गुरुवार, 25 अप्रैल 2024
  • Webdunia Deals
  1. सामयिक
  2. विचार-मंथन
  3. विचार-मंथन
  4. Chinese economic policy, Tata Steel, China, Corus Steel
Written By Author शरद सिंगी

चीनी आर्थिक नीतियों से त्रस्त संसार का उद्योग जगत

चीनी आर्थिक नीतियों से त्रस्त संसार का उद्योग जगत - Chinese economic policy, Tata Steel, China, Corus Steel
सन् 2007 में प्रसिद्ध भारतीय औद्योगिक घराने टाटा ने जब इंग्लैंड की मुख्य स्टील कंपनी कोरस स्टील को करीब 6 बिलियन पौंड (आज के 56,560 करोड़ रुपए) में खरीदा था तो भारतीय उद्योग जगत तो हर्षित था ही किंतु साथ ही पूरे विश्व के उद्योग जगत में एक सनसनी फैल गई थी।
नि:संदेह यह भारतीय संस्थान द्वारा विश्व के औद्योगिक जगत में एक धमाकेदार एंट्री थी। चूंकि सब जानते हैं कि टाटा ग्रुप की कार्यशैली बहुत ही पेशेवर है इसलिए किसी को उनके इस नए उद्यम की सफलता पर संदेह नहीं था। 
 
किंतु दुर्भाग्य ऐसा रहा कि सन् 2007 के पश्चात विश्व की अर्थव्यवस्था में मंदी का दौर आरंभ हुआ। 2007 से पहले स्टील के भावों में तेजी थी किंतु मंदी आरंभ होते ही स्टील की मांग में तेजी से गिरावट आई, दूसरी ओर चीन ने गिरते बाजार में अपना माल खपाने के लिए स्टील को निरंतर सस्ता किया और मंदी की परवाह किए बिना स्टील बनाने की अपनी क्षमता में भी अविराम वृद्धि की।
 
वहीं इंग्लैंड में बिजली की दर और कर्मचारियों का वेतन अधिक होने से उत्पादन की लागत अत्यधिक है। ऐसी स्थिति में टाटा स्टील का अधिक मूल्य वाला स्टील चीन के सस्ते स्टील के साथ प्रतिस्पर्धा नहीं कर पाया। पिछले 15 वर्षों में विश्व में स्टील का उत्पादन दुगना हो गया है और इसमें 50 प्रतिशत इजाफा करने वाला अकेला चीन है। 
 
इस तरह निरंतर हानि में चल रहे टाटा स्टील के पास अन्य कोई विकल्प नहीं होने से उसने अपने इस उपक्रम को बेचने का निर्णय लिया। इस निर्णय से इंग्लैंड में हड़कंप मच गया, क्योंकि टाटा स्टील पर प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से 40,000 लोग अपनी जीविका के लिए आश्रित हैं।
 
इंग्लैंड में पहले से ही बेरोजगारी एक बड़ी समस्या है और इतनी बड़ी संख्या में नए बेरोजगार पैदा हो जाना सरकार और सत्ता में बैठे राजनीतिक दलों के लिए भी अच्छा संकेत नहीं था। सरकार हरकत में आई।
 
ब्रिटेन के वाणिज्य मंत्री साजिद जाविद ने तुरंत मुंबई के लिए उड़ान भरी और टाटा समूह के चेयरमैन सायरस मिस्त्री से मुलाकात कर टाटा स्टील को मनाने का प्रयास किया और साथ ही उन्होंने ब्रिटिश सरकार के सहयोग का आश्वासन भी दिया।
 
उधर यूके के प्रधानमंत्री डेविड कैमरन वॉशिंगटन में हुए परमाणु सम्मलेन के दौरान चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग से मिले और उन्होंने चीन द्वारा यूके को सस्ता स्टील निर्यात करने की नीति की समीक्षा करने की बात कही। लेकिन चीन ने इंग्लैंड के प्रधानमंत्री की सलाह को अनदेखा किया और सहयोग की बात तो छोड़िए, चीन ने उलटे यूरोप से चीन में आयात होने वाले विशिष्ट श्रेणी के स्टील पर आयात कर लगा दिया। 
 
यहां पर अब एक जो बड़ा प्रश्न है कि चीन जिस तरह एक पूर्व योजना के तहत विश्व के अन्य देशों के उद्योगों को बंद करवाने में लगा है, उसकी रोकथाम कैसे हो? चीन अपना एकाधिकार जमाने के लिए घाटा उठाकर भी सस्ते दामों में यूरोप और एशिया के बाजारों में माल फेंक रहा है।
 
चीन के उद्योगों के लिए घाटा उठाना इसलिए संभव है कि चीन के अधिकांश कारखाने या तो सरकारी हैं या सरकार से सब्सिडी या अनुवृत्ति प्राप्त करते हैं। योजना के अनुसार एक बार जब स्थानीय कारखाने दामों में प्रतिस्पर्धा न कर पाने के कारण बंद हो जाएंगे तब चीनी मिलों का एकाधिकार हो जाएगा और मनमाफिक मुनाफा वसूल कर सकेंगे।
 
अमेरिका ने तो इस योजना को समझकर चीन से आयात होने वाले स्टील पर 266 प्रतिशत आयात कर लगाकर अपने उद्योगों को तो बचा लिया किंतु यूरोपीय देशों में एका न हो पाने के कारण वे चीन के विरुद्ध किसी कदम पर सहमत न हो सके और अपने उद्योगों को संकट में डाल दिया। टाटा स्टील इस तरह यूरोपीय संघ की नीतिगत निष्क्रियता की बलि चढ़ गया। 
 
इस पूरे घटनाक्रम की सकारात्मक बात यह थी कि किसी भारतीय औद्योगिक घराने द्वारा पूरे साहस के साथ विदेश में जाकर निवेश करना। सफल या असफल होना अनेक ऐसी बाहरी परिस्थितियों पर निर्भर करता है जिन पर प्रबंधन का कोई नियंत्रण नहीं रहता है। टाटा की हार में भारतीय उद्योग जगत की जीत छुपी है।
 
जिस तरह प्रयोगशाला में किए गए प्रयोग का परिणाम प्रतिकूल होने से प्रयोग को असफल नहीं माना जाता, क्योंकि रिसर्च तो एक कदम और आगे बढ़ती ही है उसी तरह टाटा समूह के इस प्रयोग के परिणाम प्रतिकूल होने के बावजूद यह प्रयोग भारत के कई औद्योगिक घरानों को विश्व के अन्य देशों में जाकर निवेश करने के लिए प्रोत्साहित ही करेगा, क्योंकि उद्योगों का विकास जोखिम लेने से ही संभव है।