विदित हो कि फ्रांस में मुस्लिम जनसंख्या देश की कुल आबादी की सात फीसदी के बराबर है। वर्षों तक फ्रांस में जातीय तनाव बढ़ता रहा है और सच्चाई तो यह है कि इस देश में सभ्यताओं का संघर्ष देखने को मिल रहा है। घृणा की कड़ाही चढ़ गई है और इसी के चलते शार्ली एब्दो हत्याकांड जैसी घटनाएं हो रही हैं क्योंकि दोनों समुदायों के बीच वैमनस्यता अधिकाधिक बढ़ती ही जा रही है। 
 
वैसे भी फ्रांस का अपने मुस्लिम समुदाय को साथ में बनाए रखने का रिकॉर्ड घृणास्पद ही रहा है और इस कारण से इस देश में मुस्लिम अधिकाधिक कट्‍टरपंथी होता जा रहा है। इन लोगों की स्थिति को उत्तरी पैरिस के उपनगरों में रहने वाले लोगों के युवाओं के रुझान से समझा जा सकता है। इन स्थानों से बड़ी संख्या में युवा जिहादी बनकर सीरिया में लड़ने के लिए चले गए हैं, जिनकी संख्या 700 बताई जाती है। विदित हो कि फ्रांस के साथ यह समस्या हमेशा से नहीं थी लेकिन 19वीं और 20वीं सदी में देश के लोगों ने उन लोगों की संस्कृति को अपनाया जो कि फ्रांसीसी औपनिवेशिक शासन के अंतर्गत उनसे जुड़े रहे हैं। दोनों समुदायों के बीच प्यार बना रहा। वर्ष 1954 में जब अल्जीरियाई युद्ध छिड़ा तो हजारों मुस्लिम सैनिक फ्रेंच फोर्थ रिपब्लिक के प्रति निष्ठावान बने रहे।
 
इन साहसी लोगों को हारकीज के नाम से जाना गया, लेकिन बाद में 1962 में स्वतंत्रता के बाद फ्रांस गणराज्य ने इनके साथ विश्वासघात किया। राष्ट्रपति चार्ल्स द गाल ने इनके बारे में कोई ध्यान नहीं दिया और इन्हें फ्रांस में बसने का अधिकार भी नहीं दिया। बहुत सारे लोगों ने यहां से भागकर जान बचाई और फ्रांस सरकार ने इन्हें तीसरे दर्जे के नागरिकों की तरह नजरबंदी शि‍विरों में भेड़-बकरियों की तरह रखा। बाद में पैरिस की सरकार ने इन्हें बसने की अनुमति दी, लेकिन उनके साथ बड़े पैमाने पर भेदभाव समाज में गहरे तक बना रहा। इस ऐतिहासिक दुश्मनी के चलते इस्लामी अतिवाद को जन्म दिया।
 
विदित हो कि वर्ष 1960 और 70 के दशक में जब फ्रांस में आर्थिक समृ‍‍द्ध‍ि बढ़ रही थी तब फ्रांस में अल्जीरिया, मोरक्को और ट्‍यूनीशिया से श्रमिकों का फ्रांस में बड़े पैमाने पर आगमन हुआ लेकिन इन्हें फ्रांस के समाज में एकाकार होने देने की जरूरत नहीं समझी गई और इन मुस्लिमों को अल्पसंख्यकों के लिए अविकसित स्थानों पर बसा दिया गया। इस सामाजिक भेदभाव के परिणामस्वरूप मुस्लिम युवकों में अतिवाद को जन्म दिया। वहीं दूसरी ओर स्थानीय फ्रांसीसी लोगों में प्रतिक्रिया जाहिर की गई। इसी बीच वर्ष 2002 में फ्रांस ने दक्षिणपंथी पार्टी फ्रंट नेशनल को तरजीह दी, लेकिन राष्ट्रपति के चुनावों में इस पार्टी की नेता ज्यां-मैरी ले पेन को दूसरे स्थान से संतोष करना पड़ा।
 
सीरिया और इराक में लड़ रहे हैं फ्रांसीसी युवा...पढ़ें अगले पेज पर....
 
 

इन चुनावों में जीत याक शिराक की हुई, लेकिन इस मुद्‍दे पर राष्ट्रपति शिराक का रवैया भी कट्‍टरपंथी ही था। उन्होंने मुस्लिम महिलाओं के हिजाब पहनने का विरोध किया था जिसे एक धार्मिक चिन्ह माना जाता है। शिराक का कहना था कि मुस्लिम महिलाओं का हिजाब पहनना फ्रांस के चर्च और राज्य के बीच औपचारिक विभाजन को चुनौती देता है। इसलिए महिलाओं के हिजाब पहनने पर रोक लगा दी गई थी और आगे के वर्षों में सरकारी इमारतों में मुस्लिम महिलाएं के सिर ढंकने को रोका गया था। अब इस बात से आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि फ्रांस की गंदी बस्तियों और उपनगरों में पले-बढ़े युवा मुस्लिमों में यह बात घर कर गई कि वे प्रजातीय भेदभाव और दमन के शिकार हैं। वे पुरानी औपनिवेशिक लड़ाइयों के स्थान पर नए जमाने की इस लड़ाई में खुद को सैनिक और योद्धा समझने लगे।
 
इसी कारण से वर्ष 2005 में जब फ्रांस में पेरिस के उपनगर क्लिजी-सू-ब्वा में दंगे भड़के थे तब समाचार पत्रों ने इसे 'फ्रेंच इंतिफाद' का नाम दिया था। यह एक ऐसा शब्द था, जिसे मुस्लिम युवकों ने गर्व से स्वीकार किया था क्योंकि यह उनकी तुलना संघर्षरत फिलिस्तीनियों से करता था जो कि इसराइली कब्जे का विरोध करते रहे हैं। हालांकि इन दंगों का मूल कारण पुलिस की‍ गिरफ्तारी से बचने के लिए दो युवकों की मौत थी जिनकी करंट लगने से जान चली गई थी। पर यह हिंसा कई दिनों तक चलती रही थी और इस कारण राष्ट्रपति शिराक को आपातकाल घोषित करना पड़ा था। इन दंगों को भड़काने के लिए फ्रांस के नेताओं ने कट्‍टरपंथी यूनियन ऑफ इस्लामिक आर्गनाइजेशन्स ऑफ फ्रांस को दोषी ठहराया था।  
 
इन दंगों के बाद जब हालात सामान्य हुए तो मुस्लिम ब‍‍स्त‍ियों में रहने वाले लोगों की स्थिति और खराब हो गई और हाल के वर्षों में स्थानीय फ्रांसीसी लोगों और इन लोगों के बीच विभाजन और गहरा हो गया। वर्ष 2009 में राष्ट्रपति निकोलस सरकोजी बने और उनका भी कहना था कि फ्रांस में बुर्के का स्वागत नहीं किया जा सकता है क्यों‍कि यह मुस्लिम महिलाओं के दमन का प्रतीक है। इस मामले में सरकोजी के वामपंथी विरोधियों का भी यही सोचना था। कुल मिलाकर ज्यादातर फ्रांसीसी लोगों का ‍मुस्लिमों के खिलाफ रुख और भी कड़ा हो गया था। इस संबंध में उल्लेखनीय है कि वर्ष 2013 में एक सर्वेक्षण किया गया था जिसमें केवल 26 फीसदी लोगों ने माना था कि इस्लाम, फ्रेंच समाज के साथ मेलजोल रखने लायक है।
 
हाल ही में, वर्तमान राष्ट्रपति फ्रांस्वां ओलां ने उत्तरी माली में (जो कि पूर्व में फ्रांस का एक उपनिवेश था) इस्लामी उग्रवादियों के ठिकानों पर बमबारी करने का आदेश दिया था ताकि इन स्थानों से अल कायदा से जुड़े गुटों के उग्रवादियों को बाहर निकाला जा सके। इस फैसले ने भी दोनों पक्षों की आग को और भड़काने का काम किया। इस मामले का सबसे अहम पहलू यह था कि इन आतंकी गुटों का नेटवर्क विशेष रूप से फ्रांस में फला फूला था। इस संदर्भ में एक और अहम बात यह है कि फ्रांस की खुफिया सेवाओं का मानना है कि कम से कम 700 फ्रांसीसी नागरिक या फ्रांस में रहने वाले लोग सीरिया में आईएस की ओर से लड़ रहे हैं। इन लोगों में से काफी लोग फ्रांस वापस आ चुके हैं या‍ फिर फ्रांस में वापस आने की योजना बना रहे हैं ताकि वे इस देश में भी जिहादी गतिविधियों को चला सकें।
 
इस स्थिति से जुड़ी और भी घातक बातें हैं। विदित हो कि बुधवार को शार्ली एब्दो पर हुए आतंकवादी हमले के बाद फ्रांस के सर्वाधिक विवादास्पद उपन्यासकार मिशेल वेलबेक ने एक पुस्तक 'सब्मिशन' प्रकाशित कराई है। इस पुस्तक में भविष्यवाणी की गई है कि जल्द ही फ्रांस एक इस्लामी देश बन जाएगा। यहां के विश्वविद्यालयों में कुरान को पढ़ाया जाएगा और महिलाओं के लिए पर्दा अनिवार्य बन जाएगा। इसके साथ ही, इस देश में बहुपत्नी विवाह होने लगेंगे। स्वभाविक है कि इस तरह की बातों से लोगों में भय का वातावरण पैदा होगा। देश की खस्ताहाल अर्थव्यवस्था के साथ मुस्लिम आतंकवादियों के हमले और भी भयानक हालात पैदा करेंगे। इसलिए यह कहना गलत नहीं होगा कि इन हालातों में फ्रांस गंभीर रूप से सामाजिक विघटन के दौर में आने वाला है।