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Last Updated : बुधवार, 17 सितम्बर 2014 (15:49 IST)

मंगलयान इतिहास बनाने के करीब

मंगलयान इतिहास बनाने के करीब - Mars orbiter mission of india
मंगलयान (मार्स ऑर्बिटर मिशन), भारत का प्रथम मंगल अभियान है और यह भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) की एक महत्वाकांक्षी अन्तरिक्ष परियोजना है। इस परियोजना के अन्तर्गत 5 नवम्बर 2013 को 2 बजकर 38 मिनट पर मंगल ग्रह की परिक्रमा करने वाला एक उपग्रह आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान (पीएसएलवी) सी-25 द्वारा सफलतापूर्वक छोड़ा गया था। इसके साथ ही भारत भी अब उन देशों में शामिल हो गया जिन्होंने मंगल पर अपने यान भेजे हैं लेकिन अब तक मंगल को जानने के लिए शुरू किए गए एक तिहाई अभियान असफल ही रहे हैं। किसी भी देश का प्रक्षेपित यान पहली ही बार में मंगल ग्रह पर नहीं पहुंच सका है लेकिन अगर मंगलयान ऐसा कर पाता है तो भारत दुनिया का पहला ऐसा देश होगा जिसके पहले ही यान ने मंगल ग्रह पर पहुंचने में सफलता हासिल की होगी।   

यह एक प्रौद्योगिकी प्रदर्शन परियोजना है जिसका लक्ष्य अन्तरग्रहीय अन्तरिक्ष मिशनों के लिए आवश्यक डिजाइन, नियोजन, प्रबन्धन तथा क्रियान्वयन का विकास करना है। उल्लेखनीय है कि फिलहाल वैज्ञानिक मंगलयान को मंगल की कक्षा में स्थापित करने की तैयारी में लगे हुए हैं। इस समय भी यान 82000 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से मंगल की तरफ बढ़ रहा है। इसके साथ ही इसरो के वैज्ञानिकों ने  मंगलयान के इंजन को 'जगाने या सक्रिय करने' की प्रक्रिया शुरू कर दी है। यान के  इंजन को इसलिए सक्रिय किया जा रहा है ताकि 21 सितंबर को इसका परीक्षण किया जा सके और यह सुनिश्चित किया जा सके कि यान के सभी कल पुर्जे सही तरीके और योजनाबद्ध तरीके से काम कर रहे हैं या नहीं। इंजन को सक्रिय करने की प्रक्रिया में इसे 4 सेकंड तक चालू करके देखा जाएगा कि यह ठीक से काम कर रहा है या नहीं।

इस परीक्षण के सफलता पूर्वक सम्पन्न हो जाने के बाद 24 सितंबर को मंगलयान के इंजन को 24 मिनट तक के लिए फायर किया जाएगा और इस प्रक्रिया के तहत मार्स ऑर्बिटर मिशन स्पेसक्राफ्ट या मंगलयान की गति धीमी की जाएगी ताकि इसे मंगल की कक्षा में स्थापित किया जा सके। मंगलयान को तीन सौ दिन पहले धरती से मंगल की तरफ भेजा गया था और इस समय यह 82 हजार किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से मंगल की तरफ बढ़ रहा है।

इसरो के चेयरमैन के. राधाकृष्णन का कहना है, 'इंजन टेस्ट इसलिए किया जा रहा है, ताकि यह देखा जा सके कि इंजन ठीक स्थिति में है या नहीं।' उन्होंने कहा कि इसके जरिए मंगलयान के रास्ते की दिशा भी ठीक की जाएगी। रविवार को बेंगलुरु में इसरो के वैज्ञानिकों ने लिक्विड अपॉजी मोटर (एलएएम) के इंजन को 4 सेकंड्स के लिए टेस्ट फायर करने के लिए कमांड्स भेजे हैं। मंगलयान के प्रॉजेक्ट डायरेक्टर सुब्बा अरुणन ने कहा कि 22 किलोमीटर प्रति सेकंड की रफ्तार से चल रहा स्पेसक्राफ्ट टेस्ट फायरिंग से अपने मूल रास्ते से 100 किलोमीटर दूर चला जाएगा। लेकिन यह कदम मंगलयान को 24 सितंबर को मंगल की कक्षा में डालने की प्रक्रिया का ही एक हिस्सा है।

भारत के इस मिशन की लागत 450 करोड़ रुपए है जो कि अमेरिका के मिशन से 10 गुनी कम है। विदित हो कि स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि भारत का यह मिशन हॉलिवुड की फिल्म 'ग्रैविटी' के खर्च से भी कम में लॉन्च हुआ है। मंगल की कक्षा में स्थापित हो जाने के बाद मंगलयान इसके वायुमंडल, खनिजों और संरचना का अध्ययन करेगा। मंगल के वैज्ञानिक अध्ययन के अलावा यह मिशन इसलिए भी अहम है, क्योंकि यह भारत के लिए दूसरे ग्रहों की जांच करने के सफल अभियानों की शुरुआत करेगा।

इससे पहले मंगलयान को मंगल की कक्षा में प्रवेश कराने के लिए कमांड अपलोड करने का काम पूरा हो गया और 24 सितंबर को इसे सूर्य की कक्षा से मंगल की कक्षा में स्थानांतरित किया जाएगा। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के वैज्ञानिक सचिव वी. कोटेश्वर राव के अनुसार मंगलयान में कमांड अपलोड करने और इन्हें जांचने में करीब 13 घंटे का समय लगा। मंगलयान को अपने गंतव्य तक पहुंचने में कुल 22.4 करोड़ किलोमीटर की यात्ना करनी है जिसमें से वह 21.5 करोड़ किलोमीटर यानी 98 प्रतिशत दूरी तय कर चुका है।

मंगलयान 22 सितंबर को मंगल के गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र में प्रवेश करेगा और उसी दिन उसके मार्ग को भी सही दिशा दी जाएगी। मंगलयान को इससे पहले तीन बार सही दिशा में लाया गया है। इसरो के सामने अब सबसे बड़ी चुनौती लाल ग्रह की कक्षा में प्रवेश के लिए इस यान के तरल इंधन इंजन को दोबारा चालू करने की है जो दस महीने से निष्क्रिय अवस्था में है। यान की मौजूदा रफ्तार 22 किमी प्रति सेकंड है और मंगल की कक्षा में प्रवेश के लिए इसे घटाकर 1.6 किमी प्रति सेकंड़ करना जरूरी है।

मंगलयान जब मंगल की कक्षा में प्रवेश करेगा तो उस समय वह इस ग्रह की छाया में होगा और उसे सूर्य की रोशनी नहीं मिल पाएगी। इस कारण से उसके सौर पैनल बेकार होंगे और यान को बैटरी से मिलने वाली ऊर्जा के सहारे मंगल की कक्षा में प्रवेश करना होगा। आगामी 24 सितम्बर 2014 को यान के मंगल की कक्षा में पहुंचने की तय तिथि है। इसरो प्रमुख के. राधाकृष्णन का कहना है कि मंगल मिशन की परीक्षा में हम पास हुए या फेल, यह 24 सितम्बर को ही पता चलेगा।
अभियान से जुड़े कुछ प्रमुख तथ्य, अगले पन्ने पर..

*10 करोड़ डॉलर का मिशन : भारत का 1350 किग्रा का रोबोटिक उपग्रह लाल ग्रह की 10 महीने की यात्रा पर रवाना हुआ था। इसमें पांच अहम उपकरण मौजूद हैं जो मंगल ग्रह के बारे में अहम जानकारियां जुटाने का काम करेंगे।

*इन उपकरणों में मंगल के वायुमंडल में जीवन की निशानी और मीथेन गैस का पता लगाने वाले सेंसर, एक रंगीन कैमरा और ग्रह की सतह और खनिज संपदा का पता लगाने वाला थर्मल इमेजिंग स्पेक्ट्रोमीटर जैसे उपकरण शामिल हैं।

*इसरो के लिए काम करने वाले बंगलुरू के 500 से अधिक वैज्ञानिकों ने इस अभियान पर दिन रात काम किया है। मंगल अभियान की औपचारिक घोषणा प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने पिछले साल अगस्त में ही कर दी थी कि भारत लाल ग्रह पर एक अंतरिक्ष यान भेजेगा।

*परियोजना प्रमुख सुब्बा अरुणन बताते हैं कि वे पिछले 15 महीनों से मंगल मिशन के लिए लगातार काम कर रहे हैं और इस बीच उन्होंने एक दिन की भी छुट्टी नहीं ली है। वे बैंगलुरू स्थित इसरो सैटेलाइट सेंटर में ही सोते हैं। वे कहते हैं कि घर केवल 'एक या दो घंटे' के लिए ही जाना हो पाता है।

*भारत मंगल अभियान को अपने प्रतिद्वंदी चीन को ग्रह तक पहुंचने की दौड़ में पीछे छोड़ देने के एक अवसर के रूप में देखता आया है, ख़ासकर तब जब मंगल जाने वाला पहला चीनी उपग्रह 'राइडिंग ऑन ए रशियन मिशन', 2011 के नवंबर में असफल हो गया था। जापान का वर्ष 1998 का ऐसा ही प्रयास विफल रहा था।

*चीन ने अंतरिक्ष क्षेत्र में भारत को लगभग हर तरीक़े से पछाड़ रखा है। चीन के पास ऐसा रॉकेट है जो भारत के रॉकेट की तुलना में चार गुना अधिक वज़न उठा सकता है।

*वर्ष 2003 में, चीन अपना पहला मानवयुक्त अंतरिक्ष यान सफलतापूर्वक प्रक्षेपित कर चुका है, जो भारत के लिए अब तक अछूता रहा है। चीन ने साल 2007 में अपना पहला चंद्र अभियान शुरू किया था और इस मामले में भी वह भारत से आगे है।

*साल 1960 से अब तक लगभग 45 मंगल अभियान शुरू किए जा चुके हैं और इनमें से एक तिहाई असफल रहे हैं।

*'मार्स एक्सप्रेस' के अलावा जिसने यूरोप के 20 देशों का प्रतिनिधित्व किया था, कोई भी देश पहली बार में मंगल अभियान में सफल नहीं रहा है। अगर भारत अपने इस अभियान में सफल होता है तो विश्व में यह उपलब्धि हासिल करने वाला वह पहला देश होगा। (समाप्त)