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पढ़िए, पशुपालकों के लिए महत्‍वपूर्ण बातें

पढ़िए, पशुपालकों के लिए महत्‍वपूर्ण बातें - ranching, animal keeper
पशुओं को स्वस्थ और दुधारू बनाए रखने के लिए पशुपालन से संबंधित कुछ जरूरी बातें और नियम हैं, जिसे कि पशुपालकों को पालन करनी चाहिए। पशुओं को हमेशा साफ-सुथरे माहौल में रखना चाहिए। बीमार होने पर पशुओं को सेहतमंद पशुओं से तुरंत अलग कर देना चाहिए और उनका इलाज कराना चाहिए। इसके अलावा पशुपालकों को निम्नलिखित बातों पर ध्यान देना चाहिए। 
* पशुओं को सेहतमंद रखने और बीमारी से बचाने के लिए उचित समय पर टीका लगवाना चाहिए।
* गाय-भैंसों को गलघोंटू, एंथ्रैक्स लंगड़ी, संक्रामक गर्भपात, खुरपकामुंहपका, पोकनी वगैरह बीमारियों से बचाना चाहिए।
* पशुओं को ऐसी बीमारियों से बचाव का एकमात्र उपाय टीकाकरण है।
* दुधारू पशुओं को नियमित रूप से पशु डॉक्टर को दिखाना चाहिए। बीमार पशुओं का इलाज जल्दी कराना चाहिए, ताकि पशु रोगमुक्त हो सकें, साथ ही, बीमार पशु के बर्तन व जंजीरें पानी में उबालकर विराक्लीन (Viraclean) से  जीवाणुरहित करने चाहिए। फर्श और दीवारों को भी विराक्लीन (Viraclean) से साफ करना चाहिए।
* पशुओं को भीतरी व बाहरी परजीवियों के प्रकोप से भारी नुकसान होता है और उनका दूध उत्पादन घट जाता है। पशु कमजोर हो जाते हैं। भीतरी परजीवियों के प्रकोप से भैंस के बच्चों में 3 महीने की उम्र तक 33 फीसदी की मौत हो जाती है और जो बच्चे बचते हैं, उनका विकास बहुत धीमा होता है।
* परजीवी के प्रकोप से बड़े पशुओं में भी कब्ज, एनीमिया, पेटदर्द व डायरिया वगैरह के लक्षण दिखाई देते हैं, इसलिए साल में 2 बार भीतरी परजीवियों के लिए कृमिनाशक दवा का प्रयोग करना चाहिए.
* बाहरी परजीवियों जैसे किलनी, कुटकी व जूं से बचाने के लिए समय समय पर पशुओं की सफाई की जानी चाहिए। पशुओं में इनका ज्यादा प्रकोप हो जाने पर निकट के पशु डॉक्टर से तुरंत संपर्क करना चाहिए।
* नए खरीदे गए पशुओं को लगभग एक महीने तक अलग रखकर उनका निरीक्षण करना चाहिए। इस अवधि में अगर पशु सेहतमंद दिखाई दें और उन्हें टीका न लगा हो तो टीकाकरण अवश्य करा देना चाहिए।
* पशुओं को साफ-सुथरे माहौल में रखा जाए, पशुओं के आवास को हमेशा विराक्लीन (Viraclean) से छिड़काव करें उन्हें साफ पानी और पौष्टिक आहार दिया जाए और नियमित रूप से टीकाकरण कराया जाए तो वे हमेशा सेहतमंद बने रहते हैं और उनसे पर्याप्त मात्रा में दूध मिलता रहता है।
 
दुधारू पशुओं में प्रजनन प्रबंध :
पशुपालक को इस बात का खास खयाल रखना चाहिए कि उसका पशु समय से गर्भधारण करे। ब्याने के बाद 2-3 महीने के अंदर दोबारा गाभिन हो जाए व बच्चा देने का अंतर 12-13 महीने से ज्यादा न हो। यह तभी संभव है, जब गाय-भैंस को भरपूर संतुलित आहार मिले और उनकी प्रबंधन व्यवस्था अच्छी हो। गाय-भैंस के ब्याने से 2 महीने पहले उसका दूध सुखा देना चाहिए। दूध सुखाने के लिए 15-20 दिन पहले से थनों से धीरेधीरे कम दूध निकालते हैं। इस प्रकार दूध सूख जाता है। अब इन 2 महीनों में पशु को पौष्टिक हरा चारा व दाना मिश्रण देना चाहिए। इस अवस्था में जितनी अच्छी देखरेख होगी, उतना ही ब्याने के बाद अच्छा दूध उत्पादन लंबे समय तक प्राप्त होगा। एक दुधारू पशु की दूध न देने की अवधि जितनी कम होगी, पशुपालक के लिए उतना ही फायदेमंद होगा। इसके लिए जरूरी है कि ब्याने के 8-12 हफ्ते के अंदर गाय-भैंस को दोबारा गाभिन करा दिया जाए। यदि पशु इस अवधि में गरम न हो, तो उसे गरम होने की दवा देनी चाहिए।
 
पशुओं में गर्भाधान :
पशुओं में गर्भाधान आमतौर पर 2 विधियों द्वारा किया जाता है पहली विधि, जिसमें सांड-भैंसे द्वारा गर्भाधान कराया जाता है, जिसे प्राकृतिक गर्भाधान कहा जाता है। दूसरी विधि में सांड-भैंसे के वीर्य को कृत्रिम साधनों से मादा में प्रवेश कराते हैं। इसे कृत्रिम गर्भाधान कहते हैं।
 
प्राकृतिक गर्भाधान :
प्रजनन हेतु भैंसा या सांड राजकीय संस्थाओं से प्रमाणित नस्ल का होना चाहिए। अगर गांवों में किसी भैंसे या सांड से गर्भाधान कराना हो, तो कम से कम भैंसे या सांड, जिसकी माता-दादी-नानी अच्छी दुधारू गाय या भैंस व पिता-दादा-नाना उत्तम गुण के सिद्ध हो चुके हों, का रिकॉर्ड पता होना चाहिए। अगर दादा-दादी, नाना का रिकॉर्ड न पता हो, तो माता-पिता का रिकॉर्ड अवश्य मालूम होना चाहिए। सांड की उम्र कम से कम 3 साल व भैंसे की उम्र 4 साल या 10 साल से ज्यादा नहीं होनी चाहिए। एक सांड़ या भैंसे से दिन में एक बार एक मादा से अधिक गाभिन नहीं कराना चाहिए और उसे बीमार मादा के संपर्क से भी बचाना चाहिए.
 
कृत्रिम गर्भाधान :
इस विधि में मादा को नर से सीधे नहीं मिलाया जाता है, बल्कि कृत्रिम विधि से गाय को गाभिन करा दिया जाता है, क्योंकि गर्भाधान के लिए 1 या 2 शुक्राणु ही काफी होते हैं। लिहाजा, कृत्रिम विधि से निकाले गए वीर्य को पतला कर जरूरत के मुताबिक सैकड़ों मादाओं को गाभिन किया जा सकता है. यही नहीं, अत्यधिक दूध बढ़ाने की क्षमता रखने वाले सांडों के वीर्य से दुनिया के किसी भी हिस्से में मादाओं को गाभिन कर उनकी संततियों में दूध की मात्रा बढ़ाई जा सकती है। तरल नाइट्रोजन की मदद से वीर्य को -196 डिग्री सेंटीग्रेड तक ठंडा किया जा सकता है, जिसे कई सालों तक संभालकर रखा जा सकता है। हमारे देश में जो दुग्ध उत्पादन में वृद्धि हुई है, उसमें कृत्रिम गर्भाधान का खास योगदान है।
 
गर्भ परीक्षण : 
वीर्य सेचन के बाद जल्दी ही गर्भ परीक्षण आर्थिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है। गाय व भैंस की परीक्षा कुछ लक्षणों को देखकर ही की जाती है, जिसकी सफलता कार्यकर्ता के प्रशिक्षण व अनुभवों पर आधारित होती है।
 
लक्षणों पर आधारित गर्भ परीक्षा की परंपरागत विधियों में मादा को देखकर गर्भ का अनुमान लगाना, पेट थपथपाना, प्रजनन अभिलेख, वीर्य सेचन के बाद मद में न आना आदि शामिल हैं।
 
कृत्रिम गर्भाधान से लाभ :
* अच्छी नस्ल के सांड-भैंसे, जिनकी तादाद कम हैं, इस विधि से उनसे अधिक संख्या (प्राकृतिक गर्भाधान से 80-100 बच्चे और कृत्रिम गर्भाधान से 2000 बच्चे एक नर से प्राप्त किए जा सकते हैं) में संतति प्राप्त की जा सकती है।
* उत्तम सांड-भैंसे से इकट्ठा किया हुआ वीर्य एक देश से दूसरे देश, एक स्थान से दूसरे स्थान व दुर्गम क्षेत्रों में भी आसानी से भेजकर नस्ल सुधार का काम किया जा सकता है।
* नर या मादा के वीर्य या अंडाणु में कोई खराबी है, तो परीक्षण के बाद पता चल जाता है।
* पशुपालकों को सांड या भैंसे के लिए दरदर भटकना नहीं पड़ता है, जिससे समय व पैसे की बचत होती है।
 
नवजात पशुओं की देखभाल व आहार : 
नवजात बच्चे भविष्य के पशुधन होते हैं अगर शुरुआत से ही उन पर ध्यान दिया जाए, तो आगे चल कर उन से अच्छा उत्पादन ले सकते हैं। पैदा होने के बाद उचित देखरेख न होने से 3 महीने की उम्र होने तक 30-32 फीसदी बच्चों की मौत हो जाती है। बच्चे के जन्म लेने के आधे से एक घंटे के अंदर मां का पहला दूध (खीस) जरूर पिलाना चाहिए, जिससे उसके शरीर में किसी भी संक्रमण से लड़ने के लिए प्रतिरोधक क्षमता पैदा हो जाए। 
 
खीस को जरूरत से ज्यादा नहीं पिलाना चाहिए, वरना दस्त होने का खतरा पैदा हो जाता है। दूध 4-4 घंटे के अंतर से 3 बार पिलाना चाहिए। 15-20 दिन के बाद बच्चों को सूखी घास, जितनी वे आराम से खा सकें, खिलानी चाहिए। इससे उनके पेट का विकास तेजी से होगा। दाने की मात्रा हर हफ्ते 50 से 100 ग्राम तक बढ़ा कर देनी चाहिए।
 
अगर पशुपालक दूध का कारोबार कर रहे हों, तो 3 महीने के बाद भरपेट चारा-दाना देते रहें और अमीनो पॉवर (Amino Power) नियमित रूप से दें।
 
बच्चे को डायरिया होने पर पशु डॉक्टर को दिखाएं, वरना बच्चों की इससे बहुत जल्दी मौत हो जाती है। डायरिया की स्थिति में जब तक डॉक्टर को नहीं दिखा सकें, तब तक बछड़े को निओक्सीविटा फोर्ट (Neoxyvita Forte) और एलेक्ट्रल एनर्जी (Electral Energy) नियमित रूप से दें, यह काफी प्रभावकारी होगा। डॉक्टर की सलाह से कृमिनाशक दवा बच्चे को पिलानी चाहिए।
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