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Written By Author शरद सिंगी

ली कुआन यू : विस्मयकारी कहानी एक सफल तानाशाह की

ली कुआन यू : विस्मयकारी कहानी एक सफल तानाशाह की - Lee Kuan Yew
तेईस मार्च को सिंगापुर के पितृ पुरुष, संस्थापक नेता एवं प्रथम प्रधानमंत्री, 91 वर्षीय ली कुआन यू का निधन हो गया। इसी एक शख्स का कमाल था जिसने  एक पिछड़े हुए टापू को आज का आधुनिकतम राष्ट्र सिंगापुर बनाया। उनके दर्शनार्थ रखे पार्थिव शरीर को सम्मान देने के लिए दिन रात लम्बी कतारें लगी रहीं। हज़ारों लोग मार्ग के दोनों ओर खड़े होकर इस जननायक की अंतिम यात्रा का हिस्सा बने और उन्हें अश्रुपूरित नेत्रों से बिदाई दी। नरेंद्र मोदी सहित विश्व के अनेक दिग्गज नेता उनकी अंत्येष्टि में शामिल हुए। 
 
वे 1955 में सांसद बने थे तथा 1959 में ब्रिटेन के उपनिवेश सिंगापुर के प्रधानमंत्री। 1965 में उनके नेतृत्व में सिंगापुर को ब्रिटेन से आज़ादी मिली और तब से लेकर वे 1990 तक देश के प्रधानमंत्री रहे। इस तरह उन्होंने करीब 31  वर्षों तक सिंगापुर पर राज किया। इतने वर्षों तक लगभग एक अधिनायक की तरह शासन करने वाले इस शख्स में ऐसा क्या जादू था जिसने उन्हें इतना लोकप्रिय बनाया।
 
सिंगापुर की समृद्धि का सारा श्रेय ली कुआन यू को दिया जाता है। मात्र एक पीढ़ी में ही उन्होंने सिंगापुर को तीसरी दुनिया की गरीबी की गर्त से उठाकर विकसित देशों की अग्रिम कतार में खड़ा कर दिया। आज इस राष्ट्र की प्रति व्यक्ति आय, दुनिया के श्रेष्ठ देशों में से है, यहाँ तक कि अमेरिका से भी बेहतर है। जर्मनी, जापान, फ्रांस और इंग्लैंड से तो बहुत आगे है। हर नागरिक के पास अपने स्वयं  के मकान हैं। अपराधों की दर भी अत्यधिक कम है। बेहतरीन आधारभूत सुविधाओं से युक्त सिंगापुर ने न केवल उच्च तकनीक वाले उद्योगों को आकर्षित किया बल्कि वह एक वित्तीय केंद्र में भी तब्दील हुआ। 
 
राजनीतिक विश्लेषक ली कुआन को एक प्रतिभाशाली राजनीतिज्ञ मानते थे क्योंकि वे जनता को विश्वास दिलाने में सफल रहे थे कि कठोर परिश्रम, कुशल नीतियां, साफ-सुथरी सरकार, एकल पार्टी शासन और सकारात्मक मीडिया से ही विकास संभव है। और उन्होंने ऐसा करके भी दिखाया। आलोचक आलोचना करते रह गए। ली का मानना था कि देश को अनुशासन चाहिए, लोकतंत्र नहीं। पश्चिम की तरह उदार लोकतंत्र के पक्ष में तो वे बिलकुल नहीं थे। उन्होंने नेताओं की बौद्धिक और नैतिक श्रेष्ठता पर जोर दिया। शासन में आम जनता की भागीदारी के पक्ष में नहीं रहे। सरकार भ्रष्टाचार मुक्त हो। नेता वही हो जो योग्य हो और जो राष्ट्र को अपने स्वार्थ से ऊपर रखता हो। सभी नागरिकों को न्याय और समान अवसर मिले। ऐसा यदि सचमुच हो तो किसे लोकतंत्र चाहिए? और सिंगापुर मैं ऐसा ही हुआ। कठोर पुलिस शासन के बावजूद प्रजातांत्रिक देशों के लोग वहां बसने को तैयार हैं। उद्योगपति सिंगापुर छोड़ना नहीं चाहते। 
 
किन्तु इस स्थिति के दूसरे पहलू भी हैं। ली कुआन यू की सत्ता पर लगातार क़ाबिज़ रहने के कारण आलोचना भी की जाती रही है। चुनाव जीतने के लिए उन्होंने हर उन तरीकों का उपयोग किया जो प्रजातंत्र में निषिद्ध हैं। यद्यपि उनको जीतने के लिए किसी अनैतिक तरीके की आवश्यकता नहीं थी। वे ऐसे लौह पुरुष थे जिनके सामने असहमति जाताना नमुमक़िन था। किन्तु अब उनके जाने के बाद परिस्थितियां बदलेंगी। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की मांग मुखर होगी। देश का नेतृत्व यदि कमज़ोर हो तो वह जनता और विपक्ष पर कानूनी नियंत्रण अधिक पसंद करता है।
 
ली के जाने के बाद निश्चित रूप से निर्वात बनेगा और ऐसे में मांगों के दबाव को झेलना कमज़ोर नेतृत्व को मुश्किलों में डालेगा। ली कुआन यू के बेटे ली सिएन लूंग सिंगापुर के मौजूदा प्रधानमंत्री हैं जिन्हें कमान संभालने से पहले अपने पिता के मंत्रिमंडल में एक सदस्य के रूप में एक लम्बी ट्रेनिंग से गुजरना पड़ा था,  किन्तु अब भविष्य पर बड़े प्रश्न चिन्ह हैं। 
 
इस प्रकार सिंगापुर की कहानी किसी परिकथा से कम नहीं। खाड़ी के देशों की चमक कच्चे तेल के पैसों की है किन्तु सिंगापुर की चमक वहां के नागरिकों के कठोर परिश्रम और अपने नेता की दूर दृष्टि का नतीजा है। जिस देश के पास प्राकृतिक सम्पदा के नाम पर कुछ न हो उसको विश्व का आर्थिक केंद्र बना देना  और वह भी चंद वर्षों में एक अविश्वसनीय परिकल्पना लगती है। लोगों का मानना है कि ऐसा तभी हो सकता है जब काल, व्यक्ति और नक्षत्रों का संयोग सब एक साथ हो और अब ऐसा हो चुका। विशेषज्ञों की मानें तो दुबारा ऐसा होना नामुमकिन है।
 
दुनिया का हर देश आज ली की इस अनोखी किताब से कुछ सीख सकता है चाहे फिर कोई महाशक्ति हो या कमजोर और गरीब देश। भारत की समस्याओं के लिए तो ली की दवा रामबाण है यदि नेतृत्व और जनता इस कड़वी दवा को पीने के लिए तैयार हों। पाने के लिए न तो कुछ खोने की जरूरत है और न ही इंतज़ार की, जरूरत है मात्र कठोर परिश्रम की, दुनिया को ली अपने उदाहरण से यही सिखाकर विदा हो गए। उनको श्रद्धांजलि के साथ हमारी अपनी यह कामना भी है कि उनका जीवन आदर्श हमारे देश में अनुकरणीय प्रेरणा बने।