गुरुवार, 28 मार्च 2024
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पर्यावरण को लेकर क्या मिला सबक?

पर्यावरण को लेकर क्या मिला सबक? - bhopal gas tragedy
भोपाल गैस त्रासदी में मरने वाले लोगों की संख्या बढ़ती ही जा रही है। इसके बहुत सारे कारण हैं और इनके कारणों की तह में जाकर ही इन सवालों के जवाब खोजे जा सकते हैं कि इस घटना से इतनी ज्यादा मौतें क्यों हुईं और उसके प्रभाव अब तक क्यों इतने गंभीर बने हुए हैं। इसका कारण है कि यह इस फैक्टरी की स्थापना की गई थी तब उसके पर्यावरण संबंधी खतरों पर विचार नहीं किया गया था। इसे आप यूं भी कह सकते हैं कि एक बड़े शहर के बीचोबीच इस तरह की घातक फैक्टरी का चयन पूरी तरह से गलत था, लेकिन राजनीतिक कारणों से होने वाले फैसलों को पर्यावरण के नजरिए से तभी देखा जाता है जबकि कोई भीषण दुर्घटना हो जाए। इसलिए बहुत कम लोगों को ही इतनी बड़ी दुर्घटना की आशंका थी।   
 
इससे उपजा एक बड़ा कारण यह भी था कि इस फैक्टरी को लेकर किसी भी प्रकार के आपदा प्रबंधन को जरूरी नहीं समझा गया। इस कारण से आपदा प्रबंधन की किसी तैयारी की जरूरत ही नहीं महसूस की गई। लोगों को भी इस बात की जानकारी नहीं थी कि इस तरह की स्थिति में क्या-क्या सावधानियां बरती जाएं ताकि मौतों की संख्या को कम किया जाता और इतने बड़े पैमाने पर पर्यावरण का विनाश नहीं होता। 
 
विदित हो कि इतनी बड़ी आपदा के बाद तात्कालिक और दीर्घकालीन कार्रवाई का नितांत अभाव बना रहा और इस कारण से जिस क्षति को सीमित किया जा सकता था, उसे नहीं किया जा सका और पर्यावरण की दृष्टि से यह क्षति दशकों तक होती रही। आज भी इस मामले में कोई अधिक प्रगति नहीं हुई है।   
 
होता यह है कि ऐसे मामलों में जानकार लोगों की ओर से सरकार और सरकार द्वारा अधिकृत लोगों को सलाह दी जाती है, लेकिन किसी इतने बड़े प्रदूषण की निगरानी करने और इस पर नियंत्रण करने के काम में स्थानीय लोगों की कोई भूमिका नहीं होती है। ऐसे मामलों में पारदर्शिता का भी अभाव होता है। ऐसी दुर्घटनाओं से जुड़े कानूनों एवं विश्वसनीय तंत्र का अभाव बना होना हमारी वर्तमान स्थिति तक में शामिल है, जिससे कि दुर्घटना के लिए दोषी लोगों पर जवाबदेही सुनिश्चित भी नहीं हो पाती है। जैसी कि इस मामले में लोगों को पता था कि इतनी बड़ी दुर्घटना का शीर्ष आरोपी अमेरिका में रह रहा है, लेकिन उसका पता तक नहीं लगाया जा सका और ना ही उस पर किसी प्रकार की कोई कार्रवाई की जा सकी। 
 
आज भी हम कह सकते हैं कि ऐसे व्यापक मुद्दों पर हमने कोई सबक़ सीखा नहीं है। अगर हम मौजूदा नीतियों एवं व्यवहारों को देखते हैं, तो दुर्भाग्यवश तमाम पहलुओं पर हमें जवाब ना में ही मिलता है। सबसे दुखद बात यह है कि देश में शासन की लोकतंत्रात्मक प्रणाली कायम है, लेकिन केन्द्र और राज्य सरकारों ने इस दुर्घटना से कोई सबक सीखा हो, ऐसा नहीं लगता है। हमारे यहां उद्योगों को तलब करने की आज भी कोई बाध्यकारी नीति नहीं है। यहां तक कि बड़े बांधों, बड़ी पनबिजली परियोजनाओं और परमाणु बिजलीघरों जैसे बड़े मामलों में आपदा प्रबंधन योजनाएं अब भी नहीं बनाई जाती हैं। इतना ही नहीं, ऐसे मामलों में तो आप किसी को भी दोषी भी नहीं ठहरा सकते हैं क्योंकि ऊपर से लेकर नीचे तक जवाबदेही का पूरी तरह से अभाव है।
 
जन सामान्य की भागीदारी नहीं : सोचिए कि आपदा प्रबंधन योजनाओं में स्थानीय लोगों के शामिल होने की बात सोचना तो दूर उन्हें इस बारे में उनको बताया तक नहीं जाता है कि किन कारणों से उनकी जान माल को नुकसान होने की संभावना है? हमारे पास यह सुनिश्चित करने के लिए कोई तंत्र नहीं है कि फिर ऐसी दुर्भाग्यपूर्ण घटना होने की स्थिति में तत्काल कार्रवाई की जा सके। इसलिए जरूरी है कि स्थानीय नागरिकों को उनकी जिम्मेदारी को लेकर सजग बनाया जाए। जरूरी यह भी है कि प्रदूषण की निगरानी और नियंत्रण तंत्र में स्थानीय लोगों की कोई भूमिका हो, लेकिन राष्ट्रीय गंगा नदी प्राधिकरण के गठन से साबित होती है कि नदी तट के निवासियों की किसी भी स्तर पर कोई भूमिका नहीं है। ऐसे में जमीनी स्तर पर आकलन करने का काम कौन करेगा? हमारी लोकतंत्रात्मक व्यवस्था में भी कोई विश्वसनीय तंत्र नहीं है कि ऐसी त्रासदी मानव निर्मित दुर्घटनाओं के लिए जिम्मेदार लोगों को जवाबदेह बनाया जा सके। 
 
इस मामले में सरकार, न्यायपालिका दोनों ही यह सुनिश्चित करने में विफल रहे हैं कि दोषी लोगों को जवाबदेह बनाया जाए। साथ ही, उन्हें देश में ऐसा कोई भी व्यवसाय करने की अनुमति न दी जाए जोकि लाखों लोगों की जानमाल के लिए खतरा साबित हो। यूनियन कार्बाइड पर नियंत्रण कर लेने वाली डॉउ केमिकल्स भारत में आराम से व्यवसाय करती रही, लेकिन कंपनी ने भोपाल त्रासदी की जिम्मेदारी लेने और इससे प्रभावित लोगों को आवश्यक राहत और मुआवजा देने से इनकार कर दिया, जबकि यह सभी बातें इन कंपनियों की स्थापना से पहले ही तय हो जानी चाहिए।  
 
पर भोपाल त्रासदी के 30 साल को याद करने का शायद एक अच्छा तरीका यह होगा कि हम यह सबक ध्यान में रखें और जो लोग सत्ता में हैं, उनसे पूछें कि हमने आज तक ये सबक क्यों नहीं सीखे? और इन्हें सीखने में हमें कितना समय और लगेगा? क्या हम तब तक सबक नहीं सीखेंगे जब तक कि कहीं दूसरी भोपाल त्रासदी नहीं हो जाती?