शुक्रवार, 29 मार्च 2024
  • Webdunia Deals
  1. खबर-संसार
  2. करियर
  3. गुरु-मंत्र
Written By मनीष शर्मा

भाव खाने वालों को कोई नहीं देता भाव

भाव खाने वालों को कोई नहीं देता भाव -
ND
समाज सुधारक ईश्वरचंद विद्यासागर को एक बार बर्दवान में भाषण देने के लिए रेल यात्रा करके वहाँ के छोटे से स्टेशन पर पहुँचे। वे ट्रेन से उतरकर इधर-उधर देखने लगे। तभी कुली-कुली की आवाज सुनकर उन्होंने अपनी नजरें घुमाईं।

उन्होंने देखा कि सूट-बूट पहने एक युवक उन्हें कुली समझकर अपने पास बुला रहा है, क्योंकि वे एक आम आदमी की तरह साधारण कपड़े ही पहनते थे। इसके चलते अकसर कई लोग उन्हें पहचानने में भूल कर जाते थे। विद्यासागर उसके पास पहुँचे तो वह अपने छोटे से सूटकेट की ओर इशारा करते हुए बोला- क्या मेरा यह सामान उठाओगे?

विद्यासागर बोले- हाँ-हाँ, क्यों नहीं। इसके बाद उन्होंने उसका सूटकेस उठा लिया और उसके पीछे-पीछे चलने लगे। रास्ते में उन्होंने पूछा- क्षमा कीजिए श्रीमान, इस छोटी-सी जगह पर आप जैसे भद्र पुरुष का कैसे आना हुआ? वह व्यक्ति बोला- तुमने विद्यासागरजी का नाम तो जरूर सुना होगा। वे कल यहाँ भाषण देने वाले हैं। वही सुनने मैं बहुत दूर से यहाँ आया हूँ।
  समाज सुधारक ईश्वरचंद विद्यासागर को एक बार बर्दवान में भाषण देने के लिए रेल यात्रा करके वहाँ के छोटे से स्टेशन पर पहुँचे। वे ट्रेन से उतरकर इधर-उधर देखने लगे। तभी कुली-कुली की आवाज सुनकर उन्होंने अपनी नजरें घुमाईं।      


इतने में वे प्लेटफार्म के बाहर आ गए। जब वह युवक उन्हें पैसे देने लगा तो उन्होंने लेने से इंकार कर दिया। अगले दिन आयोजन स्थल पर विद्यासागर को भाषण देते हुए देखकर वह युवक शर्म के मारे पानी-पानी हो गया। वह तुरंत उनके पास पहुँचा और उनके पैरों में गिरकर बोला- मुझे माफ कर दीजिए। मुझसे बहुत बड़ी गलती हो गई जो आप जैसे महापुरुष को पहचान नहीं पाया।

विद्यासागर ने उसे उठाया और बोले- आप अपना सामान स्वयं उठाने में शर्म महसूस कर रहे थे, इसलिए मैंने उठा लिया। अपने हाथ से काम करने से आदमी छोटा नहीं हो जाता। मुझे खुशी होगी यदि भविष्य में आप अपना सामान स्वयं उठाने में झिझक और हिचक का अनुभव नहीं करेंगे।

दोस्तो, अपना काम करना कोई गलत बात तो नहीं। यह तो गर्व की बात है। लेकिन उस युवक की तरह बहुत से लोग ऐसे होते हैं, जो खुद का सामान उठाना भी अपनी शान के खिलाफ समझते हैं। ऐसे लोगों को हम बता दें कि ऐसा करने से शान घटती नहीं, बढ़ती ही है।

अब देखिए ना, इस प्रसंग से किसकी शान बढ़ी? निश्चित ही विद्यासागर की, जिन्होंने अपना तो छोड़ो, दूसरे का वजन उठाने में भी शर्म महसूस नहीं की। उन्हें इस बात से भी कोई फर्क नहीं पड़ा कि वह युवक उन्हें कुली समझ रहा था। उन्होंने तो उस युवक के कहने से उसका सामान उठाकर न केवल उसे सीख दे दी, बल्कि यह भी प्रमाणित कर दिया कि वे वाकई महापुरुष थे।

इसलिए आवश्यकता पड़ने पर जब आप अपनी क्षमता के अनुसार अपने सामान का बोझ उठाएँगे, तभी तो आप जीवन से जुड़े दूसरे बोझों को भी उठाना सीखेंगे। उनको उठाने से कतराएँगे नहीं। जैसे कि काम का बोझ, जिम्मेदारियों का बोझ, परिवार का बोझ या इसी तरह का कोई अन्य बोझ।

दूसरी ओर, आप कितने ही बड़े आदमी क्यों न बन जाएँ, कितनी ही ऊँचाइयों पर क्यों न पहुँच जाएँ, आपको अपनी सहजता नहीं छोड़ना चाहिए, क्योंकि सहजता ही महानता की निशानी होती है। यदि आपने इसे छोड़ दिया तो एक दिन आपको अपने आप से घुटन होने लगेगी।

आखिर आदमी बनावटी जीवन कब तक जी सकता है। यदि ऊँचाई पर पहुँचकर भी आप पहले जैसे ही बने रहेंगे तो इससे आपका कद और बढ़ेगा ही। जो लोग थोड़ी-सी भी ऊँचाई पर पहुँचकर असहज हो जाते हैं यानी अपने मित्रों, परिजनों और परिचितों से दूरियाँ बनाने लगते हैं, वे और अधिक ऊँचाई पर नहीं जा पाते, क्योंकि उनके व्यवहार से लोग उनका साथ छोड़ने लगते हैं। कहते भी हैं ना कि भाव खाने वालों को कोई भाव नहीं देता। और जब लोग भाव नहीं देंगे तो फिर आपके भाव नीचे गिर जाएँगे यानी आप प्रगति नहीं कर पाएँगे।

और अंत में, आज ईश्वरचंद विद्यासागर जयंती है। इस अवसर पर संकल्प करें कि आप जैसे अंदर से हैं, वैसे ही दिखेंगे, वैसे ही रहेंगे। चाहे आप कितने ही बड़े क्यों न हो जाएँ, कभी अपनी सहजता नहीं खोएँगे। इससे आप सबके चहेते बने रहेंगे और सही अर्थों में बड़े आदमी भी कहलाएँगे।

अरे भई, अपनी जिम्मेदारियों का बोझ ठीक से उठाते तो आज तुम्हारी गर्दन भी सिर का बोझ आसानी से उठा लेती।