शुक्रवार, 19 अप्रैल 2024
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Written By मनीष शर्मा

जानना है कि हो कौन तो रखना पड़ेगा मौन

जानना है कि हो कौन तो रखना पड़ेगा मौन -
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एक बार एक तालाब में काँटा डालकर बैठे मछलीमार के काँटे में बहुत समय गुजर जाने के बाद भी कोई मछली नहीं फँसी। उसने सोचा कि कहीं मैंने काँटा गलत जगह तो नहीं डाल दिया। उसने तालाब में झाँका तो देखा कि उसके काँटे के आसपास बहुत-सी मछलियाँ थीं।

उसे बहुत आश्चर्य हुआ कि इतनी सारी मछलियाँ होने के बाद भी कोई मछली फँसी क्यों नहीं जबकि काँटे में दाना भी लगा है। वह इसका कारण सोच ही रहा था कि तालाब के किनारे रहने वाला एक मछुआरा उससे बोला- लगता है भैया, यहाँ पर मछली मारने बहुत दिनों बाद आए हो। इस तालाब की मछलियाँ अब काँटे में नहीं फँसतीं।

इस पर उसने हैरानी से पूछा- क्यों, यहाँ ऐसा क्या हुआ? मछुआरा- पिछले दिनों तालाब किनारे एक बहुत बड़े संत के प्रवचन हुए थे। उन्होंने यहाँ मौन की महत्ता बताई थी। यह उनके प्रवचनों का ही असर है कि उसके बाद जब भी कोई इन मछलियों को फँसाने के लिए काँटा डालकर बैठता है तो ये मौन धारण कर लेती हैं। अब जब मछली मुँह खोलेगी ही नहीं तो काँटे में फँसेगी कैसे?
  एक बार एक तालाब में काँटा डालकर बैठे मछलीमार के काँटे में बहुत समय गुजर जाने के बाद भी कोई मछली नहीं फँसी। उसने सोचा कि कहीं मैंने काँटा गलत जगह तो नहीं डाल दिया। उसने तालाब में झाँका तो देखा कि उसके काँटे के आसपास बहुत-सी मछलियाँ थीं।      


दोस्तो, सही बात तो है कि जब मुँह खोलोगे ही नहीं तो फँसोगे कैसे? यह बात उन व्यक्तियों को भी समझ लेना चाहिए जो अपनी बकबक करने की आदत के चलते स्थान और समय का ध्यान रखे बिना अपना मुँह खोलकर मुसीबत में फँस जाते हैं।

इस प्रतिस्पर्धी दौर में इस बात का महत्व और भी बढ़ गया है, क्योंकि न जाने कौन, कहाँ, कब अपना काँटा डाले आपको फँसाने के चक्कर में हो। जैसे ही आपने मुँह खोला कि आप फँसे। ऐसी स्थितियों से बचने के लिए जरूरी है कि हम यह सीखें कि कब, कहाँ और कितना बोला जाए। इस गुण के कारण ही कई बार कम योग्य लोग भी अपने से अधिक योग्य लोगों की तुलना में उच्च पदों पर होते हैं और योग्य व्यक्ति अपनी सारी शक्ति उनकी आलोचना करने में ही खर्च करते रहते हैं।

यानी कह सकते हैं कि योग्य और सफल बनना है तो मौन की साधना करो। और इस साधना की शुरुआत के लिए आज से बेहतर दिन क्या होगा। आज मौनी अमावस्या है। आज का दिन तो है ही मौन व्रत धारण करने के लिए। यह दिन हमें याद दिलाता है कि हमें कभी-कभी मौन भी रहना चाहिए।

इस दिन का एक और संदेश है कि हम यदि बोलें तो एक-दूसरे के लिए कटु की जगह मीठे वचन बोलें। वैसे भी किसी की बुराई करना हो तो कोई भी व्यक्ति घंटों बोल सकता है लेकिन प्रशंसा के लिए उसे अधिक शब्द ही नहीं मिलते और वह न चाहते हुए भी मौन हो जाता है।

इसके साथ ही अमावस्या प्रतीक है विपत्तियों व मुसीबतों रूपी अंधकार का। यानी जब आप मुसीबतों से घिरे हों तो मौन रहने में ही भलाई है, क्योंकि बोलने से ऊर्जा का क्षय होता है। ऐसे समय में मौन रहकर आप अपनी बैटरी को रीचार्ज कर सकते हैं और बाद में संचित ऊर्जा के जरिए मुसीबतों का सामना आसानी से कर सकते हैं।

दूसरी ओर, मौन का संबंध आपके भीतर से भी है। लोग अक्सर कहते हैं कि अपने गुण, अपनी क्षमता और प्रतिभा को पहचानो। यदि हम यह सब जानना-पहचानना चाहते हैं तो इसकी पहली सीढ़ी है मौन। मौन रहकर ही हम जान सकते हैं कि हम कौन और क्या हैं। मौन से ही हम अपनी सोच का दायरा बढ़ा सकते हैं।

वैसे मौन को रहस्यमय भी कहा गया है क्योंकि इसमें बहुत से रहस्य जो छिपे रहते हैं। वैसे यह आपके भीतर छिपे रहस्यों को उजागर ही करता है। कौन होगा जो इन रहस्यों को जानना नहीं चाहेगा। तो जानो। कैसे? मौन रहकर। क्या? पूछते हो कि मौन कैसे रखें?

इसमें क्या दिक्कत है। बस हो जाओ मौन। मौन होने की कोई विशेष विधि थोड़े ही है। मौन होकर देखो-सुनो अपने आसपास की घटनाओं को, लेकिन कोई प्रतिक्रिया न हो। यदि एकांत में बैठे हों तो ज्यादा अच्छा। इस तरह अभ्यास करो मौन का।

पहले कम समय करो, धीरे-धीरे बढ़ाते जाओ। कुछ समय बाद आपको अपने सभी प्रश्नों के उत्तर मिलने लगेंगे, क्योंकि यह सभी तालों की चाबी है। यह आप पर निर्भर है कि आप इससे कितने रहस्यों के दरवाजे खोलते हैं। अब बस, मौन पर मौन नहीं रहा जा सका और मौन रखने के बाद भी इतना कह दिया। कलम से। कसम से।