मंगलवार, 16 अप्रैल 2024
  • Webdunia Deals
  1. खबर-संसार
  2. करियर
  3. करियर स्पेशल
  4. interview of anand kumar super 30
Written By Author शराफत खान

पढ़ाई का माध्यम नहीं, इच्छाशक्ति महत्वपूर्ण है : आनंद कुमार

पढ़ाई का माध्यम नहीं, इच्छाशक्ति महत्वपूर्ण है : आनंद कुमार - interview of anand kumar super 30
सुपर 30 के संस्थापक और हजारों-लाखों स्टूडेंट की प्रेरणा आनंद कुमार को जब 1994 में कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी में एडमिशन मिला तो मानो सपना सच हो गया, लेकिन जब हकीकत से रूबरू हुए तो पता चला कि सिर्फ एडमिशन मिलना ही काफी नहीं है, बल्कि पैसा भी बहुत महत्वपूर्ण है। 
आनंद कुमार के परिवार के पास फीस तो दूर, कैम्ब्रिज जाने के टिकट के भी पैसे नहीं थे, आखिरकार उन्हें सीट छोड़नी पड़ी। उस समय भले ही आनंद कैम्ब्रिज नहीं जा पाए, लेकिन आज आनंद कुमार की कोचिंग ‘सुपर 30’ से 100 प्रतिशत स्टूडेंट इंजीनियरिंग एंट्रेंस में सफल होकर बड़े कॉलेजों में न केवल दाखिला ले रहे हैं बल्कि आज उनके कई स्टूडेंट विदेशों में उच्च पदों पर हैं। 
 
आखिर क्या रही है आनंद कुमार की प्रेरणा : छोटे शहर, कस्बों, गांव के स्टूडेंट को इतनी ऊंचाइयों पर पहुंचाने वाले आनंद कुमार की कैम्ब्रिज न जाने पाने की टीस ही उनकी प्रेरणा बनी और आज वे ‘प्रतिभाशाली’ गरीब बच्चों को अपनी ‘जादुई’ कोचिंग में प्रतिष्ठित और अत्यंत मुश्किल इंजीनियरिंग एंट्रेंस एक्जाम की सफल तैयारी करवाते हैं।
 
सुपर 30 की सफलता की कहानी तो सभी को पता है लेकिन हर सफलता के पीछे कई मुश्किलें भी होती हैं। आइए जानते हैं आनंद कुमार के जीवट व्यक्तित्व के बारे में, जिन्होंने दूसरों के सपनों को अपना सपना बना लिया। 
अगले अगले पन्ने पर, मजबूरी बनी मजबूती... 
 
 

मजबूरी को बनाया ताकत : दरअसल आनंद कुमार को कैम्ब्रिज न जा पाने की टीस थी और इसी दौरान उनके पिता का देहांत हो गया। उन्हें सरकार की ओर से क्लर्क के पद पर अनुकंपा नियुक्ति का प्रस्ताव मिला, लेकिन वे कुछ अलग करने की ठान चुके थे। मां ने भी मनोबल बढ़ाया। मां घर पर पापड़ बनाती थीं जिससे घर का खर्च चलता। 
 
कैसे हुई सुपर 30 की स्थापना : 1992 में आनंद कुमार ने 500 रुपए प्रतिमाह किराए से एक कमरा लेकर अपनी कोचिंग शुरू की। यहां लगातार छात्रों की संख्या बढ़ती गई। 3 साल में लगभग 500 छात्र-छात्राओं ने आनंद कुमार के इंस्टीट्यूशन में दाखिला लिया। 
 
याद आया अपना सपना : सन् 2000 की शुरुआत में एक गरीब छात्र आनंद कुमार के पास आया, जो IIT-JEE करना चाहता था, लेकिन फीस और अन्य खर्च के लिए उसके पास पैसे नहीं थे। इसके बाद 2002 में आनंद कुमार ने सुपर 30 प्रोग्राम की शुरुआत की,  जहां गरीब बच्चों को IIT-JEE  की मुफ्त कोचिंग दी जाने लगी।  
अगले पन्ने पर, अंग्रेजी नहीं, इच्छाशक्ति की जरूरत...
 

हिन्दी माध्यम के सफल स्टूडेंट : आनंद कुमार बताते हैं कि पिछले 3 साल से उनके 30 में से 30 ही स्टूडेंट सफल हो रहे हैं, जिनमें से 27 बच्चे हिन्दी माध्यम से पढ़े हैं। आनंद कहते हैं कि जो फिजिक्स, मैथ्स, कैमिस्ट्री समझ सकता है वह अंग्रेजी भाषा तो आसानी से समझ सकता है। असली चीज इच्छाशक्ति है, उससे ही सफलता मिलती है।

सफलता का गूढ़ मंत्र : आनंद कहते हैं, ‘भाषा ज्ञान से अधिक महत्वपूर्ण है विषय का ज्ञान और उस ज्ञान को प्राप्त करने की योग्यता। लीड लेने के लिए स्टूडेंट, खासतौर पर छोटे शहरों से आने वालों के लिए यह आवश्यक है कि वे टेक्स्ट बुक लगातार पढ़ते रहें, रटने के बजाय विषय को गहराई से समझें। 
 
अंग्रेजी की बाध्यता को लेकर वे कहते हैं, सरकार को भी पिछड़े इलाकों में जिला स्तर पर अंग्रेजी सिखाने की संस्थाएं खोलनी चाहिए, जिससे कि अंग्रेजी के प्रति यहां के बच्चों की झिझक मिट सके।  उन्होंने अंग्रेजी सीखने की महत्ता बताते हुए कहा कि हालांकि हमारे जीवन में अंग्रेजीयत नहीं आनी चाहिए लेकिन हमें संवाद के स्तर पर इस भाषा का ज्ञान होना आवश्यक है।
 
छोटे शहरों का बड़ा फायदा : आनंद कुमार कहते हैं कि अगर छोटे शहरों में सुविधाएं अपेक्षाकृत कम हैं तो यहां भटकाव भी कम है। वे कहते हैं कि छोटे शहरों में बहुत संभावनाएं हैं, आवश्यकता है तो सिर्फ इनकी प्रतिभा को निखारने की। 
अगले पन्ने पर, इंजीनियरिंग के बाद भी क्यों नहीं मिलती है नौकरी...

बड़ा सवाल - इंजीनियरिंग के बाद भी बेरोजगार क्यों : देशभर में बेतहाशा इंजीनियरिंग कॉलेज खुल गए हैं, यहां स्टूडेंट डिग्री तो ले लेते हैं, लेकिन उनके लिए रोजगार नहीं है। इस विषय में आनंद कुमार कहते हैं, ‘गुमनाम कॉलेजों से इंजीनियरिंग करने वाले 80 प्रतिशत स्टूडेंट में वह काबिलियत नहीं है कि वे सिर्फ अपनी डिग्री के दम पर नौकरी पा सकें।
कुछ साल पहले भारत में सॉफ्टवेयर क्रांति आई और सॉफ्टवेयर इंजीनियरों की बड़ी संख्या में मांग बढ़ी, लेकिन अब यह मांग पूरी हो चुकी है, इसलिए बड़ी संख्या में इंजीनियरिंग करने वाले नौकरी नहीं हासिल कर पा रहे। इसके अलावा अब बैंकिंग, फायनेंस, लॉ जैसे क्षेत्रों में भी संभावनाएं बढ़ी हैं, जिससे इंजीनियरिंग के प्रति स्टूडेंट का क्रेज उतना नहीं रह गया है।
 
वर्तमान में भारत में जहां एक ओर आईआईटी और अन्य उच्च शिक्षण संस्थानों में दाखिला दिलाने के नाम पर कई कोचिंग संस्थाएं लाखों रुपए फीस के तौर पर ले रही हैं, वहीं ‘सुपर 30’ के शानदार सिलेक्शन रिकॉर्ड के जरिए आनंद कुमार जैसे कुछ लोग साबित करने में लगे हैं कि... 
‘ऐसा नहीं कि खुश्क है चारों तरफ ज़मीन
प्यासे जो चल पड़े हैं तो दरिया भी आएगा’