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Written By WD

ईसा ने ली थी यूहन्ना से दीक्षा

ईसा मसीह और यहून्ना

Jesus Christ | ईसा ने ली थी यूहन्ना से दीक्षा
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ईसा मसीह ईसाई धर्म के प्रवर्तक हैं। ईसाई लोग उन्हें परमपिता परमेश्वर का पुत्र और ईसाई त्रिमूर्ति का तृतीय सदस्य मानते हैं। ईसा की जीवनी और उपदेश बाइबिल में मौजूद है। ईसा मसीह ने यहून्ना से दीक्षा ग्रहण की थी।

ईसा जब 30 साल के हुए, तो एक दिन किसी से उन्होंने सुना कि पास के जंगल में जॉर्डन नदी के किनारे एक महात्मा रहते हैं। उनका नाम है, यूहन्ना (जॉन)। बहुत से लोग उनका उपदेश सुनने जाते थे। ईसा को भी उत्सुकता हुई। वे भी यूहन्ना का उपदेश सुनने के लिए निकल पड़े।

यूहन्ना कहते थे- अब धरती पर प्रभु के राज्य का समय आ गया है। प्रभु के राज्य में हर आदमी यह जान लेगा कि सब आदमी बराबर हैं न कोई किसी से ऊंचा है, न कोई किसी से नीचा।

सब लोगों को आपस में मिल-जुलकर प्रेम से रहना चाहिए और सबके साथ अच्छा व्यवहार करना चाहिए। इस तरह रहने और बुरे काम छोड़ देने से ही धरती पर प्रभु का राज्य आ सकेगा।

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सैनिक उनके पास जाते, तो वे उनसे कहते, दूसरों का माल मत छीनो। जो कुछ तुम्हें मिला है, उसी में खुश रहो। किसी से गाली-गलौज मत करो।

लोग पूछते, तब हम करें क्या? यूहन्ना कहते, जिसके पास दो कोट हैं, वह एक कोट उसे दे दे, जिसके पास एक भी नहीं है। जिसके पास भोजन है, वह उसे खिला दे, जिसके पास खाने के लिए कुछ नहीं है।

अमीर लोग यूहन्ना के पास जाते, तो वे उसे कहते, तुम गरीबों को सताओ मत। उन्हें लूटो मत।

यूहन्ना लोगों से कहते, अच्छी करनी करो। अपना जीवन बदल डालो, नहीं तो तुम्हारी भी गति उस बिना फल वाले पेड़ की तरह होगी, जो ईंधन के लिए काट दिया जाता है।

जो लोग उनसे कहते कि हम अपना जीवन बदलेंगे, बदी छोड़कर नेकी करेंगे, उन्हें वे जॉर्डन नदी में नहलाते और कहते, मैंने तुम्हें जल से पवित्र किया है। तुम्हारी अंतरात्मा में प्रभु की जो शक्ति भरी है, वह तुम्हें पूरे तौर से पवित्र करेगी।

ईसा को यूहन्ना की बातें बहुत जंचीं। उन्होंने यूहन्ना से दीक्षा ले ली। उनकी बातों पर गहरा विचार करने के लिए वे घर लौटने के बजाय जंगल में ही रह गए।

यूहन्ना की बातों पर ईसा ने गहराई से चिंतन और मनन किया और अंत में निश्चय किया कि हमें प्रभु की इच्छा के अनुसार प्रभु की सेवा करनी चाहिए।