गुरुवार, 28 मार्च 2024
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मेरे अंदर ‘वह’ कौन?

मेरे अंदर ‘वह’ कौन? - मेरे अंदर ‘वह’ कौन?
‘बुध-विचार’ के अपने पहले लेख में मैंने कहा था, कि जिस प्रकार हम दूसरों की विश्वसनीयता को इस बात से आंकते हैं कि उन्होंने हमारे साथ किए वादों को पूरा किया या नहीं, ठीक उसी प्रकार हम अपनी विश्वसनीयता को भी इसी बात से आंकते-परखते हैं कि हम अपने फैसलों पर अमल करते हैं या नहीं।

जब भी हम ऐसा कुछ करने का निर्णय करते हैं जिसे करने में हमारे मन या शरीर पर बोझ पड़े तो यों समझिए कि हम अपने साथ एक वादा कर रहे होते हैं। उदाहरणार्थ, यदि कोई ऐसा व्यक्ति, जिसे शराब पीने की लत है, यह निर्णय करता है कि वह अब शराब नहीं पीएगा तो वह अपने आप को यह कह रहा होता है कि, 'मैं वादा करता हूं अब शराब नहीं पीऊंगा।'
ज़रा सोचिए, ऐसी स्थिति में वह किससे वादा कर रहा है? उसके अंदर बैठा ‘वह’ कौन है?

आत्म-संवाद : हम सभी अक्सर अपने-आप से बात करते हैं। आत्म-ग्लानि भी तो एक प्रकार का आत्म-संवाद ही है न?

आइए शराब की लत वाले जिस व्यक्ति की हमने ऊपर बात की थी, उसी की कल्पना को कुछ और आगे बढ़ाएं। सोचिए कि आज सुबह उसने निर्णय किया था कि वह अब कभी शराब नहीं पिएगा, लेकिन शाम होते-होते मन फिसलने लगा। रात को जब पत्नी टीवी देखने में तल्लीन थी और बच्चा स्कूल का काम कर रहा था तो उसने अल्मारी की चाबी ढूंढी, कुछ पैसे चुराए और मैखाने को निकल लिया।

घंटों-घंटों कड़वा पानी पी कर, पैसे लुटाकर घर लौटते समय उस के मन को आत्म-ग्लानि की भावनाएं घेर लेती हैं। वह आत्म-संवाद करता है। ऐसा लगता है जैसे उसके अंदर बैठा कोई उसे लताड़ रहा है। आइए कान लगाकर सुनते हैं :

“मूर्ख! तू नहीं सुधरेगा। रोज़ फैसला करता है कि अब दारू नहीं पीऊंगा और फिर पहुंच जाता है बेशर्मों की तरह। डॉक्टर ने कई बार कहा कि शराब छोड़ दे, नहीं तो राम को प्यारा हो जाएगा, लेकिन तू उस वक्त मुंडी हिलाकर बाद में भूल जाता है। लिवर गलकर फ़लूदा हो गया है, लेकिन भेजे में डॉक्टर की बात नहीं घुसती।'

इस प्रकार के संवाद हम सब ने कई बार अपने-आप से किए हैं। अपने आप को कोसा है। शाबाशी दी है। साहस बढ़ाया है। सपने दिखाए हैं। योजनाएं सुझाई हैं। ठीक उसी प्रकार जैसे एक ही व्यक्ति में एक नहीं बल्कि दो व्यक्ति छुपे बैठे हों, जिनमें से एक काम करता है और दूसरा उस पर टिप्पणी करता है।

आंकलनकर्ता : यदि मैं पूछूं कि हमारे अंदर बैठा हमारे कामों की टिप्पणी करने वाला यह दूसरा व्यक्ति कौन है तो शायद अधिकांश लोग उसे ‘अंतरात्मा’ की संज्ञा देंगे। लेकिन मुझे लगता है कि अपने अंदर बैठे ‘उस’ को आकलनकर्ता कहा जाए तो अधिक उचित होगा। अंतरात्मा तो तब जागती है जब हम कोई गलत काम करते हैं। लेकिन हमारा आकलनकर्ता हमारी अच्छी-बुरी सभी बातों का आकलन करता है। इतना ही नहीं वह अपनी जांच-परख के परिणामों को इकट्ठा करता रहता है और हमें एक आत्म-बिम्ब (self-image) और आत्म-सम्मान (self-esteem) प्रदान करता है।

आत्म-बिम्ब और आत्म-सम्मान हमारी मानसिक-सृष्टि (psychological build-up) का बहुत महत्त्व-पूर्ण अंग हैं और आगामी लेखों में मैं इस बात का उल्लेख करूंगा कि जीवन में हमारी सफलताओं पर हमारे आत्म-बिम्ब और आत्म-सम्मान का कितना गहन प्रभाव पड़ता है और किस प्रकार हम अपने आत्म-बिम्ब और आत्म-सम्मान को परिवर्तित करके अपनी जीवन-शैली को सफलता की ओर अग्रसर कर सकते हैं।
 
किस ठौर? :
आइए अब पिछले लेख की ओर चलते हैं। पिछले लेख में मैंने कहा था कि जब-जब हम अपने फैसलों का पालन करते हैं तब-तब हमारे आत्म-विश्वास में बढ़ोतरी होती है। ठीक वैसे ही जैसे एक तहदार चट्टान पर एक और परत जाम गई हो। उसी प्रकार जब हम अपने फैसले पर नहीं टिकते तो उस चट्टान पर से एक परत उतर जाती है।

आइए, अब इसी बात को एक और दृष्टिकोण से देखते हैं। जब-जब हम अपने फैसलों का पालन करते हैं, तब-तब हमारे अंदर बैठा आकलन-कर्ता हमें कुछ अंक दे देता है। जब-जब हम अपने फैसलों पर नहीं टिकते तब-तब वह हमारे कुल अंकों में से कुछ अंक काट लेता है।

ऐसे में जब हम किसी चुनौती का सामना करते हैं और अपने अंदर झाँकते हैं तो आकलन-कर्ता तब तक के हमारे कुल अंक दिखा देता है। यदि हम देखते हैं कि हमारे अंक तो बहुत अच्छे हैं तो हमारा साहस बुलंद होता है। हमें लगता है कि हम इस कार्य को कर पाएंगे। इसके विपरीत जब हम देखते हैं कि हमारे कुल अंक तो बहुत कम हैं तो हमारी टांगें कांपने लगती हैं। हमें लगता है कि हम इस कार्य को कदाचित नहीं कर पाएंगे।

मोदीजी - एक आदर्श : आंकलनकर्ता की अवधारणा को समझने के लिए मोदी जी के आत्म-विश्वास का दृष्टांत एक अत्युत्तम उदाहरण है। अमेरिकी राष्ट्रपति ओबामा द्वारा आयोजित सहभोज में भी वह अपने नवरात्रि व्रत पर अडिग रहे। कोई दूसरा व्यक्ति होता तो सोचता 'ऐसी भी क्या बात है? इतने बरसों से व्रत रख रहा हूं। एक बार छोड़ दूंगा तो कौन सा अनर्थ हो जाएगा?” लेकिन मोदीजी ने ऐसा नहीं किया। ऐसे में मोदी जी के मन में बैठा आकलनकर्ता अपनी अदृश्य पुस्तिका में क्या लिखेगा? यही तो न कि 'कुछ भी हो जाए यह व्यक्ति अपने सिद्धांतों से नहीं चूकता' अपने फैसलों की इसी अटलता के कारण इतने बड़े बड़े लोगों के बीच बोलते समय भी, बड़ी-बड़ी बाधाओं के बीच भी मोदी जी की आवाज़ नहीं लड़खड़ाती। उनके अंदर बैठा आकलनकर्ता उन्हें कहता है, 'तुम अजेय हो। तुम निर्भय हो। तुम एक चट्टान हो।'

बताइए कितने नेता हैं, हमारे देश में या दूसरे देशों में, जो मेडिसिन स्क्वायर गार्डन में पचास अमेरिकी सांसदों के बीच आत्म-विश्वास के साथ उन सब के नेता बनकर खड़े हो सकेंगे?

अगले लेख में देखेंगे कि हमारे मन में आंकलनकर्ता का विकास कैसे होता है।
(लेखक सेवानिवृत्त आईपीएस अधिकारी हैं)

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