मंगलवार, 23 अप्रैल 2024
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Written By Author अनिल जैन

मप्र में भी किसानों की उम्मीदों पर कुदरत का आघात

मप्र में भी किसानों की उम्मीदों पर कुदरत का आघात - Madhya Pradesh Farmers
समूचे देश खासकर उत्तर और मध्य तथा पश्चिमी भारत में पिछले दिनों हुई बेमौसम भारी बरसात और ओलावृष्टि अपने साथ खेती-किसानी के लिए आफतों की सौगात लेकर आई। इस कुदरती आपदा ने खासतौर पर जिन राज्यों को अपनी चपेट में लिया है उनमें मध्यप्रदेश भी एक है।
 
इस सूबे के किसानों को जहां खरीफ फसल की बुवाई के दौरान सूखे ने परेशानी में डाला था तो वहीं इस बार बेमौसम बरसात और ओलावृष्टि ने किसानों को बुरी तरह तबाहकर उनका सुख-चैन छीन लिया है। कुछ इलाकों में तो अपनी फसल की बर्बादी से हताश होकर कुछ किसानों ने खुदकुशी कर ली है तो कुछ की सदमे से मौत हो गई है।
 
मालवा-निमाड़, विंध्य और महाकोशल अंचल के अलावा ग्वालियर-चंबल, भोपाल, सागर और होशंगाबाद संभाग के विभिन्न जिलों के लगभग 30,000 गांवों में इस आपदा से हुए वास्तविक नुकसान का आकलन करने में तो अभी वक्त लगेगा लेकिन अनुमान है कि 30 से 80 फीसदी तक गेहूं और दलहन की फसलें बर्बाद हो गई हैं। इसके अलावा कई जिलों में आम के बोर झड़ गए हैं और सब्जियों की फसलों को भी भारी नुकसान पहुंचा है।
 
इस कुदरती आपदा से हुए वास्तविक नुकसान का आकलन करने के लिए करीब एक सप्ताह पहले ही सर्वे कराने का निर्देश देने वाले मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने एक सप्ताह के अंतराल के बाद दोबारा बारिश होने के कारण नए सिरे से सर्वे करने के निर्देश दिए हैं। 
 
राज्य सरकार का अनुमान है कि प्रदेश के लगभग 30 लाख किसानों की फसलें बेमौसम बारिश और ओलावृष्टि से प्रभावित हुई हैं। केंद्र सरकार ने भी फसलों को हुए नुकसान के बारे में राज्य सरकार से मुकम्मिल जानकारी मांगी है। कृषि विशेषज्ञों ने रबी फसलों की पैदावार और दलहन उत्पादनों में भारी गिरावट आने और फसलों की गुणवत्ता के प्रभावित होने की आशंका जताई है।
 
बेमौसम बरसात के पहले तक प्रदेश में गेहूं और दलहन की फसलें बेहतर स्थिति में थीं और इस साल रिकॉर्ड फसल उत्पादन की संभावनाएं जताई जा रही थीं जिससे किसानों में आस जगी थी कि इस बार उसकी आर्थिक स्थिति सुधर जाएगी, लेकिन कुदरत की मार ने अन्नदाताओं की उम्मीदों पर पानी फेर दिया।
 
बेमौसम बारिश से कटाई के लिए तैयार खड़ी गेहूं और चने की फसलें खेतों में ही बिछ गई हैं। इससे दाने में दाग लगने या दाने छोटे रह जाने की आशंका बढ़ गई है। चना और मसूर के साथ धनिया और सब्जियों के लिए भी यह बारिश जानलेवा साबित हुई है।
 
प्रदेश में इस साल 54 लाख हेक्टेयर में गेहूं की बुआई की गई थी। जिन किसानों ने सिंचाई सुविधा के चलते बोवनी पहले की थी, उनकी फसल पक जाने के कारण कटने की स्थिति में थी लेकिन अब वह अचानक बारिश की मार से खेतों में ही बिछ गई है।
 
बताया जा रहा है कि प्रदेश में मौसम की इस मार का सर्वाधिक असर गेहूं की फसल पर पड़ेगा। इससे दाना कमजोर तो पड़ेगी ही, उसमें दाग भी लग जाएंगे। गेहूं की खेती करने वाले किसानों पर इस मार का असर इसलिए भी ज्यादा पड़ने वाला है, क्योंकि फसल के दागी होने के कारण उन्हें अपनी फसल का उचित मूल्य नहीं मिल सकेगा।
 
आकस्मिक और असामान्य बरसात से किसानों के समक्ष पैदा हुए इस कुदरती संकट को भ्रष्ट प्रशासनिक व्यवस्था और राजनीतिक नेतृत्व की काहिली ने और भी ज्यादा घना कर दिया है। राज्य का प्रशासनिक अमला तो हमेशा ही ऐसी आपदा की कामना करता है। चाहे सूखा पड़े या अतिवृष्टि हो फिर बेमौसम बारिश, नौकरशाही के लिए ऐसी स्थितियां बड़ी मुफीद होती हैं। ऐसी स्थितियों में राज्य या केंद्र सरकार से आने वाली राहत राशि का एक बड़ा हिस्सा नौकरशाह और पटवारी डकार जाते हैं।
 
पड़ोसी राज्य उत्तरप्रदेश को बीमारु माना जाता है लेकिन वहां राज्य सरकार ने 50 फीसदी से अधिक फसल नष्ट होने पर लघु एवं सीमांत किसानों को असिंचित क्षेत्र में 4500 रुपए प्रति हेक्टेयर और सिंचित क्षेत्र में 9000 रुपए प्रति हेक्टेयर की धनराशि क्षतिपूर्ति के तौर उपलब्ध कराने का ऐलान किया है।
 
हालांकि यह क्षतिपूर्ति पर्याप्त नहीं लेकिन अपने सूबे को विकसित राज्यों की कतार में दिखाने को आतुर मध्यप्रदेश सरकार ने अपने राज्य के किसानों के लिए फौरी तौर पर भी किसी तरह की मदद का कोई ऐलान नहीं किया है।
 
पिछले साल जब राज्य के किसानों पर सूखे की मार पड़ी थी तो फसल बीमा कंपनियों ने 2,281 करोड़ रुपए और राज्य सरकार ने 2,000 करोड़ रुपए किसानों को मुआवजे के तौर पर देने के लिए जारी किए थे।
 
इस बार राज्य सरकार किसानों को मुआवजे के तौर पर इतना भी देने की स्थिति में नजर नहीं आ रही है। राज्य के प्रशासनिक सूत्रों के मुताबिक राज्य सरकार चाहे जो दावा करे, लेकिन उसकी माली हालत बेहद खस्ता है और फिर इस साल राजस्व उगाही भी 40 फीसदी कम हुई है। 
 
राज्य सरकार आपदाग्रस्त किसानों के लिए केंद्र से मदद मिलने की आस लगाए बैठी है लेकिन केंद्र सरकार इस बारे में पहले ही अपने हाथ ऊंचे कर चुकी है। 
 
बाजार में अनेक कृषि उत्पादों के मूल्य गिरने और न्यूनतम समर्थन मूल्य लगभग फ्रीज होने से राज्य के किसान पहले से ही दुश्वारियों का सामना कर रहे हैं। इसके अलावा केंद्र सरकार ने प्रदेश के कई जिलों में मनरेगा योजना से हाथ खींच लिए हैं जिसकी वजह से छोटे किसान और खेतिहर मजदूरों को राहत कार्यों से होने वाली थोड़ी-बहुत आमदनी भी बंद हो गई है।
 
कुल मिलाकर राज्य का किसान चौतरफा आर्थिक संकट से घिरा अनुभव कर रहा है। मध्यप्रदेश में यह हालत उस किसान की है जिसका मध्यप्रदेश की सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) दर में योगदान 24 फीसद है और पिछले 4 साल से लगातार मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान कृषि कर्मण पुरस्कार लेकर अपने प्रदेश की खेती-किसानी का गौरवगान करने में लगे हैं। लेकिन हकीकत यह है कि उनकी सरकार को खेती-किसानी से ज्यादा उद्योगपतियों की फिक्र सताती है।
 
किसानों से कर्ज वसूली स्थगित : किसानों ने रबी फसलों की आस में सहकारी बैंकों से जो कर्ज लिया था उसकी वसूली सरकार स्थगित करेगी। इससे करीब 18 लाख किसानों को 2,500 करोड़ रुपए से ज्यादा का कर्ज 3 साल में किस्तों में चुकाना होगा। इतना ही नहीं, सरकार किसानों को डिफॉल्टर होने से बचाने के लिए जिला कलेक्टरों से प्रमाणपत्र भी जारी कराएगी ताकि किसानों को आगामी सीजन के लिए बैंकों से फिर कर्ज मिल सके।
 
राज्य के सहकारिता विभाग का कहना है कि आपदा से प्रभावित किसानों की स्थिति ऐसी नहीं है कि वे सहकारी बैंकों से लिया गया बगैर ब्याज का कर्ज भी लौटा सके। यदि किसान पैसा नहीं लौटा पाते हैं तो वे डिफॉल्टर हो जाएंगे और उन्हें आगामी सीजन के लिए कर्ज मिलने का रास्ता बंद हो जाएगा। 
 
इस स्थिति को भांपते हुए सरकार ने तय किया है कि कर्ज वसूली स्थगित करने के लिए खेत कटाई प्रयोग के फॉर्मूले के पूरा होने का इंतजार किए बगैर वसूली स्थगित कर दी जाए। सभी जिला कलेक्टरों को निर्देश दिए हैं कि वे प्रभावित किसानों को भू-राजस्व वसूली स्थगित करने का प्रमाणपत्र जारी करें। इस प्रमाणपत्र के आधार पर सहकारी बैंक वसूली स्थगित कर देंगे और नए सीजन के लिए फिर कर्ज देंगे।