मंगलवार, 16 अप्रैल 2024
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सफलता का जनक ये, पर असफलता पर यतीम क्यों?

सफलता का जनक ये, पर असफलता पर यतीम क्यों? - Current Affairs
आज चारों ओर यूपी के विकास की योजनाओं का डंका बज रहा है। यूं कह लीजिए यह डंका जोर- जोर से बजाया जा रहा है।

दरअसल, जो दिखता नहीं वो बताना पड़ता है। अब कुछ चीजें सरकार को दिखती हैं जनता को नहीं जबकि कुछ जनता को दिखती हैं, पर जिम्मेदारों को नहीं। आइए डालते हैं एक दृष्टि ऐसी ही समस्याओं पर जो अछूती हैं शासक वर्ग की दृष्टि से।
 
उत्तरप्रदेश के सीतापुर जिले के महोली ब्लॉक में गरीब ठलिया चालक (रिक्शा की तरह का ठेला सवारी ढोने वाला) महोली से तकिया तक 5 किलोमीटर सवारी ढोता है और इसका किराया है महज 5 रुपए! कुछ साल पहले यह मात्र 2 रुपए ही था। अधिक संसाधन बढ़ने से अब इन लोगों को इतने कम किराए पर भी काम नहीं मिलता।
 
दरअसल, यह एक शोषित वर्ग का एक बड़ा समूह है जिसकी समस्याएं किसी को दिखती ही नहीं। यहां पर क्षेत्र के कलवारी नामक गांव के जगन्नाथ 80 वर्ष से कम क्या होंगे? पर पेट पालने को आज भी यही पेशा अपनाए हैं। कहने को दलितों की बहुत-सी सरकारें आईं-गईं, पर इन्हें कभी कोई लाभ न हुआ।
 
ब्रह्मावली आंशिक तकिया नामक गांव के मेहदी हसन भी 80 के लगभग ही होंगे, पर गरीबी के चलते आज भी ठलिया चलाने को विवश हैं। अब सवाल उठता है कि कहां गईं अल्पसंख्यकों के विकास का राग अलापने वाली सरकारें? वैसे मेहदी हसन के अलावा खलील भी 60 के आसपास के होंगे।
 
अब आते हैं पदासीन जिम्मेदारों की कर्तव्य निष्ठा पर। आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि यहां के छोटे-बड़े नेता और अधिकारी विभिन्न फैक्टरी मालिकों एवं बड़े धनवानों से सीधा संपर्क रखते हैं, पर इन लोगों से मिलकर इनकी सुनने का किसी के पास मौका नहीं।
 
यहां पर अनूप नामक एक मजदूर की मौत खेत में काम करते समय लू लगने से हुई जबकि उसकी उम्र लगभग 85 वर्ष से कुछ ऊपर थी। घटना 3 साल पुरानी है। इसके अतिरिक्त इन बूढ़ों को अधिक उम्र के चलते काम मिलने में काफी दिक्कत आती है और मिल भी गया तो करने में बहुत तकलीफ होती है। पर पेट की खातिर...!
 
सबसे हास्यास्पद तो यह है कि यहां के कुछ चाटुकार गुजरात की झूठ-मूठ की बातें करते हैं। ऐसा लगता है जैसे वह सिर्फ वहीं के अखबार पढ़ते हों, यूपी के नहीं। शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 बच्चों के लिए महज कागजी नियम साबित हुआ। प्रदेश में शिक्षकों की भीषण कमी है।
 
गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के लिए टीईटी उत्तीर्ण लोगों को बच्चों को पढ़ाने के बजाय अपने हक की जंग लड़नी पड़ रही है। जो शिक्षामित्र नियुक्त किए गए वे भी पढ़ाने के साथ अपनी समस्याओं और भविष्य को लेकर जूझने को मजबूर हैं, ऐसे में शिक्षा की गुणवत्ता लगातार प्रभावित हो रही है। इन मासूमों के कई स्कूल तो ऐसे हैं जिनमें शिक्षक 1 या 2 हैं जबकि कक्षाएं 5 और ऊपर से बाबूगिरी का काम।
 
यूपी के अधिकारी शिकायतों के प्रति कितने सजग हैं इसका नमूना ब्रह्मावली गांव है। यहां खुले में रखे ट्रांसफॉर्मर पर अधिकारी बोलते हैं कि मौत तो कहीं भी हो सकती है जबकि समस्या भले जस की तस हो, पर इनकी हेल्पलाइन के अनुसार समस्या निस्तारित हो चुकी है।
 
उक्त संबंध में एमडी कार्यालय को भी फोन से जानकारी दी गई, पर वहां पर भी सिर्फ तालीम बताई मिली। इसी गांव में कई साल पहले खुले में रखे ट्रांसफॉर्मर की वजह से हुलासी नामक गरीब किसान की भैंस मर गई थी।
 
इधर लखीमपुर जिला के बेहजम रोड पर भी कई ट्रांसफॉर्मर खुले में रखे हैं। विद्युत विभाग न सिर्फ लापरवाह है वरन ये खामियां अब तक यतीम हैं। चीफ सेक्रेटीएंट ऑफिस में सालों से समस्याएं पेंडिंग हैं। इनका कोई पूछाहाल नहीं है। अब तक शायद ही किसी समस्या को निस्तारित किया गया हो।
 
प्रदेश में धार्मिक सद्भाव गायब हो रहा है। लोगों की स्वतंत्रता छीनने का प्रयास जारी है। पूरे प्रदेश में पुलिस से सुरक्षा के बजाय जनता भयभीत है।
 
सीतापुर जिले के जमुनिया गांव के गंगाराम नाम के युवक को पुलिस रात को तंग करती है जबकि उसका गुनाह सिर्फ इतना था उसने पुलिस के खिलाफ आरटीआई का प्रयोग कर दिया था। अब यह मामला मानवाधिकार आयोग ने दर्ज किया है। जगह-जगह अराजकता जिम्मेदार ही फैलाते दिख रहे हैं।
 
आधार बनाए जाने के नाम और खाता खोलने के नाम पर लोगों से शुल्क लिया गया जबकि इन्हें कहा निःशुल्क दिया जाता रहा। अधिकारी भी आधार में धन वसूली की सूचनाओं पर मौन रहे। आधार बनाने वालों के ठेके को न तो किसी ने चेक किया और न ही कभी यह पूछा गया कि तत्काल रसीद क्यों नहीं दी जा रही और शुल्क क्यों?
 
वर्तमान में बन रहे राशनकार्ड का शुल्क कहीं-कहीं गरीबों को 100 रुपए से अधिक तक देना पड़ा है। हालांकि सरकारी रेकॉर्ड में यह समस्या है ही नहीं और न अब तक ऐसा कुछ दर्ज हुआ। लेकिन यह जनता न सिर्फ जानती है बल्कि अब तक भोग रही है।
 
महिलाओं के ऊपर अत्याचार बढ़े हैं। प्रदेश में शिकार और अवैध कटान जोरों पर है, लेकिन ये समस्याएं जमीनी हैं, सरकारी रिकॉर्ड ऐसा बिलकुल नहीं बोलता। भोग तो जनता भोग रही है। लेकिन 'ये पब्लिक है सब जानती है'।
 
- रामजी मिश्र 'मित्र' (स्वतंत्र पत्रकार, साहित्यकार एवं आरटीआई कार्यकर्ता)
ग्राम व पोस्ट- ब्रह्मावली, ब्लॉक- महोली, जिला- सीतापुर (उप्र)