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Last Updated : सोमवार, 21 नवंबर 2016 (14:54 IST)

क्यों आरबीआई गवर्नर उर्जित पटेल को नोटबंदी के लिए होना है तैयार?

क्यों आरबीआई गवर्नर उर्जित पटेल को नोटबंदी के लिए होना है तैयार? - Currency demonetisation: RBI got 6 months to prepare for this
नोटबंदी की परेशानियां चौतरफा बिखरी हैं। लोग ब्लैकमनी की सफाई के विचार से इन परेशानियों को शांति के साथ झेल रहे हैं। अगर बहुत से लोग इन तकलीफों को लंबे समय तक झेलेंगे तो क्या आपको नहीं लगता कि लोगों के विचार सिस्टम की तरफ बदल जाएंगे? खासतौर से बैंकिंग सिस्टम की तरफ, जो नोटबंदी में आ रहीं तकलीफों के लिए पूरी तरह से जिम्मेदार है। 
बैंकों का ब्रांच (शाखा) बैंकिंग से नाता टूट चुका है। प्राइवेट और पब्लिक सेक्टर के बैंक एटीएम बढ़ाने में आतुर नजर आते हैं। इसके अलावा उन्हें डिजीटल तरीके से बैंक के कामकाज होना भी अधिक पसंद आ रहा है। यह एक दुखद हकीकत है और इसे बैंक के सभी शेयरहोल्डरों, डायरेक्टर्स और रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया के द्वारा समझा जाना चाहिए, परंतु क्या आरबीआई के नए गर्वनर नोटबंदी के लिए तैयार हैं। 
 
पिछले दो हफ्ते साबित करते हैं कि उनकी तैयारियां अधूरी हैं और वे किसी नई परिस्थिति के लिए किसी भी तरह तैयार नहीं हैं। जिन कम तैयारियों के साथ नोटबंदी लागू की गई है, वे आरबीआई गवर्नर की जिम्मेदारी होनी चाहिए थीं। इसके बदले अतिउत्साह से भरे अफसर इसका आरोप झेल रहे हैं। उनका इस समय बिना काम का उत्साह किसी की भी मदद नहीं कर पा रहा है। आखिर क्यों इसे लागू करने निर्णय ऑफिसर ले रहे हैं जबकि यह आरबीआई और बैंकों का काम था? 
 
नोटबंदी एक लंबी कठिन प्रक्रिया है जिसमें उपभोक्ता का व्यवहार, भीड़ का व्यवहार, ट्रांजेक्शन का आकार, खेती, कॉमर्स, बचत और संपत्ति का निर्धारण जैसे पहलू शामिल हैं। इनमें भी जगह और आर्थिक हालातों के आधार पर विभिन्न जगहों पर बदलाव होते हैं। इन बदलावों को ध्यान में रखते हुए भारत जैसे विविधता के देश में क्या सिर्फ केंद्र नोटबंदी को कंट्रोल और प्लान कर सकता है? भारत की नौकरशाही एक लंबी असफलताओं की फेहरिस्त के बावजूद ऐसा ही सोचती है। उनके मुताबिक नोटिफिकेशन और आदेश देने से चीजें हो जाती हैं। 
 
नोटबंदी का फैसला अचानक सामने आया क्योंकि रहस्य बरकरार रखना जरूरी था, परंतु अब दो हफ्ते हो गए हैं। सिस्टम सही तरह से काम करता नहीं लग रहा है और जिम्मेदारी सही से बांटी जानी चाहिए। यह जरूरी है कि इसका आर्थिक पहलू बैंकिंग सिस्टम को समझ में आए। 
 
बैंकर्स (प्राइवेट और पब्लिक) छोटे लोन धारकों के मामले में आसान रास्ता अपनाते नजर आते हैं। छोटे लोन धारकों को हमेशा ठगने वाले ऑफर दिए जाते हैं। उदाहरण के लिए गाडियों के लिए बैंकों द्वारा दिए जाने वाले लोन में प्रीमियम भरने की जरूरत होती है जबकि अधिकतर ऑटोमेकर्स बिना ब्याज के लोन देते हैं। किसी भी बैंक के लिए कॉर्पोरेट लोन प्राथमिकता हैं क्योंकि इसके द्वारा अपने कुल धन का एक बड़ा हिस्सा वे दे देते हैं। एटीएम और डिजीटल बैंकिंग पर अधिक ध्यान दे रहे बैंक छोटे लोन धारकों के बारे में कुछ सोचते नजर नहीं आते। 
 
एक एटीएम एक ब्रांच में लगने वाला धन बचाता है। उपभोक्ताओं को इंटरनेट बैंकिंग के लिए प्रेरित करने से भी धन की बचत होती है। डिजीटल वॉलेट कंपनियों का नोटबंदी की तरफ रूख देखकर लगता कि बैंकर्स ने छोटे फायदे के लिए बड़ा नुकसान उठाने की ठान रखी है। तूफान आने को है। ट्रांजेक्शन में कमी आएगी क्योंकि सरकार कई सेक्टर में कम पैसा लगाएगी और बैंकों को यहां पैसा देना होगा। यह बड़ा फैसला है जिसे सरकार जितनी जल्दी ले उतना बेहतर है। सवाल यह है कि क्या आरबीआई गवर्नर इस फैसले को बैंकों द्वारा लागू करवाने में समक्ष होंगे? अगर वह तैयार नहीं या सिस्टम नाकाफी है, विकास में जमकर कमी आ जाएगी। यह दौर है चायना में मंदी का, यूएस में आर्थिक बदलाव का और भारतीय स्टॉक मार्केट में गिरावट का। लंबे समय में नोटबंदी अच्छी साबित हो सकती है परंतु विकासदर में हानि होना भयानक होगा। 
 
 
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