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Written By शरद सिंगी

बहुत सीखना है हमें चीन के विकास प्रयत्नों से

बहुत सीखना है हमें चीन के विकास प्रयत्नों से - China, India
विकासशील देशों को विकसित देशों की श्रेणी में पहुंचने के लिए जनसंख्या एक बहुत बड़ा अवरोध है। चीन और भारत दोनों ही देश ऐसे हैं जहां कोई भी व्यवस्था सफल तभी हो सकती है जब उसका पैमाना बहुत विशाल हो। पिछले सप्ताह प्रस्तुत लेखक एक विशाल औद्योगिक मेले में शिरकत करने के लिए शंघाई (चीन) की यात्रा पर था। इस यात्रा के दौरान हुए अपने प्रत्यक्ष अनुभवों और संस्मरणों को पाठकों तक प्रेषित कर रहा हूं। 
शंघाई आज दुनिया के आधुनिकतम शहरों में माना जाता है। दो करोड़ की आबादी वाले शहर को आधुनिकतम शहरों की श्रेणी में लाना कोई हंसी-खेल नहीं। चौड़ी सड़कें, दक्ष यातायात व्यवस्था और उतनी ही  तेजी से भागती अर्थव्यवस्था। चीन, जापान को पछाड़कर दुनिया की दूसरे नंबर की अर्थव्यवस्था बन चुका है।  विश्व के इतिहास में कभी किसी भी देश ने इतनी तेजी से विकास नहीं किया है और विगत तीस वर्षों से चीन ने विकास की इस गति को निरन्तर बनाए रखा है। जनसंख्याजनित विकास के अवरोधों पर जिस  तरह चीन ने विजय पाई है उसका अनुभव और अध्ययन, भारत को सही दिशा में ले जाने में सहायक हो सकता है।
 
हम भारत की तुलना यूरोपीय देशों से  नहीं कर सकते क्योंकि वहां दूरियां कम, जनसंख्या कम और संसाधन ज्यादा हैं, किन्तु चीन हर दृष्टि में हमसे बड़ा है फिर चाहे  क्षेत्रफल हो या जनसंख्या।  चीन का क्षेत्रफल भारत से तीन गुना अधिक है इसके बावजूद  चीन  अपने देश के प्रत्येक गांव और प्रत्येक  नगर को रोड से जोड़ने में सफल हुआ है।  हमें तो उससे एक तिहाई काम कम ही करना है, फिर भी भारत इतना पीछे क्यों?     
 
हवाई यातायात की बात करें तो, 800 यात्रियों की क्षमता वाले  विश्व के सबसे बड़े हवाई जहाज ए-380  को उड़ाने और उतारने के लिए विशेष व्यवस्था चाहिए। इतने यात्रियों को प्रवेश और निकास के लिए उचित प्रबंध चाहिए। दुबई हो या शंघाई, हर बड़े शहर के पास यह सुविधा उपलब्ध  है किन्तु भारत अभी तक इस पैमाने पर ये सुविधाएं नहीं जुटा सका है। अतः ए-380 की उड़ानों को भारत में लाना अभी तक संभव नहीं हो सका है, जबकि भारत की जनसंख्या को नज़र में रखते हुए इस विमान की सेवाएं लेना भारत के लिए बहुत ही लाभप्रद सिद्ध हो सकती हैं। 
  
चीन में रेलवे का विकास जिस अद्भुत गति से हुआ वह अचंभित कर देने वाला है।  रेलवे स्टेशन किसी आधुनिक एयरपोर्ट से कम नहीं।  तेज गति से चलने वाली रेलें यात्रा में रोमांच भर देती हैं।  शंघाई से बीजिंग की 1320 किमी की यात्रा बुलेट ट्रेन से केवल पांच घंटे में पूरी की जाती है। तुलना करें तो  मुंबई से दिल्ली की लगभग इतनी ही दूरी की यात्रा करने के लिए राजधानी एक्सप्रेस को सोलह घंटे का समय चाहिए। हम तकनीक में तो पीछे हैं ही, अपनी कोशिशों में भी पीछे दिखाई पड़ते हैं।   
 
दुनिया के  निर्माण में लगने वाले कांक्रीट का आधा हिस्सा आज चीन में खप रहा है। स्वाभाविक ही है कि निर्माण कार्यों में लगने  वाले उपकरणों की प्रदर्शनी एवं बिक्री आयोजित करने के लिए शंघाई श्रेष्ठ केंद्र था।  निर्माण में लगने वाले  उपकरणों को बनाने वाले संसारभर के निर्माता इस विशाल मेले में अपने नवीनतम तकनीक एवं उपकरणों के साथ मौजूद थे। संसार की समस्त आधुनिकतम तकनीक जब एक जगह हों तो आप बस अचंभित होकर एक से एक विशाल और स्वचालित मशीनों को हतप्रभ होकर मनुष्य के इन कारनामों पर गर्व भी करते हैं और नई तकनीक को समझने की चेष्टा करते  हैं।  
 
चीन के इस विकास को देखकर विचार आता है कि हम प्रजातंत्र को लेकर कब तक बैठे रहेंगें। महाविमान ए-380 की यात्रा, बुलेट ट्रैन का सफर, औद्योगिक मेले की विशालता, चमत्कृत कर देने वाली शासन-प्रशासन व्यवस्था अब भी मन को आंदोलित  किए हुए है। एक भारतीय के मन में यह  सब देखकर  सहज खीज उत्पन्न होती है कि हम समर्थ होते हुए भी विकास की गति में अब तक पिछड़े हुए क्यों हैं।  प्रजातंत्र हमको निठ्ठल्ले बने रहने की स्वतंत्रता तो नहीं देता। न हम अपनी जनसंख्या का रोना लेकर बैठ सकते हैं। 
 
चीन में एक पार्टी तंत्र होने से आम जनता को  राजनीति में कोई रुचि नहीं है।  देश का राष्ट्रपति लोकप्रियता की वजह से नहीं बनता, अपनी  वरिष्ठता और पार्टी पर अपनी पकड़ से बनता है। ऐसे में प्रश्न उठते हैं कि कहीं प्रजातंत्र द्वारा उपलब्ध कराई गई स्वतंत्रता तो हमारे विकास में आड़े नहीं आ रही है?  विरोध करने का हमारा अधिकार कहीं हमारी प्रगति में बाधा तो नहीं बन रहा है?
 
प्रसिद्ध अर्थशास्त्री प्रोफेसर अमर्त्य सेन के अनुसार विकास का राजनीतिक प्रणाली से कोई सम्बन्ध नहीं।  शिक्षा और स्वास्थ्य में निवेश को प्राथमिकता दी जानी चाहिए, विकास अपने आप होगा। दूसरी ओर विदेशी  निवेशक चाहते हैं भारत की रेल, रोड, हवाई और समुद्री यातायात व्यवस्था में सुधार हो तो नए प्रोजेक्ट  में निवेश संभव है।  भारत इन क्षेत्रों में निवेश में पिछड़ता दिखाई दे रहा है। 
 
आपको आश्चर्य  होगा कि सन् 1990 तक भारत और चीन एक धरातल पर खड़े थे  किन्तु उसके बाद चीन ने उड़ान भरी और भारत कछुए की चाल से आगे बढ़ता रहा है। दोनों की अर्थव्यवस्थाओं में एक विशाल फासला हो चुका है। अब  सोचना तो यह है कि  भारत के पास व्यर्थ गंवाने को समय नहीं है। भारत की अर्थव्यवस्था को अब ए-380 की रफ़्तार और ऊंचाई पर उड़ना होगा और आशा तो यही है कि हमारी  नई सरकार इस उड़ान का नेतृत्व करेगी क्योंकि अब भारत के पास और कोई विकल्प भी नहीं है।