शुक्रवार, 19 अप्रैल 2024
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Written By मनीष शर्मा

झूठे दोस्त के होने से तो दुश्मन अच्छा

झूठे दोस्त के होने से तो दुश्मन अच्छा -
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विजय नामक एक व्यक्ति के वर्षों पुराने तीन दोस्त थे। उनमें से सबसे गहरे दोस्त से उसकी मुलाकात रोज हो जाती थी, दूसरे से हफ्ते दो हफ्ते में मिल लेता था और तीसरे से तो मिले हुए उसे महीनों बीत जाते थे। एक बार विजय एक मुकदमे में उलझ गया। अदालत से उसके नाम समन भी जारी हो गया।

पेशी वाले दिन वह अदालत जाने से पहले अपने जिगरी दोस्त को साथ ले जाने के लिए उसके पास पहुँचा। उसे मुकदमे के बारे में बताकर बोला-अगर पेशी में तू मेरे साथ रहेगा तो मुझे हिम्मत मिलेगी। इस पर दोस्त तुरंत बोला-माफ करना यार, मुझे आज एक बहुत जरूरी काम है। इसलिए मैं तेरे साथ नहीं चल पाऊँगा। वैसे तू घबरा मत, मैं दुआ करूँगा कि फैसला तेरे ही पक्ष में हो।

उसके जवाब से विजय को धक्का पहुँचा। वह हैरान था कि जिस दोस्त को उसने सबसे ज्यादा चाहा, वह जरूरत के समय किसी और काम को ज्यादा महत्व दे रहा है। वह अपना-सा मुँह लेकर वहाँ से चल दिया। तभी उसे सामने से अपना दूसरा दोस्त आता हुआ दिखाई दिया। उसकी जान में जान आई।

नजदीक आने पर उसने उसे भी अपनी परेशानी बताई और साथ चलने को कहा। इस पर वह बोला-मित्र, आज के लिए तू मुझे माफ कर दे। मैं जरूरी काम से कहीं जा रहा हूँ। हाँ, मैं तुझे कोर्ट के बाहर जरूर छोड़ सकता हूँ। और वह उसे अदालत के दरवाजे पर छोड़कर चला गया। विजय मुँह लटकाए अदालत की सीढ़ियाँ चढ़ ही रहा था कि उसे सामने तीसरा दोस्त खड़ा दिखाई दिया। विजय के कुछ बोलने से पहले ही दोस्त बोला-तेरी पेशी के बारे में पता चलते ही मैं सीधे यहाँ दौड़ा आया। चिंता न कर, मैं तेरे साथ हूँ। जरूरत पड़ने पर गवाही भी दे दूँगा। और दोनों अंदर चले गए।

दोस्तो, वह दोस्त ही क्या जो मुसीबत में साथ छोड़ जाए। कहते भी हैं कि 'धीरज धरम मित्र अरु नारी, आपत काल परखिए चारी।' तो फिर आप किस दोस्त को जीवन में ज्यादा महत्व देंगे? निश्चित ही तीसरे दोस्त को, क्योंकि यदा-कदा मिलने के बाद भी जरूरत पड़ने पर वही विजय के काम आया। साथ ही उसे यह भी पता चल गया कि जिसे अपना जिगरी दोस्त समझता था, उसकी असलियत क्या है।

इसलिए किसी को भी अपना मित्र बनाने-मानने से पहले उसे मित्रता की कसौटी पर परख लें। केवल बातचीत के आधार पर ही किसी को अपना दोस्त न मानें। वैसे भी यह जरूरी नहीं कि हम से मीठा बोलने वाले सभी लोग हमारे मित्र हों। जर्मन कहावत भी है कि झूठे मित्र की जबान मीठी लेकिन दिल कड़वा होता है।

वह तभी तक आपका साथ देता है, जब तक आपका सितारा बुलंदी पर होता है ताकि दोस्ती के नाम पर आपका फायदा उठाता रहे। आप पर विपत्ति आते ही वह चुपचाप पतली गली से निकल जाता है। इसलिए ऐसे दोस्त के होने से तो दुश्मन अच्छा। कम से कम आपको उसके बारे में पता तो होता है और आप उससे सतर्क रहते हैं। नकली दोस्त आपके दिल को धक्का ही पहुँचाता है, आपको तकलीफ ही देता है।

दूसरी ओर, आज की कहानी के तीनों दोस्तों के भी कुछ राज हैं। उनमें से पहला दोस्त था विजय द्वारा कमाई गई धन-दौलत। दूसरा था उसके मित्र-परिजन और तीसरा था उसके कर्म, उसके सद्गुण। और जिस अदालत में हाजिर होने का उसे फरमान मिला था, वह थी धर्मराज की अदालत, जहाँ एक दिन हम सभी को जाना होता है।

विजय ने जीवन भर धन-दौलत को सबसे ज्यादा चाहा। जब उसे काम पड़ा तो सबसे पहले वही उस से दूर हुई। उसके बाद उसने अपने मित्र-परिजनों को महत्व दिया। वे भी उसे अदालत के दरवाजे तक यानी श्मशान घाट पर छोड़कर लौट आए और अपने-अपने कामों में लग गए। तीसरा दोस्त यानी उसके कर्म, सद्गुण उसके साथ गए और उन्होंने धर्मराज के सामने विजय के पक्ष में गवाही भी दी।