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सरकार के फैसले और आम आदमी

सरकार के फैसले और आम आदमी - Central government
-अभय शर्मा

लोकसभा चुनाव 2014, बात सिर्फ सत्ता परिवर्त्तन की नहीं थी बात थी सपनों की, आशाओं की और सच कहें तो बात थी अच्छे दिनों की। बात यूपी की हो या बिहार की इस बार उस तवके ने भाजपा को दिल खोलकर वोट किया जिसने शायद पहले कभी बीजेपी के पक्ष में इतना ज्यादा विश्वास नहीं दिखाया था। 
इस वर्ग के दायरे में है आम आदमी या कहें मध्यम वर्ग और गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाले। जिन्हें बच्चों की स्कूल फीस से लेकर घर खर्च के लिए प्रतिदिन माथापच्ची करनी पड़ती है। इन्होंने देखा था वह स्वप्न जो इन्हें 'अच्छे दिन-अच्छे दिन' कहकर दिखाया गया था, किन्तु पिछले 10 महीनों में मोदी सरकार के द्वारा लिए गए फैसलों की सबसे ज़्यादा मार इन्हीं पर पड़नी है, या कहें तो इस तवके को ही इन फैसलों को सहन करने में सब से ज़्यादा परेशानी होगी। 
 
दो प्रतिशत सरचार्ज स्वच्छ भारत अभियान के लिए सर्विस टैक्स में जुड़ेगा। रेल टिकट में 14 प्रतिशत बढ़ोतरी। बजट 2015 में सर्विस टैक्स में बढ़ोतरी। अंतरराष्ट्रीय बाजार में कीमतें घटने के बाद भी कई बार डीज़ल और पेट्रोल पर लगने वाले कर में बढ़ोतरी। स्पेक्ट्रम नीलामी में बड़ी बोलियां लगने से कॉल रेट बढ़ने की आशंका। 10 रुपए में प्लेटफॉर्म टिकट। माल भाड़े में बढ़ोतरी आदि। 
 
माना कि ये फैसले सभी वर्गों पर लागू होंगे, लेकिन तय है कि इन फैसलों का सबसे ज्यादा (प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष) असर आम आदमी पर ही पड़ना है। इन फैसलों के पीछे की सरकार की सोच अब साफ़ समझ में आती है कि "जनता के पास पैसा बहुत है, जेब से निकलवाओ"। ये नजरिया किसी का भी बन सकता है अगर हम ये देखें कि "इस देश में 3 प्रतिशत के करीब लोग ही इनकम टैक्स अदा करते हैं", लेकिन कोई नजरिया बनाने या कोई फैसला लेने से पहले ये भी देखना चाहिए कि मध्यम वर्ग का वेतन ही टैक्स कटने के बाद मिलता है, और निम्न मध्यम वर्ग या गरीबी रेखा से नीचे के लोग जिनकी इतनी आय ही नहीँ जिससे की वे इनकम टैक्स के दायरे में आएं। फिर ये लोग ऐसे फैसलों की मार क्यों सहें? 
 
इनकम टैक्स कौन नहीं देता? कौन लोग इसे देने में आनाकानी करते है? या कौन लोग इनकम टैक्स की चोरी करते हैं? हमारी सरकार ये अच्छे से जानती। फिर ऐसे फैसले क्यों लिए जा रहे हैं? नियमों को बनाने वाले ऐसे नियम क्यों नहीं बनाते जिससे कि पैसा उन्हीं लोगों की जेब से निकाला जाए जिनकी जेबें भरी हुई हैं या जो धन्ना सेठ टैक्स की चोरी करते हैं। 
 
मोदी सरकार पर उद्योगपतियों पर मेहरबानी के आरोप यूँ ही नहीँ लगते, समय-समय पर इस सरकार के फैसले इन आरोपों का सत्यापन करते हैं। लोकसभा चुनाव के बाद से आम आदमी और किसानों से मोदी की दूरियां बढ़ती ही जा रहीं हैं। लगता है कि अच्छे दिनों का सपना दिखाने वाले मोदी जी एक ऐसे 'चाये वाले' थे जो कभी रेलवे की 'सामान्य टिकट खिड़की' से लेकर 'सरकारी राशन' की लंबी कतारों में नहीं लगे। अन्यथा आम आदमी के दर्द और ऐसे फैसलों से आम आदमी को होने वाली पीड़ा को जरूर समझते।