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Written By शरद सिंगी
Last Updated : शुक्रवार, 24 अक्टूबर 2014 (17:57 IST)

वैश्विक मंदी के बीच भी भारत पर लक्ष्मी की अनुकंपा

वैश्विक मंदी के बीच भी भारत पर लक्ष्मी की अनुकंपा -
भारतीय परंपरा के अनुसार दीपावली पूजन के साथ ही नए वित्तीय वर्ष का आरंभ हो चुका है। वैभव की देवी लक्ष्मीजी के आव्हान के साथ ही नए बहीखातों में गणेशजी विराजमान हो चुके हैं। तो आइए हम उन कारकों का विश्लेषण करें जो आगामी वित्त वर्ष में इन बहीखातों को प्रभावित करेंगे। एक समय ऐसा था जब अंतरराष्ट्रीय तो छोड़िए राष्ट्रीय घटनाएं भी किसी व्यावसायिक प्रतिष्ठान या व्यापार पर अपना प्रभाव नहीं डाल पाती थीं, किंतु जैसे-जैसे हम और हमारे व्यापार के तार वैश्विक व्यापारिक समुदाय के साथ जुड़ने लगे हैं वैसे वैसे विश्व के आर्थिक मंच पर होने वाली हर घटना भारत के हर व्यापारी और उपभोक्ता को प्रभावित करने लगी है। 
 
यदि हम आर्थिक जगत की वर्तमान परिस्थिति को देखें तो सन् 2007 से मंदी में फंसी विश्व की अर्थव्यवस्था बड़े प्रयासों के बाद लड़खड़ाती हुई मंदी के दौर से बाहर निकली है, किंतु पुनः कुछ ऐसे नकारात्मक संकेत मिल रहे हैं जिससे अर्थशास्त्रियों को लगने लगा है कि विश्व के ऊपर एक बार फिर आर्थिक मंदी के बादल मंडराने लगे हैं। सबसे पहला संकेत कच्चे तेल की मांग में गिरावट आना है।
 
इस गिरावट का सीधा कारण है उद्योगों में तेल की खपत कम होना अर्थात उत्पादन में गिरावट होना। उत्पादन में गिरावट का अर्थ है बाजार में मांग में गिरावट यानी उपभोक्ताओं की क्रय शक्ति में कमी आना। परिणामस्वरूप कच्चे तेल के भाव गिर रहे हैं। 2007 की मंदी की शुरुवात पश्चिमी देशों से हुई थी किन्तु तब ब्रिक्स देशों  (रूस, चीन, भारत, ब्राज़ील  और दक्षिण अफ्रीका) की अर्थव्यवस्थाएं अपने पूरे उफान पर थीं। 
 
विश्व को इस मंदी में से बाहर निकालने में ब्रिक्स देशों का महत्वपूर्ण योगदान रहा था, परंतु अब स्थितियां बदल चुकी हैं। चीन की अर्थव्यवस्था एक ऐसे चरण में है जहां प्रत्येक नए वर्ष में गुजरे वर्ष की सफलता को दोहराना चुनौतीपूर्ण होता जा रहा है। चीन की वर्तमान अर्थव्यवस्था को कुछ ठहराव चाहिए। रूस के क्रीमिया में घुस जाने की वजह से पश्चिमी देशों ने रूस पर कई प्रकार के आर्थिक प्रतिबंधों की घोषणा कर दी है। ब्राज़ील और दक्षिणी अफ्रीका में राजनीतिक दुर्बलता के चलते अर्थव्यवस्था की कोई दिशा नहीं है। जाहिर है जिन देशों के सहारे विश्व की अर्थव्यवस्था पिछली मंदी के दौर से बाहर निकली थी वे देश अब स्वयं अपनी अर्थव्यवस्था से जूझ रहे हैं। यूरोप के बाजार सारे प्रयत्नों के बाद भी उठ ही नहीं पा रहे। मंहगाई की दर रुकने का नाम नहीं ले रही। यूरोप की सबसे मज़बूत अर्थव्यवस्था जर्मनी पर भी मंदी का खतरा मंडराने लगा है। 
 
अब जरा गौर करें कि भारत के लिए इन परिस्थितियों के क्या मायने हैं? कच्चे तेल की मांग कम होने के बावजूद विश्व बाजार में अपना अंश कम होने का भय है कोई देश अपना तेल का उत्पादन कम नहीं करना चाहता। ऐसे में अगले वर्ष तेल की कीमतों में तेजी आने के संयोग कम लगते हैं। 
 
यह स्थिति भारतीय सरकार, उद्योगों और उपभोक्ताओं के लिए तो अनुकूल है क्योंकि भारत द्वारा अर्जित विदेशी मुद्रा का अधिकांश हिस्सा तेल को  आयात करने में खर्च होता है। तेल के दाम कम होने से विदेशी मुद्रा की भारी बचत होगी। मोदी सरकार ने तेल के गिरते हुए दामों का लाभ लेकर बड़ी चतुराई से डीजल पर से सब्सिडी उठा ली। 
 
यह ऐसा काम था जो वर्षों से सरकार के गले की हड्डी बना हुआ था। डीजल सबसिडी भारत के बजट और करदाताओं पर एक बहुत बड़ा बोझ थी। इस सबसिडी के हट जाने से सरकार को बड़ी राहत मिलेगी तथा विकास कार्यक्रमों के लिए अतिरिक्त पैसा। 
 
यदि कहें कि ब्रिक्स देशों में केवल भारत ही एक ऐसा देश है जहां सारी स्थितियां आर्थिक प्रगति के अनुकूल दिख रही हैं तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। राजनीतिक स्थिरता, तीव्र गति से बढ़ता उपभोक्ता बाजार, बुनियादी सुविधाओं के निर्माण में अनेक संभावनाएं आदि ऐसे घटक हैं जो विदेशी पूंजी को आकर्षित करेंगे। अतः हमारा आकलन है कि पूंजी का प्रवाह अब पश्चिमी देशों से भारत की ओर शुरू होगा। विडम्बना केवल यह है कि विश्व भर में लक्ष्मीजी आज भी धन कुबेरों की तिजोरियों में कैद है। स्विस बैंक की एक रिपोर्ट के अनुसार दुनिया की 50 फीसदी दौलत पर विश्व के मात्र एक फीसदी लोगों का कब्ज़ा है शेष पचास फीसदी धन 99 प्रतिशत लोगों के बीच में बंटा है। मज़े की बात यह है कि चाहे तेजी हो या मंदी इन एक फीसदी लोगों की तिजोरी तो हर हाल में भरती ही जाती है। परिणामतः हर मंदी के बाद आई तेजी में धनपतियों की सम्पत्ति पहले से अधिक नज़र आती है। 

 
 
सच तो यह है कि गरीब अमीर के बीच की खाई चौड़ी होती जा रही है। दौलत के विभाजन की असमानता के ये हाल हैं कि यदि आपके पास पचास लाख रुपए हैं तो आप दुनिया के दस प्रतिशत लोगों की गिनती में हैं और यदि 5 करोड़ हैं तो आप दुनिया के प्रथम एक प्रतिशत लोगों में शुमार हैं। लक्ष्मीजी को आव्हान कर हम तो यही प्रार्थना करेंगे कि वे धन कुबेरों की तिजोरियों से बाहर निकलें। सभी देशों, वर्गों व समाजों पर सामान आशीर्वाद दें। श्रम को उसका हक़ मिले, ज्ञान को उसका मूल्य। किन्तु बस धन के साथ धन का आकर्षण योग न हो। प्रत्येक भारतवासी के खाते में ज्ञान, श्रम और धन का योग हो इसी कामना के साथ दीपावली की शुभकामना।