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Written By Author उमेश चतुर्वेदी
Last Updated : मंगलवार, 30 अगस्त 2016 (15:24 IST)

इसरो की इस कामयाबी को सलाम

इसरो की इस कामयाबी को सलाम - ISRO, world, natural reserves
दुनिया में आज कहीं ज्यादा अशांति और आशंका के बादल के पीछे पेट्रोलियम पदार्थों पर कब्जे की जंग को भी माना जा रहा है। दुनिया में बढ़ती महंगाई की भी बड़ी वजह ऊर्जा जरूरतों का बढ़ना और उसके स्रोत का लगातार घटते जाना भी है। आज के दौर में दुनिया की ऊर्जा का सबसे बड़ा स्रोत पेट्रोलियम पदार्थ और कोयला ही हैं। जिस तरह तकनीकी विस्तार हो रहा है, उसे देखते हुए यह नहीं कहा जा सकता कि पेट्रोलियम का प्राकृतिक भंडार अनंत काल तक बना रहेगा।
इसी वजह से ऊर्जा के अब प्राकृतिक और नवीकर ऊर्जा के स्रोतों मसलन सौर ऊर्जा और पवन ऊर्जा के दोहन को लेकर दुनिया में चलन बढ़ रहा है। चूंकि दोनों ही स्रोतों से ऊर्जा तो हासिल होती ही है, उसके लिए किसी चीज को खर्च भी नहीं करना पड़ता। सूर्य की किरणों का ताप खत्म भी नहीं होना है और हवाएं चलती ही रहनी हैं। लेकिन ऊर्जा का एक स्रोत हवा में उपस्थित ऑक्सीजन भी है। जिसका इस्तेमाल करके ऊर्जा भी हासिल की जा सकती है और फिर उससे हासिल ऊर्जा के बाद ऑक्सीजन एक बार फिर विखंडित होकर वायुमंडल में समा सकती है। 
 
इस ऑक्सीजन को लेकर कई तरह से प्रयोग हो रहे हैं और दुनियाभर में उससे ऊर्जा हासिल करने की कोशिशें भी हो रही हैं। मोटर साइकिलों को चलाने के लिए पानी से हासिल ऑक्सीजन का भी इस्तेमाल करने की कोशिश भी हो रही है। इसी कड़ी में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन यानी इसरो के वैज्ञानिकों ने वायुमंडल में मौजूद ऑक्सीजन को ना सिर्फ सीधे हासिल करने, बल्कि उससे द्रवीकृत करने और ऊर्जा के रूप में परिवर्तित करने को लेकर बड़ी कामयाबी हासिल की है। 
 
इस तकनीक के जरिए इंजन को चलाने का यह परीक्षण आंध्रप्रदेश के श्री हरिकोटा के सतीश धवन स्पेस सेंटर में रविवार की सुबह कामयाब रहा है। वैज्ञानिकों ने इस इंजन को स्क्रैमजेट नाम दिया है।
 
स्क्रैम जेट नाम का यह इंजन अंतरिक्ष में छोड़े जाने वाले उपग्रहों को उनकी कक्षा में स्थापित करने वाले रॉकेट में इस्तेमाल किया जाएगा। इसके जरिए पारंपरिक पेट्रोलियम तकनीक की बजाय ऑक्सीजन से ऊर्जा हासिल की जाएगी। यह बेहद किफायती भी होगा। इस इंजन में ऐसी तकनीक विकसित की गई है, जिसके जरिए हवा में उडते हुए भी वह वातावरण में मौजूद ऑक्सीजन को ग्रहण करेगा और उसे ना सिर्फ ऊर्जा में बदलेगा, बल्कि भविष्य की जरूरतों के लिए ऑक्सीजन को इकट्ठा करके द्रवीकृत रूप में भी रखेगा।
 
यहां यह बता देना जरूरी है कि पृथ्वी से करीब पचास किलोमीटर तक की ऊंचाई के वायुमंडल में ऑक्सीजन पाई जाती है। इसलिए उपग्रह को ले जा रहा स्क्रैमजेट इंजन इतनी दूरी में से भी तेजी से ऑक्सीजन ना सिर्फ हासिल करेगा, बल्कि उसे उपग्रह को कक्षा में छोड़ने तक के लिए अपनी ईंधन जरूरतों को पूरा करेगा। 
 
इसरो के वैज्ञानिकों की इस कामयाबी से भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम की लागत भी घटेगी। वैसे भी पूरी दुनिया में भारतीय अंतरिक्ष प्रक्षेपण कार्यक्रम सबसे सस्ता है। इस वजह से तकनीकी क्रांति के अगुआ देश अमेरिका, ब्रिटेन, जापान, सिंगापुर आदि देशों के भी उपग्रह अंतरिक्ष में स्थापित करने का काम इसरो को मिल रहा है। अपनी सस्ती तकनीक की वजह से भारत अंतरिक्ष में उपग्रह प्रक्षेपण के वैश्विक बाजार में महत्वपूर्ण और किफायती प्रतियोगी के तौर पर उभरा है।
 
स्क्रैमजेट इंजन के भी कामयाब परीक्षण के बाद भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन की साख दुनिया में और बढ़ेगी और इसका फायदा भारत को और मिलेगा। निश्चित तौर पर इसका श्रेय भारतीय वैज्ञानिकों को ही जाता है। दुनिया की बड़ी प्रयोगशालाओं की ऊंचे वेतन और सहूलियतों के बावजूद भारतीय वैज्ञानिक प्रतिभाओं ने अपनी ही माटी की सेवा करने की राह चुनी है और इसके जरिए वे तकनीकी क्रांति की लगातार नई इबारत लिख रहे हैं। देश को अपनी ऐसी वैज्ञानिक प्रतिभाओं पर गर्व है। स्क्रैमजेट इंजन के कामयाब परीक्षण के लिए उन्हें देश का सलाम...