गुरुवार, 25 अप्रैल 2024
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Written By अनवर जमाल अशरफ

कोलोन की घटना के बाद औरतों का गुस्सा

कोलोन की घटना के बाद औरतों का गुस्सा - Cologne women
पांच साल पहले जब अरब देशों में क्रांति हो रही थी, तब जर्मनी और यूरोप के दूसरे देश सत्ताविरोधियों का साथ दे रहे थे। लीबिया से लेकर मिस्र तक और बहरीन से लेकर सीरिया तक। उस वक्त किसी ने नहीं सोचा होगा कि इस आग की तपिश खुद उनके देशों तक पहुंच जाएगी। पहले लाखों की संख्या में शरणार्थी, फिर पेरिस के आतंकवादी हमले और अब कोलोन की घटना ने यूरोप को परेशान करके रख दिया है।
अब, जबकि यह बात लगभग साफ हो चली है कि कोलोन में नववर्ष की पूर्वसंध्या पर अपराध करने वाले ज्यादातर लोग प्रवासी मूल के और कुछ संभवतः शरणार्थी हैं, जर्मनी के खुले द्वार की नीति पर सवाल उठने लगे हैं। जर्मन चांसलर अंगेला मैर्केल, जो खुद एक महिला हैं, उनके लिए एक तरफ शरणार्थियों का मसला है, तो दूसरी तरफ देश के अंदर औरतों में पनपता गुस्सा और नाराजगी। जर्मन समाज इस वक्त सब्र के ऐसे पैमाने पर बैठा है, जो कभी भी छलक सकता है।
 
यौन उत्पीड़न के सैकड़ों मामले : कोलोन के मुख्य ट्रेन स्टेशन और कैथीड्रल के पास नए साल की पूर्वसंध्या पर जश्न मना रहे लोगों के बीच लगभग 1000 ऐसे लोग घुस गए, जिन्होंने महिलाओं के साथ बदसलूकी की और उनका यौन उत्पीड़न किया। पहले इक्का दुक्की महिलाएं ही सामने आईं लेकिन पुलिस की अनुरोध के बाद रिपोर्ट लिखाने वाली महिलाओं की संख्या 100 से ज्यादा हो गई। उन्होंने आरोप लगाया कि कुछ लोगों ने उनके साथ यौन उत्पीड़न किया, छेड़छाड़ की और एक दो बलात्कार के मामले भी दर्ज किए गए। उनके मोबाइल और दूसरे कीमती सामान भी छीन लिए। सीसीटीवी फुटेज और पूछताछ के बाद यह नतीजा निकल रहा है कि इन घटनाओं में प्रवासी और पिछले साल जर्मनी में शरण लेने वाले लोगों का हाथ हो सकता है। यह बात भी सामने आ रही है कि नए साल के मौके पर ऐसी घटना सिर्फ कोलोन नहीं, बल्कि हैम्बर्ग शहर में भी हुई।
 
औरतों में गुस्सा : जर्मनी का समाज इस बात के लिए तैयार नहीं है। यह एक खुला समाज है, जहां औरतें किसी भी वक्त कहीं भी आ जा सकती हैं, कुछ भी पहन सकती हैं। हफ्ते के आखिर के रातों में दोस्तों के साथ पार्टी करना और देर रात अकेले सफर करना उनके जीवन का हिस्सा है। लेकिन कोलोन की घटना ने उनके मन में डर पैदा कर दिया है। उन्हें मिर्ची स्प्रे रखने और देर रात अकेले न घूमने की सलाह दी जा रही है। अनजान लोगों से दूर रहने की बात कही जा रही है।
 
जर्मनी का समाज और औरतें ऐसी सलाह के लिए तैयार नहीं हैं। यह बात भी समझ में आने वाली है कि वे बाहर से आए लोगों की वजह से बदलने और डरने को तैयार नहीं हैं। इस घटना के बाद करीब दो हजार महिलाओं ने कोलोन शहर में रैली निकाली और अपराधियों को दंड देने की मांग की।
 
जर्मनी में महिलाओं के खिलाफ अपराध : ऐसा नहीं कि जर्मनी में यौन उत्पीड़न के मामले नहीं होते। संघीय बलात्कार संकट केंद्र और महिला संगठनों के आंकड़ों के मुताबिक 2001 से 2012 तक जर्मनी में हर साल यौन उत्पीड़न के औसत 8000 मामले सामने आते हैं लेकिन अदालत तक सिर्फ 1300 पहुंच पाते हैं। इनमें से 1000 से भी कम मुकदमे चलते हैं और 10 फीसदी मामलों में भी सजा नहीं हो पाती।
 
कोलोन के कार्निवल और म्यूनिख के मशहूर अक्टूबरफेस्ट (बीयर फेस्टिवल) में भी महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार के मामले सामने आते हैं, जहां आम तौर पर जश्न मनाने वाले नशे में होते हैं। हालांकि इन मौकों पर ज्यादातर जर्मन भीड़ में शामिल होते हैं। कोलोन की घटना इससे अलग हो जाती है क्योंकि इसमें बाहर से आए लोगों ने अपराध किया है। ऐसे लोग, जो जर्मन नहीं दिखते, जर्मन नहीं बोलते और जिनके बारे में पश्चिमी समाज पूर्वाग्रह से भरा है।
 
मैर्केल की मुश्किल : पिछले साल तक शरणार्थी नीति की वजह से सुर्खियां बटोर रहीं चांसलर मैर्केल के लिए कोलोन की घटना बड़ी परीक्षा होगी। मानवाधिकार के नाम पर उन्होंने पिछले साल दस लाख से ज्यादा शरणार्थियों को जर्मनी आने दिया लेकिन उनके रहने सहने और समाज में घुलने मिलने के पूरे इंतजाम अभी तक नहीं हो पाए हैं।
 
शरणार्थियों को जर्मन कायदे कानूनों के बारे में पता नहीं और भाषाई दुश्वारी अलग है। मैर्केल का अनुमान था कि वह यूरोपीय संघ को शरणार्थियों की नीति पर मना लेंगी और इन शरणार्थियों को अलग अलग देशों में जगह दी जा सकेगी। लेकिन ऐसा नहीं हो पाया। यूरोपीय संघ के सदस्य देश शरणार्थियों के मुद्दे पर जर्मन नीति के साथ नहीं हैं और कोलोन की घटना के बाद तो उनका साथ देना और भी मुश्किल दिख रहा है।
 
मैर्केल जर्मनी की पहली महिला चांसलर हैं और 10 साल से पद पर काबिज हैं। वह पिछले साल तक लोकप्रियता की ऊंचाइयों पर थीं और कहा जाता है कि कई बार उनका नाम नोबेल शांति पुरस्कार के लिए भी नामित हो चुका है। शरणार्थियों की उनकी नीति को उनकी राजनीतिक कला और दूरदृष्टि के तौर पर देखा जा रहा था, जो अचानक उलटा पड़ता दिख रहा है।
 
शरणार्थियों का मुद्दा अब सिर्फ राजनीतिक नहीं रह गया है। समाज के अंदर बहस छिड़ गई है। उनके खिलाफ आक्रोश फैल रहा है और महिलाओं के विरोध की वजह से मामला और संवेदशनशील हो गया है। जर्मनी के पास विकल्प और समय– दोनों कम बचे हैं।