गुरुवार, 18 अप्रैल 2024
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Written By रवींद्र व्यास

गंभीर मुद्दों पर बहस करता एक ब्लॉग

इस बार ब्लॉग चर्चा में समाजवादी जनपरिषद पर चर्चा

गंभीर मुद्दों पर बहस करता एक ब्लॉग -
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ब्लॉग दुनिया पर एक आरोप यह लगता रहा है कि यह दुनिया ज्यादातर भावुक और निजी किस्मों के अनुभवों की अभिव्यक्तियों का मामला बनकर रह गया है और यहाँ अब भी गंभीर विचार-विमर्श और देश की अधिकांश शोषित-वंचित जनता की आवाज को बुलंद करने की कोशिशों का अभाव है। इस परिप्रेक्ष्य में कुछ ब्लॉग गंभीर काम कर रहे हैं। इन ब्लॉगों में एक है समाजवादी जनपरिषद।

अफलातून के इस ब्लॉग को पढ़ें तो यह कहा जा सकता है कि यहाँ देश के वर्तमान हालातों के प्रति गहरी चिंता भी है। सुचिंतित विचार-विमर्श भी और व्यापक हितों के मद्देनजर राजनीतिक-आर्थिक-सामाजिक बदलावों की बेचैनी भी है।

इसकी कुछ ताजा पोस्टों पर नजर डाली जाए तो ये पोस्टें एक पार्टी विशेष के नजरिए से मप्र विधानसभा चुनाव के मद्देनजर अपना घोषणा पत्र बताती हैं, वहीं वर्तमान हालातों, सत्ताधारी पार्टी और दूसरी पार्टियों की नीतियों और अन्य महत्वपूर्ण मुद्दों पर अपना नजरिया स्पष्ट करती है। अब तक इस सीरिज की चार पोस्टें हैं। पहली पोस्ट है मध्यप्रदेश चुनाव : घोषणा पत्र क्यों? इसमें ब्लॉगर और पार्टी के फुलटाइम एक्टिविस्ट अफलातून प्रदेश के मौजूदा हालातों को बयाँ करते हुए यह कहने की कोशिश करते हैं कि देश की तरह ही इस प्रदेश के हालात पहले से बदतर हुए हैं।

  गरीबों-किसानों का हक मारा जा रहा है। वे इस बात पर जोर देते हैं कि प्रदेश का सही विकास करना है तो गरीबों और किसानों के हित में काम करते हुए ग्रामीण विकास पर ध्यान केंद्रित करना होगा।      
बिजली, पानी, सड़क की समस्या विकराल हुई है, तो दूसरी तरफ विपक्ष की पार्टियाँ भी एक राजनीतिक षड्यंत्र के तहत चुप रहकर जनता की समस्या को और विकराल करने में जुटी रहती हैं ताकि अगली बार वे सत्ता में आ सकें। इस पोस्ट में यह भी विवेचन है कि कैसे पार्टियाँ घोषणा पत्रों की अनदेखी करती हैं और अपने वादों को पूरा करने के लिए कभी राजनीतिक इच्छाशक्ति का परिचय नहीं देतीं। अफलातून इन विश्लेषणों के बीच समाजवादी जनपरिषद के घोषणा पत्र की खासियतों को रेखांकित करते हुए विभिन्न अहम मुद्दों पर पार्टी का नजरिया पेश करते हैं और कहते हैं कि पार्टी किस तरह से शोषितों-वंचितों और इस तरह आम जनता के हित में किन मुद्दों पर कैसे लड़ेगी।

इसी सीरिज की दूसरी किस्त मप्र की विकास और कृषि नीति में वे यह बताने की कोशिश करते जान पड़ते हैं कि कैसे निजीकरण के कारण प्रदेश के संसाधनों को निजी कंपनियों को सौंपा जा रहा है। गरीबों-किसानों का हक मारा जा रहा है। वे इस बात पर जोर देते हैं कि प्रदेश का सही विकास करना है तो गरीबों और किसानों के हित में काम करते हुए ग्रामीण विकास पर ध्यान केंद्रित करना होगा। किसानों के लिए विकास नीति बनाते हुए खाद-बीज-बिजली-पानी की माकूल व्यवस्था करना होगी।

अपनी तीसरी किस्त मप्र : आदिवासी और दलितों के सवाल में आदिवासी के शोषण और उनके जंगल-जमीन से बेदखली पर सवाल खड़े करते हैं और कहते हैं कि आदिवासी के हितों में कानूनी बदलाव की जरूरत है और प्रदेश को छुआछूत की समस्या से मुक्त करना भी जरूरी है। इसी तरह वे चौथी किस्त मप्र : विधानसभा चुनाव-2008 : अल्पसंख्यक व साम्प्रदायिकता में प्रदेश में सांप्रदायिक हालातों पर चिंता जताते हैं और समाजवादी जनपरिषद के नजरिए से कहते हैं कि प्रशासनिक और कानूनी सुधार करना होगा।

दंगे के समय तमाशबीन बनने वाले अधिकारियों पर कड़ी कार्रवाई हो। हमारा प्रशासन और पुलिस सांप्रदायिकता से मुक्त हो। सबसे बड़ी बात उनके राजनीतिक उपभोग पर रोकथाम लगे। हमारी शिक्षा व्यवस्था में बदलाव आए। हम शिक्षा के जरिए धर्म के उदार पक्ष और सूफी संतों की वाणियों को बढ़ावा दें।

इसके अलावा इस ब्लॉग पर स्त्री शिक्षा, हिंसा, राष्ट्रवाद, पर्यावरण, अंतरराष्ट्रीय मुद्दों आदि पर बातचीत के साथ ही उदयप्रकाश और राजेंद्र रंजन की कविताएँ दी गई हैं। इन कविताओं को देने का मकसद भी साफ है क्योंकि ये कविताएँ देश के हालातों के मद्देनजर सवाल पैदा करती हैं और विमर्श के लिए नई खिड़कियाँ खोलती हैं। पर्यावरण के मामले में यहाँ एक महत्वपूर्ण पोस्ट देखी जा सकती है। निश्चित ही एक ऐसे समय में जब किसी देश में विदेशी तेल और खनन कंपनियाँ अंधाधुंध दोहन और खतरनाक प्रदूषण से बर्बादी की राह पर हों तब वहाँ की प्रकृति को कोई हक देना कितना महत्वपूर्ण हो जाता है।

अफलातून अपनी एक पोस्ट प्रकृति को हक देने वाला पहला देश- इक्वाडोर में लिखते हुए यह महत्वपूर्ण जानकारी देते हैं कि- प्रकृति और पर्यावरण को हक़ देने वाला इक्वाडोर पहला देश बन गया है। 28 सितंबर 2008 को देश की 68 फीसदी जनता ने मतदान द्वारा इस देश के लिए एक नया संविधान मंजूर किया है। कॉलेज अथवा विश्वविद्यालय के तीसरे साल तक की मुफ़्त शिक्षा, सबके लिए मुफ़्त चिकित्सा के अलावा नदियों, जंगल, पौधों और जानवरों को भी अधिकार मिले हैं।

नए संविधान की निसर्ग सम्बन्धी एक धारा कहती है - ‘इन कुदरती संसाधनों को बने रहने, फलने - फूलने और विकसित होने का अधिकार होगा।’ इक्वाडोर की समस्त सरकारों, समुदायों और व्यक्तियों का यह दायित्व और अधिकार होगा कि वे प्रकृति के इन अधिकारों को लागू करें। हर व्यक्ति , समुदाय और राष्ट्रीयता के लोगों को प्रकृति के इन अधिकारों को मान्यता दिलाने की माँग करने का अधिकार होगा।

कहने की जरूरत नहीं कि वैश्वीकरण के इस दौर में यह बात भारत के लिए भी कितनी महत्वपूर्ण हो जाती है जहाँ अनियंत्रित, अनियोजित और विवेकहीन विकास ने न केवल संसाधनों का एक हवस में दोहन किया है बल्कि इस विकास का शोषितों-वंचितों को कोई लाभ नहीं मिल पाया है। जाहिर है इक्वाडोर के इस घटनाक्रम से हमारे देश को प्रेरणा भी लेना चाहिए और हिम्मत भी कि कैसे हम अपने संसाधनों की रक्षा करते हुए उसका बेहतर संरक्षण कर सकें।

यही नहीं, अफलातून इस ब्लॉग पर महात्मा गाँधी के विचारों को स्थान देकर बहस के मौके मुहैया कराते हैं। एक ऐसी ही पोस्ट है -अबला कहना अपराध है-महात्मा गाँधी। इस पोस्ट में वे गाँधीजी के उन विचारों को रखते हैं जो उन्होंने समय-समय पर यंग इंडिया में प्रकाशित किए थे। कहने की जरूरत नहीं कि उनके ये विचार देश के वर्तमान हालातों के मद्देनजर कितने प्रासंगिक हैं। इनसे निकलती रोशनी में हम हमारे समकालीन अँधेरों से लड़ने की ताकत हासिल कर सकते हैं।

इसी तरह वे एक हिटलरी प्रेमी गुरुजी पोस्ट में इस बात को रेखांकित करते हैं जो निर्विवाद इस लोकतंत्र के लिए बहुत ही मानीखेज है कि दुनिया के कई धर्म आधारित राष्ट्रों में जनता का उत्पीड़न और रुदन हमसे छिपा नहीं है। धर्म आधारित राष्ट्र के रूप में हमारे पड़ोसी देश पाकिस्तान के बारे में हम जानते हैं कि इस्लामियत के नाम पर कैसे कठमुल्लों, सामन्तों, फौजी अफसरों , भ्रष्ट नेताओं और असामाजिक तत्वों का वह चरागाह बन गया है।

क्या हम भारत में भी उसी दुष्चक्र को स्थापित करना चाहते हैं ? धर्म आधारित राष्ट्र लोकतंत्र विरोधी अवधारणा है। किसी धर्म आधारित राष्ट्र में लोकतंत्र कभी पनप नहीं सकता।
इसके अलावा वे बराक ओबामा के सामने चुनौतियाँ जैसे खास लेख का अनुवाद भी देते हैं और सूर्य को लेकर अच्छा निबंध भी। वे चरखे को लेकर मायावती की राजनीति का नोटिस भी लेते हैं तो किशन पटनायक जैसे समाजवादी नेता के विचारों को देश के वर्तमान हालातों के संदर्भों में देखने-समझने का आग्रह करते हैं। कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि यह ब्लॉग हमारे देश के हाहाकारी समय में महत्वपूर्ण मुद्दों पर बहस करता-कराता है। इसे पढ़ा जाना चाहिए।
इसका पता है -
http://samatavadi.wordpress.com