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Written By Author शरद सिंगी
Last Updated : शनिवार, 1 जून 2019 (22:26 IST)

मोदी की प्रचंड जीत के अंतरराष्ट्रीय मायने?

Narendra Modi,। मोदी की प्रचंड जीत के अंतरराष्ट्रीय मायने? - naredra modi huge victory in loksabha election 2019
पिछले अंक में हमने क्षेत्रीय देशों (विशेषकर दक्षिण एशिया) या कहें पड़ोसी देशों पर मोदी की विशाल जीत के राजनीतिक प्रभावों की चर्चा की थी। अब देखते हैं इस महती जीत के अंतरराष्ट्रीय मायने क्या हैं? आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि यदि हम भारत से एक यात्रा पर पश्चिम की ओर निकलें तो जब हम पूरा एशिया, खाड़ी के देशों और अफ्रीकी देशों को पार कर लेंगे तब कहीं जाकर हमें पहला प्रजातांत्रिक देश मिलेगा, वह भी यूरोप में।
 
उसी तरह यदि पूर्व की ओर यात्रा आरंभ करें तो बहुत दूर जाकर सुदूर पूर्व में दक्षिण कोरिया और जापान मिलेंगे तथा दक्षिण-पूर्व में ऑस्ट्रेलिया मिलेगा, जहां जनतंत्र है। यानी हमारे चारों तरफ हजारों मीलों तक कोई सही मायनों में प्रजातांत्रिक देश है ही नहीं, जहां जनता सर्वोच्च है। इतने गैरप्रजातांत्रिक या अर्द्ध प्रजातांत्रिक देशों के बीच हमने प्रजातंत्र की ज्योति को उज्ज्वल कर रखा है। इसकी कीमत वे लोग अधिक समझते हैं जिन्हें पीढ़ियों ने खुली हवा में सांस लेने का अवसर नहीं मिला।
 
अब उन देशों पर नजर डालते हैं, जहां प्रजातंत्र है। यूरोप जहां से माना जाता है कि प्रजातंत्र का प्रादुर्भाव हुआ और जो दशकों से प्रजातंत्र का गढ़ है, आज वहां के लगभग हर देश में प्रजातंत्र लड़खड़ा रहा है। गठबंधन की सरकारें हैं। प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति कमजोर हैं। कठोर निर्णय नहीं ले पा रहे हैं। जर्मनी में लौह महिला के नाम से जानी जाने वाली एंजेला मर्केल गठबंधन की जंजीरों में बंध चुकी हैं।
 
फ्रांस के राष्ट्रपति कमजोर होने से फ्रांस में हो रहे उपद्रवों से निपट नहीं पा रहे। इंग्लैंड में एक के बाद एक प्रधानमंत्री बदल रहे हैं। इटली में गठबंधन की सरकारें बनती और गिरती हैं। इस सदी में इटली अभी तक 9 प्रधानमंत्री देख चुका है। जरा सोचिए यह हालत उन देशों की है, जहां शिक्षा दुनिया में अधिकतम है। उधर और आगे बढ़ें तो अमेरिका में मीडिया ने राष्ट्रपति ट्रंप का जीना हराम कर रखा है और कनाडा के प्रधानमंत्री का जनता ने।
 
दुनिया में चल रहे इस माहौल के विपरीत भारत की जनता ने जो जनादेश दिया है, उससे मोदी सरकार इस समय लगभग दो-तिहाई बहुमत को छूती हुई दिख रही है। 5 वर्षों पहले राजनीतिक पंडितों ने इस तरह के बहुमत को पाने का विचार भी छोड़ दिया था। वे मान चुके थे कि भारत अब गठबंधन सरकारों के दौर में पहुंच चुका है। उसी तरह विश्व के अधिकांश राजनीतिक विशेषज्ञों में भी यह मान्यता घर कर चुकी है कि जिन देशों में 2 से अधिक दल मैदान में हैं, वहां अब एक दल को बहुमत पाना संभव नहीं हैं।
 
किंतु इस मान्यता को एक जोर का झटका तब लगा, जब भारत की जनता ने एक बार फिर विश्व को रास्ता दिखाया। इस जनादेश से भारत के राजनीतिक पंडितों को तो छोड़ ही दीजिए, दुनिया के पंडित भी हतप्रभ हैं। इसराइल के नेतन्याहू और जापान के शिंजो आबे इतने लोकप्रिय होने के बावजूद वर्तमान राजनीति में इस ऊंचाई को नहीं छू सके जिस ऊंचाई को मोदी ने अपने दूसरे ही कार्यकाल में ही छू लिया है।
 
जनादेश की विशालता का हाल यह था कि विजयी सांसदों की संख्या भारतीय जनता पार्टी के प्रबल समर्थकों के अनुमानों के परे निकल गई। दूसरी महत्वपूर्ण बात यह थी कि पूरे देश की सोच एक होने के बाद भी किसी राजनीतिक विश्लेषक को इसकी भनक तक नहीं लगी।
 
जाहिर है, इस चमत्कारिक जीत से विश्व के सभी प्रजातांत्रिक देशों में मोदी का कद बहुत ऊंचा हो चुका है। शपथ विधि समारोह में पुन: सारे पड़ोसी देशों के राष्ट्राध्यक्ष शामिल हुए और जिस उत्साह के साथ उन्होंने मोदी के शपथ समारोह के निमंत्रण को स्वीकार किया, उससे जाहिर है कि मोदी को एक विश्व नेता के रूप में मान्यता मिल चुकी है। साथ में पाकिस्तान को निमंत्रण न देकर भी भारत ने आरंभ से ही स्पष्ट संकेत भी दे दिया है कि भारत का रुख आतंकवाद के प्रति और कड़ा होने वाला है।
 
इस समय अधिकांश देश भारत के साथ जुड़ चुके हैं। अफगानिस्तान और बांग्लादेश पाकिस्तान की खुलेआम आलोचना करते हैं। चीन, मसूद अजहर को लेकर अंतरराष्ट्रीय दबाव के आगे झुक ही चुका है। अत: हमारा निष्कर्ष है कि जनता का यह फैसला विश्व में भारत के हितों को लाभान्वित करेगा और भारत आने वाले वर्षों में अंतरराष्ट्रीय मामलों में महती भूमिका निभाएगा।
 
एक स्थायी और मजबूत राजनेता को विश्व सदैव गंभीरता से लेता है, क्योंकि जिनके पास कमजोर जनाधार है उनका तो मालूम नहीं होता कि वे अगले सम्मेलन तक बने रहेंगे अथवा नहीं? राष्ट्र की जनता उनके पीछे खड़ी है या नहीं? अत: चलिए, अब हम भारतीय मतदाता तैयार हो जाएं विश्व में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए!
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