शुक्रवार, 29 मार्च 2024
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Written By Author शरद सिंगी

अंतरराष्ट्रीय गोपनीयता में सेंधमारी

अंतरराष्ट्रीय गोपनीयता में सेंधमारी - Julian Assange, WikiLeaks
जूलियन असांज विश्व का वह नाम है जिसने अकेले ही अपने दम पर विश्व शक्तियों की बुनियाद को हिला दिया। ऑस्ट्रेलियाई नागरिक जूलियन असांज एक शातिर हैकर (कम्प्यूटर से डेटा चुराने वाला) है जिसने पारदर्शिता के नाम पर जब विश्व नेताओं के चेहरों से नकाब उठाना आरंभ किया तो नेताओं में हड़कंप मच गया। लिखने और बोलने की स्वतंत्रता पर गर्व करने वाले शीर्ष राष्ट्र भी अपना आपा खो बैठे। 
कहानी प्रारंभ होती है सन् 2006 में, जब जूलियन असांज ने विकिलीक्स की स्थापना की। इस पत्रकारिता संबंधी संस्था का उद्देश्य गोपनीय सूचनाओं को चुराकर या अज्ञात स्रोतों से एकत्रित कर उन्हें प्रकाशित करना तथा समाचारों के पीछे छुपे सत्य को उजागर करना है ताकि विश्व में अधिक से अधिक पारदर्शिता हो। 
 
इस उद्देश्य से इस संस्था ने अनेक राष्ट्रों के राजनेताओं एवं सरकारों के गोपनीय मेल चुराए और उनको जनता के सामने प्रकाशित कर दिया। ऐसा करते ही राष्ट्रों और राजनेताओं की पोल खुलने लगी और उनका दोमुंहापन सामने आने लगा। 
 
गोपनीय सामग्री का निरंतर प्रकाशन होने से अमेरिका, इंग्लैंड सहित कई यूरोपीय राष्ट्रों की सांसें फूल गईं। मध्य-पूर्व में बैठे अमेरिकी राजदूत जब कोई गोपनीय रिपोर्ट अमेरिका में अपने मुख्यालय को भेजते हैं तो उनकी रिपोर्ट सत्य पर आधारित बड़ी तल्ख होती है किंतु राष्ट्रों के बीच रिश्तों में खटास न हो इसलिए खुले तौर पर कोई भी राष्ट्र दूसरे राष्ट्र के नेतृत्व के विरुद्ध तल्ख टिप्पणी से बचता है तथा नेतृत्व के लिए सम्मानजनक भाषा का इस्तेमाल किया जाता है। चूंकि गोपनीय रिपोर्टें जो सत्य पर आधारित होती हैं उनमें भाषा अनेक अपशब्दों के साथ बहुत कठोर होती है, जो वहां के राष्ट्राध्यक्षों के लिए इस्तेमाल की जाती है खासकर तानाशाहों के लिए। 
 
जूलियन असांज द्वारा जारी इन गोपनीय रिपोर्टों से राष्ट्रों की कथनी और करनी में अंतर स्पष्ट हो गया। अमेरिका और यूरोप के अन्य देश विकिलीक्स को रोकने के उपाय खोजने लगे। स्वीडन की 2 महिलाओं द्वारा रेप के झूठे आरोप लगवाकर स्वीडन की पुलिस ने जूलियन असांज के विरुद्ध एफआईआर दर्ज कर ली। स्वीडन पुलिस ने गिरफ्तारी वारंट जारी करके इंग्लैंड में रह रहे जूलियन असांज के प्रत्यर्पण के लिए अनुरोध कर दिया। 
 
जूलियन असांज ने इस प्रत्यर्पण के विरोध में इंग्लैंड में केस लड़ा किंतु हार गए। गिरफ्तारी के डर से उन्होंने एक छोटे से दक्षिणी अमेरिकी देश इक्वेडोर के लंदन स्थित दूतावास में राजनीतिक शरण के लिए आवेदन किया जिसे इक्वेडोर के राष्ट्रपति ने तुरंत स्वीकार कर लिया। तब से जूलियन असांज इस दूतावास की शरण में हैं, जहां अंतरराष्ट्रीय नियमों के तहत इंग्लैंड की पुलिस दूतावास के अंदर नहीं जा सकती है। 
 
इस तरह सन् 2012 से लेकर अब तक जूलियन असांज इक्वेडोर दूतावास के एक छोटे से कमरे में रह रहे हैं। दूतावास के बाहर इंग्लैंड की पुलिस पहरा दे रही है, जो असांज के बाहर निकलने का इंतजार कर रही है। इंग्लैंड की सरकार इस पहरे पर अब तक 1 अरब से अधिक रुपया खर्च कर चुकी है। असांज के वकीलों को डर है कि असांज बाहर आते हैं तो इंग्लैंड की पुलिस पकड़कर उसे स्वीडन को सौंप देगी। फिर स्वीडन उसे अमेरिका भेज देगा, जहां गोपनीय जानकारियों को प्रकाशित करने के अपराध में असांज को मृत्युदंड तक मिल सकता है। 
 
असांज पिछले सप्ताह सुर्खियों में पुन: इसलिए आए कि संयुक्त राष्ट्र संघ की मानवाधिकार समिति ने असांज की हिरासत के आदेश को अवैधानिक और मनमाना बताया। यह निर्णय असांज के लिए एक नैतिक विजय तो है किंतु इस निर्णय को मानने के लिए इंग्लैंड और स्वीडन न तो बाध्य हैं और न ही तैयार। संयुक्त राष्ट्र संघ में हारने के बावजूद इंग्लैंड अपनी जिद पर अड़ा है और असांज को गिरफ्तार करना चाहता है। 
 
जूलियन असांज कितने सही और कितने गलत हैं, वह तो बाद की बात है किंतु उनके साहस की दाद जरूर देनी होगी, जिस तरह उन्होंने दुनिया को आईना दिखाया और राजनेताओं के दोगले चरित्र को उजागर किया। नौकरशाही का भंडाफोड़ किया। कालेधन के खातेदारों के नाम उजागर किए। कैसी विचित्र बात है कि दुनिया के चरित्र को बदलने के लिए केवल एक गांधी चाहिए, एक मंडेला चाहिए या एक आइंस्टीन चाहिए। दुनिया भीड़ से नहीं बदलती। 
 
दुनिया बदलने वाले अकेले होते हैं, जो स्थापित और परंपरागत मान्यताओं से अलग हटकर सोचते हैं। ऐसे ही लोगों से दुनिया के चरित्र में परिवर्तन आता है और स्थिर दुनिया में हलचल पैदा होती है।
 
पारदर्शिता का पाठ पढ़ाने वालों को जूलियन असांज ने एक-दो पाठ पढ़ा दिए। हो सकता है कि आज की मानव सभ्यता इतनी विकसित न हो कि बिना कुछ भी गोपनीय रखे दुनिया चल सके, क्योंकि यह माना जाता है कि हर राष्ट्र के लिए अपना राष्ट्रहित ही सर्वोपरि होता है अत: वह स्वतंत्र है अपने विचारों एवं नीतियों के लिए किंतु यदि यह स्वतंत्रता दीर्घकालीन अनीति की नींव रखती हो तो यह मानव समाज के विकास के लिए घातक होगा इसलिए इस प्रवृत्ति की रोकथाम भी आवश्यक है। 
 
लक्ष्य तो उसी दुनिया को बनाने का होना चाहिए, जहां छुपाने के लिए कुछ न हो, जहां राष्ट्र और नेताओं के चरित्र हर स्थिति में समान हों।