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ऐसे बनाएं पशु का आदर्श आवास?

ऐसे बनाएं पशु का आदर्श आवास? - Animal House, Animal model House
पशु का आवास जितना अधिक स्वच्छ तथा आरामदायक होता है, पशु का स्‍वास्‍थ्‍य उतना ही अधिक ठीक रहता है,  जिससे वह अपनी क्षमता के अनुसार उतना ही अधिक दुग्ध उत्पादन करने में सक्षम हो सकता है। अत: दुधारू पशु के लिए साफ-सुथरी तथा हवादार पशुशाला का निर्माण आवश्यक है, क्योंकि इसके अभाव से पशु दुर्बल हो जाता है और उसे अनेक प्रकार के रोग लग जाते हैं। एक आदर्श गौशाला बनाने के लिए निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए।
पशु के आवास के स्थान का चयन :
गौशाला का स्थान समतल तथा बाकी जगह से कुछ ऊंचा होना आवश्यक है ताकि वर्ष का पानी, मल-मूत्र तथा नालियों का पानी आदि आसानी से बाहर निकल सके। यदि गहरे स्थान पर गौशाला बनाई जाती है तो इसके चारों ओर पानी तथा गंदगी एकत्रित होती रहती है जिससे गौशाला में बदबू रहती है। गौशाला के स्थान पर सूर्य के प्रकाश का होना भी आवश्यक है। धूप कम से कम तीन तरफ से लगनी चाहिए। गौशाला की लम्बाई उत्तर-दक्षिण दिशा में होने से पूर्व व पश्चिम से सूर्य की रोशनी खिड़कियों व दरवाजों के द्वारा गौशाला में प्रवेश करेगी। सर्दियों में ठंडी व बर्फीली हवाओं से बचाव का ध्यान रखना भी जरूरी है। 
 
स्थान की पहुंच :
गौशाला का स्थान पशुपालक के घर के नज़दीक होना चाहिए, ताकि वह किसी भी समय आवश्यकता पड़ने पर शीघ्र गौशाला पहुंच सके। व्यापारिक माप पर कार्य करने के लिए गौशाला का सड़क के नज़दीक होना आवश्यक है ताकि दूध ले जाने, दाना, चारा व अन्य सामान लेन-ले-जाने में आसानी हो तथा खर्च भी कम हो। 
 
पशु के आवास में बिजली, पानी की सुविधा :
गौशाला के स्थान पर बिजली व पानी की उपलब्धता का भी ध्यान रखना आवश्यक है क्योंकि डेयरी के कार्य के लिए पानी की पर्याप्त मात्रा में जरूरत होती है। इसी प्रकार वर्तमान समय में गौशाला के लिए बिजली का होना भी आवश्यक है क्योंकि रात को रोशनी के लिए तथा गर्मियों में पंखों के लिए इसकी जरूरत होती है। 
 
चारे, श्रम तथा विपणन की सुविधा :
गौशाला के स्थान का चयन करते समय चारे की उपलब्धता का ध्यान रखना बहुत आवश्यक है क्योंकि चारे के बिना दुधारू पशुओं का पालना एक असंभव कार्य है। हरे चारे के उत्पादन के लिए पर्याप्त मात्रा में सिंचित कृषि योग्य भूमि का होना भी आवश्यक है। चारे की उपलब्धता के अनुरूप ही दुधारू पशुओं की संख्या रखी जानी चाहिए। पशुओं के कार्य के लिए श्रमिक की उपलब्धता भी उस स्थान पर होनी चाहिए क्योंकि बिना श्रमिक के बड़े पैमाने पर डेयरी का कार्य अत्यन्त कठिन होता है। डेयरी उत्पादन जैसे दूध, पनीर, खोया आदि के विपणन की सुविधा भी पास में होना आवश्यक है, अत: स्थान का चयन करते समय डेयरी उत्पाद की विपणन सुविधा को भी ध्यान में रखना आवश्यक है। 
 
पशु के आवास का वातावरण :
पशुशाला एक साफ-उतरे वातावरण में बनानी चाहिए। प्रदूषित वातावरण पशुओं के स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव डालता है, जिससे दुग्ध उत्पादन में कमी हो सकती है। पशुशाला के आसपास जंगली जानवरों का प्रकोप बहुत कम अथवा बिलकुल नहीं होना चाहिए, ताकि इनसे दुधारू पशुओं को खतरा न हो। 
 
पशु का आवास बनाने की विधि :
(क) बंद आवास :
इस विधि में पशु को बांधकर रखा जाता है तथा उसे उसी स्थान पर दाना-चारा दिया जाता है। पशु का दूध भी उसी स्थान पर निकाला जाता है। इसमें पशु को यदि चरागाह की सुविधा हो तो केवल चराने के लिए ही कुछ समय के लिए खोला जाता है अन्यथा वह एक ही स्थान पर बना रहता है। 
इस प्रकार के आवास में कम स्थान की आवश्यकता है, पशुओं को अलग-अलग खिलाना, पिलाना संभव है, पशु की बीमारी का आसानी से पता लग जाता है। उपरोक्त लाभों के साथ-साथ इस विधि में कुछ कमियां भी हैं, जिससे आवास निर्माण अधिक खर्चीला होता है, स्थान बढ़ाए बगैर पशुओं की संख्या बढ़ाना मुश्किल होता है, पशुओं को पूरी आज़ादी नहीं मिल पाती तथा मद में आए पशु का पता लगाना थोड़ा मुश्किल होता है। 
 
(ख) खुला आवास :
इस विधि में पशुओं को एक घिरी हुई चार दीवारों के अंदर खुला छोड़ दिया जाता है तथा उनके खाने व पीने की व्यवस्‍था उसी में की जाती है। इस आवास को बनाने का खर्च अपेक्षकृत कम होता है।  इसमें श्रम की बचत होती है, पशुओं को ज्यादा आराम मिलता है तथा मद में आए पशु का पता आसानी से लगाया जा सकता है। इस विधि की प्रमुख कमियों में : इसमें अधिक स्थान की आवश्यकता पडती है, पशुओं को अलग-अलग खिलाना संभव नहीं है तथा मद में आए पशु दूसरे पशुओं को तंग करते है। 
 
(ग) अर्ध खुला आवास :
अर्ध खुला आवास बंद तथा पूर्ण आवासों की कमियों को दूर करता है। अत: आवास की यह विधि पशु पालकों के लिए अधिक उपयोगी है। इसमें पशु को खिलते, दूध निकलते अथवा इलाज करते समय बांधा जाता है, बाकी समय में उसे खुला रखा जाता है। इस आवास में हर पशु को 12-14 वर्ग मी. जगह की आवश्यकता होती है जिसमें से 4.25 व.मी. (3.5 1.2 मी.) ढंका हुआ तथा 8.6 व.मी. खुला हुआ रखा जाता है। व्यस्क पशु के लिए चारे की खुरली (नांद) 75 सेमी. छड़ी तथा 40 सेमी. गहरी रखी जाती है जिसकी अगली तथा पिछली दीवारें क्रमश: 75 व 130सेमी. होती हैं। खड़े होने से गटर (नाली) की तरफ 2.5-4.0सेमी. होना चाहिए। खड़े होने का फर्श सीमेंट अथवा ईंटों का बनाना चाहिए। गटर 30-40सेमी. चौड़ा तथा 5-7सेमी. गहरा तथा इसके किनारे गोल रखने चाहिए। इसमें हर 1.2 सेमी. के लिए 2.5 सेमी. ढलान रखना चाहिए। बाहरी दीवारें 1.5 मी. ऊंची रखी जानी चाहिए। इस विधि में बछड़ों-बछड़ियों तथा ब्याने वाले पशु के लिए अलग से ढंके हुए स्थान में रखने की व्यवस्था की जाती है। प्रबंधक के बैठने तथा दाने-चारे को रखने के लिए भी ढंके हुए भाग में स्थान रखा जाता है। 
 
गर्मियों के लिए शैड के चारों तरफ छायादार पेड़ लगाने चाहिए तथा सर्दियों तथा बरसात में पशुओं को ढंके हुए भाग में रखना चाहिए। सर्दियों में ठंडी हवा से बचने के लिए बोरे अथवा पोलीथीन के पर्दे लगाए जा सकते हैं। 
 
पशु आवास से संबंधित बातों का भी ध्यान रखना चाहिए :
* सूखी और उचित तरीके से तैयार जमीन पर शेड का निर्माण किया जाए। जिस स्थान पर पानी जमा होता हो और जहां की जमीन दलदली हो या जहां भारी बारिश होती हो, वहां शेड का निर्माण नहीं किया जाना चाहिए।
 
* शेड की दीवारें 1.5 से 2 मीटर ऊंची होनी चाहिए। दीवारों को नमी से सुरक्षित रखने के लिए उन पर अच्छी तरह पलस्तर किया जाना चाहिए। शेड की छत 3-4 मीटर ऊंची होनी चाहिए। शेड को पर्याप्त रूप से हवादार होना चाहिए। फर्श को पक्का/ सख्त, समतल और ढालुआ (3 से.मी. प्रति मीटर) होना चाहिए तथा उस पर जल-निकासी की समुचित व्यवस्था होनी चाहिए, ताकि वह सूखा व साफ-सुथरा रह सके।
 
* पशुओं के खड़े होने के स्थान के पीछे 0.25 मीटर चौड़ी पक्की नाली होनी चाहिए। प्रत्येक पशु के खड़े होने के लिए 2X1.05 मीटर का स्थान आवश्यक है। नांद के लिए 1.05 मीटर की जगह होनी चाहिए। नांद की ऊंचाई 0.5 मीटर और गहराई 0.25 मीटर होनी चाहिए।
 
* नांद, आहार-पात्र, नाली और दीवारों के कोनों को गोलाकार किया जाना चाहिए, ताकि उनकी साफ-सफाई आसानी से हो सके। प्रत्येक पशु के लिए 5-10 वर्गमीटर का आहार-स्थान होना चाहिए।
गर्मियों में छायादार जगह/ आवरण और शीतल पेयजल उपलब्ध कराया जाना चाहिए। जाड़े के मौसम में पशुओं को रात्रिकाल और बारिश के दौरान अंदर रखा जाना चाहिए। 
 
* प्रत्येक पशु के लिए हर रोज़ बिछावन उपलब्ध कराया जाना चाहिए। शेड और उसके आसपास स्वच्छता रखी जानी चाहिए। दड़बों और शेड में मैलाथियन अथवा कॉपर सल्फेट के घोल का छिड़काव कर बाहरी परजीवियों, जैसे– चिचड़ी, मक्खियों आदि को नियंत्रित किया जाना चाहिए।
 
* पशुओं के मूत्र को बहाकर गड्ढे में एकत्र किया जाना चाहिए और तत्पश्चात उसे नालियों/ नहरों के माध्यम से खेत में ले जाना चाहिए। गोबर और मूत्र का उपयोग उचित तरीके से किया जाना चाहिए। गोबर गैस संयंत्र की स्थापना आदर्श उपाय है, जहां गोबर गैस संयंत्र स्थापित न किए गए हों, वहां गोबर को पशुओं के बिछावन एवं अन्य अवशिष्ट पदार्थों के साथ मिलाकर कम्पोस्ट तैयार किया जाना चाहिए।
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