शुक्रवार, 26 अप्रैल 2024
  • Webdunia Deals
  1. सामयिक
  2. विचार-मंथन
  3. विचार-मंथन
  4. JP Narayan on emergency
Written By

जनता की आवाज उठेगी तो सत्ता हिल जाएगी...

जनता की आवाज उठेगी तो सत्ता हिल जाएगी... - JP Narayan on emergency
समाजवादी नेता जयप्रकाश नारायण ने आपातकाल के दौरान मई 1976 में देशवासियों के नाम एक संदेश प्रसारित किया था। इसका शीर्षक था- 'सभी स्वतंत्रता-प्रेमी भारतीयों के नाम'। जेपी के इस संदेश में तत्कालीन व्यवस्थाओं का जिक्र किया था और आम भारतीय को सचेत किया था।

जो कार्यक्रम मैं सुझा रहा हूं, उस पर अगर गंभीरता के साथ अमल किया गया और वह फैला और शक्तिशाली हुआ, तो टक्कर अनिवार्य हो जाएगी। लेकिन उसकी जिम्मेदारी हमारे ऊपर नहीं होगी, जिम्मेदारी होगी समाज की उन प्रतिक्रियावादी शक्तियों पर जो सरकार के नेतृत्व में जनता की क्रांति को कुचलने की कोशिश कर रही हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने 'हेबियस कारपस' के प्रश्न पर फैसला दे दिया। व्यक्ति की स्वतंत्रता की अंतिम टिमटिमाती रोशनी भी बुझ गई। श्रीमती गांधी की तानाशाही अब लगभग पूर्ण हो गई- व्यक्ति के रूप में भी, और सरकारी तंत्र में भी। सभी स्वतंत्रता-प्रेमी भारतीयों को साहस के साथ इस समस्या का सामना करना चाहिए कि किस तरह इतिहास का उलटा, प्रतिगामी, प्रवाह फिर सही दिशा में मुड़ेगा और हम अपनी खोई हुई स्वतंत्रता वापस पाएंगे और अपनी लोकतांत्रिक संस्थाएं फिर स्थापित कर सकेंगे।

जाहिर है कि यह तभी हो सकेगा- अगर संवि‍धान के रास्ते से करना तो- जब लोकसभा के मुक्त, शुद्ध और पक्षपातरहित चुनाव हों, जिनमें कांग्रेस की हार हो और 'विरोध' विजयी होकर अपनी सरकार बनाए। सही है, यह कहना आसान है, करना कठिन, लेकिन यह भी उतना ही सही है, अगर ज्यादा नहीं, कि इतना सब तो करना ही है। कैसे, यही प्रश्न है। मेरा सुझाव है कि :

(1) पूरे देश में सभाएं हों- आम जनता की तथा विभिन्न संस्थाओं और संगठनों की- और उनमें मांग की जाए कि इमरजेंसी उठाई जाए, राजनीतिक बंदी छोड़े जाएं, लोकसभा के चुनाव कराए जाएं तथा प्रेस और बोलने की, विचार प्रकट करने की, स्वतंत्रता वापस दी जाए।

(2) जो लोग व्यक्ति की स्वतंत्रता तथा स्वतंत्र, लोकतांत्रिक संगठनों में विश्वास करते हैं, वे फौरन, चाहे जिस तरह संभव हो, तीन-तीन, चार-चार की टोली बनाकर जनता में घुस जाएं और लोगों को बताना शुरू कर दें कि क्या हो रहा है और कौन से बुनियादी सवाल पैदा हो गए हैं।

श्रीमती गांधी की तानाशाही का रथ बढ़ता चला जा रहा है, क्योंकि लोग चुप हैं, कुछ कर नहीं रहे हैं। लोग चुप और निष्क्रिय इसलिए हैं कि समझ ही नहीं रहे हैं कि क्या हो रहा है। एकतरफा प्रचार के कारण बहुत-से लोगों ने मान लिया है कि जो हुआ है, उनकी भलाई के लिए हुआ है। इसलिए सबसे पहला और जरूरी काम यह है कि लोगों को एक बार फिर बताया जाए कि स्वतंत्र और लोकतांत्रिक समाज के आधार क्या हैं, बुनियादी तत्व क्या हैं। यह काम समझदारी के साथ करना है। उसके लिए जरूरी है कि सरल भाषा में, जानकारी के साथ और यह बताते हुए कि क्या करना है, पर्चे, फोल्डर, पुस्तिकाएं आदि तैयार की जाएं। जाहिर है कि इनका प्रकाशन और प्रचार गैरकानूनी ढंग से ही हो सकेगा। बहुत से लोग इन लिखित चीजों को पढ़ और समझ भी नहीं सकेंगे, लेकिन ये 'टेक्स्ट-बुक' का काम करेंगी। इन्हें छोटी-छोटी गोष्ठियों में पढ़ा जाए जिनमें ज्यादातर छात्र तथा अन्य युवक और यु‍वतियां शरीक हों।

कहने की जरूरत नहीं कि जो लोग इस तरह के निर्दोष, शैक्षणिक, काम में शरीक होंगे वे भी पकड़े जा सकेंगे, जेल भेजे और पीटे जाएंगे और उन्हें यातनाएं दी जाएंगी। उन्हें इन सबके लिए तैयार रहना होगा। लेकिन मुझे विश्वास है कि इस देश में ऐसे काफी युवक और युव‍तियां हैं, जो इन खतरों को जानते हुए भी पीछे नहीं हटेंगे।

(3) जनता के शिक्षण के साथ-साथ जनता के संगठन का काम भी होना चाहिए। बिहार-आंदोलन में जन-संघर्ष समि‍ति और छात्र-संघर्ष-समिति के रूप में संगठन हुआ था। मेरा सुझाव है कि बिहार के बाहर पूरे देश में जो संगठन बनें, उन्हें केवल 'नव-निर्माण-समिति' कहा जाए। पहचान के लिए नाम के पहले 'ग्राम', 'नगर', 'छात्र' आदि शब्द जोड़े जा सकते हैं।

यह 'त्रिविध कार्यक्रम' है। मेरा खयाल है कि इस वक्त उन सभी लोगों को जो आम जनता की शांतिपूर्ण क्रांतिकारी कार्रवाई में तथा स्वतंत्र, समान और आत्मशासित नागरिकों के नए भारत में विश्वास करते हैं उन्हें यह 'त्रिविध कार्यक्रम' तुरत उठा लेना चाहिए।

हो सकता है‍ कि कुछ लोगों को यह कार्यक्रम फीका लगे, लेकिन मुझे आशा है कि अगर वे गहराई से सोचेंगे तो उनके विचार बदल जाएंगे। बिहार आंदोलन ने भी अपना लक्ष्य सरकार से टक्कर लेना नहीं माना था। टक्कर तो आंदोलन से यों ही निकल आई, और जब निकल आई तो टक्कर ली गई। जो कार्यक्रम मैं सुझा रहा हूं, उस पर अगर गंभीरता से अमल किया गया और वह फैला और शक्तिशाली हुआ तो टक्कर अनिवार्य हो जाएगी। लेकिन उसकी जिम्मेदारी हमारे ऊपर नहीं होगी, जिम्मेदारी होगी समाज की उन प्रतिक्रियावादी शक्तियों पर, जो सरकार के नेतृत्व में जनता की क्रांति को कुचलने की कोशिश कर रही हैं। ऐसा बिहार आंदोलन में हुआ, ऐसा ही अब भी होगा।

लेकिन, इतना ही नहीं करना है। जनता के आंदोलन का लक्ष्य था और आज भी है- संपूर्ण क्रांति- अर्थात व्यक्ति और समाज के हर क्षेत्र में क्रांति, ताकि जीवन आज से अधिक अच्‍छा हो, पूर्ण हो और उसमें ज्यादा सुख और समाधान हो। इसका यह अर्थ है कि काम के लिए विशाल क्षेत्र पड़ा हुआ है। भारत में जाति-प्रथा का मिटना कई दृष्टियों से वर्ग-प्रथा के मिटने से ज्यादा जरूरी है। शिक्षा में क्रांति एक दूसरा क्षेत्र है जिसमें काम ही काम हैं। कितने ही उदाहरण दिए जा सकते हैं किंतु सबको गिनाना जरूरी नहीं है। समझ-बूझ रखने वाले, कल्पनाशील, सक्रिय साथी अपना कार्यक्षेत्र स्वयं चुन सकते हैं।

इस तरह का काम होगा तो सामाजिक (जाति के भी) और आर्थिक निहित स्वार्थों से संघर्ष की नौबत आ सकती है। और, यह संभव है कि संघर्ष के कुछ क्षेत्रों में राज्य-सत्ता का सहयोग भी मिले। (बंबई, 2 मई, 1976)
अगले  पन्ने  पर... क्या आप जानते हैं कि आपने क्या खोया है?

क्या आप जानते हैं कि आपने क्या खोया है?
इस वक्त हमारे देश में इमरजेंसी है, मीसा है, डीआईआर है। क्या आप जानते हैं कि :

(1) पुलिस जब चाहे, तब आपको गिरफ्तार कर सकती है? मीसा में गिरफ्तारी का कारण भी नहीं बताया जाएगा और अब सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला दे दिया है कि आप किसी अदालत में फरियाद भी नहीं कर सकते। आपका घर लूट लिया जाए, आपकी संपत्ति जब्त कर ली‍ जाए या आप मार भी डाले जाएं, आप कानून की दुहाई नहीं दे सकते। पुलिस का राज है, वह जो चाहे कर सकती है।

(2) आप किसान हैं। आपकी लगान बढ़ गई है, बिजली, पानी, खाद का रेट बढ़ गया है। सरकार अपने रुपयों की वसूली बड़ी बेरहमी से कर रही है। आप असहाय हैं। आप कुछ कर नहीं सकते।

(3) आप गरीब हैं, भूमिहीन हैं, मजदूर, हरिजन या आदिवासी हैं। आप यह भी नहीं कह सकते कि आप गरीब हैं। आप नहीं कह सकते की बीस सूत्री कार्यक्रम में जो लाभ मिलना चाहिए आपको नहीं मिल रहा है। आपके लिए जो कानून बने हुए हैं, वे लागू नहीं किए जा रहे हैं। कहीं आपकी सुनवाई नहीं।

(4) आप पत्रकार हैं। आपकी कलम बंद है। आप नहीं लिख सकते, जो लिखना चाहें; आपको वही लिखना पड़ेगा, जो सरकार चाहे।

(5)
आप प्रोफेसर हैं, शिक्षक हैं। आप किसी गोष्ठी में नहीं जा सकते, लेख या किताब नहीं लिख सकते।

(6) आप सामाजिक कार्यकर्ता हैं। आप सभा नहीं कर सकते। आप किसी बुराई या भ्रष्टाचार के खिलाफ नहीं बोल सकते। शांतिपूर्ण आंदोलन नहीं कर सकते।

(7) आप व्यापारी हैं। आपको अधिकारियों की पूजा करनी पड़ेगी। आप गलत काम करें या न करें, साथ ही युवक-कांग्रेस को चंदा भी देना पड़ेगा।

(8) आप सामान्य नागरिक हैं। किसी काम के लिए सरकारी दफ्तर में जाइएगा तो पहले से अधिक घूस देना पड़ेगी। इमरजेंसी है- रेट बढ़ गया है।

(9) नागरिक के जो अधिकार संविधान में माने गए थे, वे ठप कर दिए गए हैं। आपके बोलने-लिखने पर तो रोक है ही, आपके कहीं आने-जाने पर भी रोक लगाई जा सकती है।

(10) सरकार की पंचवर्षीय योजनाएं फेल हो चुकी हैं। गरीबी और बेरोजगारी तेजी से बढ़ रही है। विषमता घटती नहीं। निकम्मी शिक्षा बदली नहीं जाती। प्रशासन भ्रष्ट और बेकार है। न्यायालयों में न्याय नहीं मिलता। भूमि-व्यवस्था सामंतवादी है। अपनी सारी निरंकुशता और विफलता को सरकार एकतरफा प्रचार से ढंक रही है।

(11) आप मतदाता हैं। लोकतंत्र में आपको अपनी मर्जी की सरकार बनाने का अधिकार है, लेकिन चुनाव नहीं कराया जा रहा है। फरवरी' 76 में जो चुनाव होना चाहिए था, वह टाल दिया गया। आगे चुनाव कब होगा, कहना कठिन है और होगा तो मुक्त, शुद्ध और पक्षपात‍रहित होगा, इसकी गारंटी नहीं है।

सोचिए, कहां है हमारी स्वतंत्रता और हमारा लोकतंत्र? यह तानाशाही है, नंगी और निरंकुश- इंदिराजी की तानाशाही। उनके बाद संजय की होगी!

क्या आप सोचते हैं कि आपने क्या खो दिया है?

आपने खोया है स्वतंत्र, लोकतांत्रिक देश के ना‍गरिक की हैसियत, अपना अधिकार, जान-माल की सुरक्षा, अपना सम्मान। तो, बचा क्या?

आंखें खोलिए, देखिए, समझिए, बोलिए। जनता की आवाज उठेगी तो सत्ता हिल जाएगी।