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Last Updated : मंगलवार, 7 मार्च 2017 (17:07 IST)

डिजाइनर देशभक्ति से कोई लाभ नहीं होगा !

डिजाइनर देशभक्ति से कोई लाभ नहीं होगा ! - Get rid of designer patriotism
नई दिल्ली। विभिन्न समाचार पत्रों में यूपी विधानसभा चुनावों के परिणामों को लेकर जानकारों ने आकलन शुरू कर दिया है हालांकि इसके नतीजे 11 मार्च के बाद ही पूरी तरह आ सकेंगे। लेकिन टाइम्स ऑफ इंडिया में स्वामीनाथन एस. अंकलेसरैया ने मान लिया कि यूपी में बीजेपी की जीत की पक्की की है।
 
उन्होंने लिखा है, 'पूर्वी उत्तर प्रदेश के एक दौरे से पता चल जाता है कि बीजेपी को यूपी में मजबूत समर्थन मिल रहा है और वह निश्चित तौर पर वहां जीत रही है। वह लिखते हैं कि भले ही जमीनी स्तर पर स्थानीय मुद्दे प्रभावी होते हैं लेकिन मोदी की प्रभावी हवा विरोधियों पर भारी पड़ने वाली है।'
 
जब राष्ट्रीय, राष्ट्रव्यापी या डिजाइनर राष्ट्रवाद की हवा बहती है तो हर चीज इसमें उड़ जाती है। और  इस हवा की बानगी हम 2014 की मोदी की लहर से समझ सकते हैं। हालांकि कुछेक कारणों से  दिल्ली और बिहार के चुनाव में यह रुक गई। दिल्ली में तो हवा दो बार असफल हो गई लेकिन एक बार फिर यह लहर यूपी में चलती दिख रही है। 
नोटबंदी के बाद से ऐसा लग रहा था कि मोदी गिरावट की ओर बढ़ चलेंगे लेकिन हुआ इसका उल्टा। मोदी की पार्टी देश में हुए कुछेक राज्यों के स्थानीय चुनावों में जीत गई। जब महाराष्ट्र और गुजरात की हवा (जीत की) पंजाब और हरियाणा से होते हुए ओडिशा तक पहुंच गई है तो क्या यूपी इससे अछूता रह सकता है? यह भी तय नहीं है कि यूपी में राजनीति स्थानीय मुद्दों को लेकर नहीं होती जा पड़ती और स्थानीय बीजेपी नेताओं के प्रति भी लोगों का ज्यादा समर्थन नहीं दिखाई दिया। 
 
लेकिन हर ओर सिर्फ एक आवाज सुनाई दी और वह है - मोदी, मोदी। भाजपा सांसद सुब्रमण्यम स्वामी और अन्य स्तंभकार आकार पटेल ने अपने लेखों में लिखा है कि यूपी की भाजपा भले ही हार जाए लेकिन हार के बावजूद मोदी मजबूत बने रहेंगे। लेकिन सभी का मानना है कि यूपी में मोदी जीत की लगभग तय हैं। मोदी ने यह जीत सुनिश्चित करने के लिए और 2019 में पीएम के तौर उनकी दूसरी जीत का रास्ता तय करने के लिए खूब पसीना बहाया। चुनाव प्रचार के अंतिम दिनों में तो नेताओं के भाषण, श्मशान, कब्रिस्तान, गदहा, गैंडा और अन्य तरह के अपशब्दों तक पहुंच गए। लेकिन इसके लिए मोदी सरकार, मंत्रियों और सरकारी मशीनरी को क्या-क्या नहीं करना पड़ा यह शायद आपके विचारों में भी न आए।
 
आंकड़ों का विकास
चुनाव के दौरान विकास के आंकड़े प्रकाशित किए है। जीडीपी की दर को भी ऊंचा बता दिया भले ही अपने एक स्तम्भ में पूर्व ‍व‍ित्त मंत्री पी. चिदंबरम ने नोटबंदी के बाद पहली बार आए जीडीपी आंकड़ों पर सवाल उठाया। उन्होंने लिखा है- वृद्धि दर चाहे 6.5 फीसद रहे या सात फीसद, यह देश के लिए संतोष का विषय है- अपनी पीठ थपथपाने और उल्लास का नहीं। हालांकि यह वह सवाल नहीं है जो सुधी विश्लेषकों को परेशान कर रहा है और इस भुला दिए गए सवाल का सार है,‘क्या विमुद्रीकरण ने आर्थिक विकास पर बुरा असर डाला है?’ 
 
सीएसओ (सरकार के मुख्य  सांख्यिकी अधिकारी) के आंकड़े इस सवाल का जवाब नहीं देते कि विमुद्रीकरण से अर्थव्यवस्था के हर क्षेत्र को चोट पहुंची लेकिन विकास का यह चमत्कार कैसे हो गया?  मात्र इन तीन मामलों में बढ़ोतरी हुई : (1) सरकारी व्यय पर कोई असर नहीं हुआ और 8 नवंबर, 2016 के बाद इसमें इजाफा ही हुआ; (2) इससे मानसून पर कोई असर नहीं पड़ा जो कि भरपूर थी और कृषि उपज बढ़ी; (3) जनोपयोगी सेवाओं के राजस्व पर कोई असर नहीं हुआ क्योंकि इन सेवाओं के भुगतान के लिए विमुद्रित नोटों के उपयोग की मंजूरी थी और वस्तुत: इससे पुराने नोटों से बकायों के भुगतान को प्रोत्साहन मिला। 
 
लेकिन बढ़ती समृद्धि  बेहतर तरीके से बढ़ते निवेश, बढ़ते उत्पादन और रोजगार सृजन में प्रतिबिंबित होती है लेकिन यह सरकारी आंकड़ों के अलावा कहीं नहीं दिखता। जीवीए/जीडीपी आंकड़ों ने भले ही एक हैरानी पैदा की हो, पर बहुत से ऐसे संकेतक हैं जो इशारा करते हैं कि अर्थव्यवस्था में अब और निवेश नहीं हो रहा, और उत्पादन नहीं हो रहा और नए रोजगार सृजित नहीं हो रहे तब विमुद्रीकरण का कौन-सा उद्देश्य हासिल हुआ है? काला धन अब भी पैदा हो रहा है और रिश्वत ली और दी जा रही है। जम्मू-कश्मीर में आतंकवादी घटनाएं बढ़ी हैं। जाली नोट भी सामने आए हैं। आंकड़ों के बारे में ढेरों सवाल हैं और ये आंकड़े विमुद्रीकरण को लेकर हमारे सवालों का जवाब नहीं हैं। सवालों के उत्तर खोजने की बजाय जबरदस्ती देशभक्ति का बूस्टर डोज देने की कोशिश की जा रही है।
 
जबरदस्ती देशभक्ति जगाने की कोशिश
इस दौरान समूचे देश में एक और प्रवृति देखी गई और यह प्रवृति रही कि देश में जबरन देशभक्ति जगाने की प्रतियोगिता खूब चली। ऐसा करते समय देश‍भक्ति और राष्ट्रवाद का अंतर समझने की भी जरूरत नहीं समझी गई। हाल ही में दिल्ली यूनिवर्सिटी में एबीवीपी की हिंसा और उसके बाद गुरमेहर कौर की ओर से सोशल मीडिया पर डाले गए वीडियो से पैदा विवाद पर टीका-टिप्पणी होती रही है। उन्होंने लिखा है- देशभक्ति किसी के आदेश पर नहीं पैदा हो सकती और यह बात इतनी साफ जाहिर है कि इसे दोहराने की जरूरत नहीं होनी चाहिए।
 
जब हमारे छात्र देश को तोड़ने की बातें करते हैं लेकिन सरकार उन पर देशद्रोह का आरोप लगाकर उन्हें हीरो बना देती है। पिछले साल हमारे गृहमंत्री ने कन्हैया कुमार और उमर खालिद को हीरो बना दिया था और अब गुरमेहर कौर को उन एबीवीपी छात्रों ने हीरोइन बना दिया है, जिन्होंने उसको धमकाने, डराने की कोशिश की है। यह सारा तमाशा देशभक्ति के नाम पर हुआ है लेकिन सच तो यह है कि इन देशभक्तों की करतूतों ने देश की छवि को ही बिगाड़ा है। दूसरी ओर तथाकथित उदारवादी वामपंथी भी लोकतंत्र के सिपाही बन गए हैं। 
 
ऐसा करते समय वे यह भी भूल गए जिन विदेशी आकाओं की विचारधारा को उन्होंने उधार लिया है,  उन देशों में न कभी लोकतंत्र कायम हुआ है और न ही भविष्य में कायम होता दिखता है। इन चीजों का देशभक्ति से कोई वास्ता नहीं है, लेकिन एबीवीपी के छात्र देश के लोगों को जोड़ने की बजाय सरकारी प्रचारतंत्र की भाषा बोल रहे हैं। देशभक्तों को कभी ऐसी भाषा नहीं बोलनी चाहिए जो‍ अपने ही देशवासियों को आहत करे।जो लोग दूसरों पर जबरदस्ती देशभक्ति थोपना चाहते हैं, उन्हें इस काम को फौरन बंद करके आप असली देशसेवा में लगाएं। अगर छात्रों को देश से इतना प्यार है तो जब पढ़ाई से फुर्सत मिलती है, तब वे अपने गांव, शहर की गलियों में स्वच्छ भारत का संदेश फैलाने के लिए स्वयं सफाई करें और बाकी लोगों को भी प्रेरित करें।   
 
राष्ट्रवाद की अफीम से अपना ही नुकसान
अगर आप अमेरिका के कन्सास प्रांत में भारतीय इंजीनियर श्रीनिवास कुचिभोतला की हत्या से पैदा सवालों के जवाब चाहते हैं और कहते हैं कि 32 वर्षीय कुचिभोतला की हत्या अमेरिका में तेजी से बढ़ते नस्लवाद, अज्ञानता और असहिष्णुता का नतीजा है। लेकिन इस हत्या ने डोनाल्ड ट्रंप के अमेरिका साथ ही नरेंद्र मोदी के भारत के सामने भी मुश्किल सवाल पैदा किए हैं। इसलिए समझ लें कि यूपी के दादरी में मोहम्मद अखलाक और कन्सास में कुचिभोतला की हत्या के बीच बहुत ज्यादा अंतर नहीं हैं। दोनों अल्पसंख्यक विरोधी घटनाएं है लेकिन इन घटनाओं के बाद मोदी और ट्रंप के ट्विटर हैंडल चुप हो जाते हैं। 
 
ट्रंप ने बड़ी मुश्किल से कुचिभोतला की हत्या की निंदा की लेकिन अखलाक की हत्या पर भी तो मोदी से कुछ भी नहीं कहा गया? लेकिन अब भी इसी बात पर बहस चलती है कि अखलाक के फ्रिज में रखा मांस बीफ था या नहीं? गृह मंत्री राजनाथ सिंह,  अमेरिकी सरकार को अल्पसंख्यकों का विश्वास बहाल करने की सलाह दे रहे हैं। इससे ज्यादा पाखंड और क्या होगा? मोदी अपने देश में जिस राष्ट्रवाद को हवा दे रहे हैं, वही राष्ट्रवाद अमेरिका में आप्रवासी भारतीयों को भारी पड़ रहा है और भारतीय मध्यम वर्ग को देश में एक समावेशी, बहुलता संपन्न और 
कॉस्मोपोलिटन संस्कृति के विकास को बढ़ावा देना होगा तभी वह ग्लोबलाइजेशन की ताकतों से अपना तालमेल कायम रख पाएगा।
 
सिर्फ राहुल पर निशाना न साधें 
देश के राजनीतिक विचारकों में कांग्रेस की खराब स्थिति पर सवाल उठाया है और उनका मानना है कि भाजपा का भारी-भरकम कारवां तेजी से आगे बढ़ रहा है और कांग्रेस पिछड़ती जा रही है। हालांकि फौरी राजनीतिक गठबंधनों से कांग्रेस थोड़ा-बहुत हासिल करती दिखती है लेकिन उसे लंबी रणनीतिक योजना बना कर चलना होगा। कांग्रेस को चुनावों में थोड़ी-बहुत बढ़त फौरी लाभ से आगे जाकर सोचना होगा।
 
कांग्रेस ने रणनीतिकारों को सोचना होगा कि आखिर उसने जनता के साथ अपना पुराना तालमेल क्यों खो दिया है ? कांग्रेस की गिरावट के लिए राहुल गांधी और उनकी नेतृत्व की कमियों को दोष देने से कोई फायदा नहीं होगा। इस बात से भी कोई फायदा नहीं होगा प्रियंका के कमान संभाल लेने से हालात बदल जाएंगे। वास्तविकता यह है कि कांग्रेस की यह दशा उसके पास किसी वैकिल्पक विमर्श के न होने से हो रही है। 
 
कांग्रेस को भाजपा के कदम की प्रतिक्रिया में कदम उठाने की बजाय अपनी कमियों, खामियों को दूर करना होगा। पार्टी सार्थक मुद्दे उठाने और उन्हें आगे बढ़ाने में भी नाकाम रही है। कांग्रेस के पास वह सब कुछ है, जिससे वह वापसी कर सकती है। पार्टी की पहुंच देश के हर कोने में है। कार्यकर्ता हैं और इसकी ब्रांड वैल्यू है। दूसरी पीढ़ी का नेतृत्व भी है. लेकिन उसे इसका फायदा नहीं हो रहा है क्योंकि उसने भी किसी तरह से राहुल गांधी को पीएम की कुर्सी पर पहुंचाने का एकमात्र  उद्देश्य बना रखा है। 
 
पार्टी को ब्रांड मोदी की तरह से अपने ब्रांड को बेहतर बनाना होगा तभी उसकी स्थिति मजबूत होगी। जमीनी संस्थाओं में पार्टी बेहतर करेगी तो यह उन राज्यों में भी बेहतर होगी जहां पर यह कमजोर हो गई है। कांग्रेस को नकारात्मक से ज्यादा सकारात्मक नजरिए से काम लेना होगा क्योंकि ब्रांड मोदी को मात देना मुश्किल है। लिहाजा मोदी के बजाय खुद पर फोकस करना होगा तभी कांग्रेस एक मजबूत व सार्थक विपक्ष देने की स्थिति में आ सकेगी। तभी देश भी मजबूत होगा और कृत्रिम व शोपीस जैसे उपायों की जरूरत भी खत्म हो जाएगी।
(वेबदुनिया डेस्क)
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