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Written By WD

बिंदास और ब्रिलियंट है आज के युवा

दूसरों के लिए भी जीते हैं भारतीय युवा

Indian Youth | बिंदास और ब्रिलियंट है आज के युवा
राखी कौशल

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रात ग्यारह बजे का समय है और नेट पर चैटिंग में जुटे 23 वर्षीय रोहन की कम्प्यूटर स्क्रीन पर मैसेज उभरता है... 'अपना भीड़ू यश गॉट जॉब... पैकेज, 4.5... ट्रेन टू बेंगलुरू नाओ... हुरररर्रे...।' खुशी से रोहन का भी चेहरा चमक उठता है और उसके बाद तेजी से वह यह मैसेज फॉरवर्ड करना शुरू कर देता है।

अगले 15 मिनट में ही ऑनलाइन कई दोस्तों तक यह खुशखबर पहुंच चुकी है और सब मिलकर अपने यश यानी यशदीप से पार्टी-पार्टी की मांग कर रहे हैं। यह शायद आपको बहुत सामान्य-सी बात लगे, लेकिन खास बात यह है कि यशदीप के इन दोस्तों में रोहन के साथ ही कई और भी हैं, जिनको अब तक जॉब नहीं मिला है और वे जॉब सर्च में जुटे हैं।

पिछले दिनों तक यश भी यही कर रहा था और एक हफ्ते पहले ही उसे इंटरव्यू कॉल मिला था। बाकी सब भी अपने आपको तथा स्वयं की क्षमताओं को लेकर पूरी तरह आश्वस्त भी हैं और कॉन्फिडेंट भी... सभी की कोशिशें जारी हैं। इस बीच जिस किसी की भी कोशिश कामयाब हो जाती है, उसके लिए बाकी सबके चेहरे भी खिल जाते हैं।

उनकी प्रतिक्रिया ऐसी होती है मानो जॉब उनके दोस्त को नहीं खुद उनको ही मिला हो। बात केवल इस एक जॉब सर्च से ही जुड़ी नहीं है। असल में यह जिंदगी के प्रति नई पीढ़ी के रवैये को स्पष्ट करती है। हमारी नई पीढ़ी की यह पॉजिटिव एप्रोच हमें भी बहुत कुछ सीखने को प्रेरित करती है।

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बात चाहे किसी दोस्त से सात समंदर पार होने पर भी जुड़े रहने की हो, मुसीबत में किसी अपने के साथ रहने की हो या फिर शहर से दूर परिवार के साथ छुट्टियां बिताने की हो... नई पीढ़ी के पास हर चीज को बैलेंस करके चलने का माद्दा भी है और इमोशन्स को समझने वाला दिल भी। अपने परिवार से लेकर दोस्तों, रिश्तेदारों और परेशानी में पड़े किसी अपरिचित का साथ देने के अलावा वे देशहित में एकजुट होना भी जानते हैं और अपनी जिंदगी को बिना किसी फिजूल औपचारिकता की बजाय बिंदास जीने में भी यकीन रखते हैं। आज के युवा की फिलॉसफी बेहद सिंपल, लेकिन गहरी है... 'अपने साथ-साथ दूसरों के लिए भी जियो।'

आज की पीढ़ी बेहद आशावादी और जिंदगी को उसके एक-एक कतरे तक जीवटता के साथ जीने वाली है। वे जिंदगी के हर पहलू के प्रति न केवल व्यावहारिक रुख रखते हैं, बल्कि बेहद आत्मविश्वास के साथ हर चुनौती का सामना भी करते हैं। उनके लिए रिश्ते, भावनाएं और अपनापन मायने रखते हैं, लेकिन वे इनके औपचारिक प्रदर्शन में विश्वास नहीं करते। हां, जब भी जरूरत पड़े तो हमेशा साथ खड़े नजर आते हैं।

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25 वर्षीय कौस्तुभ और उसके दोस्तों प्रियंक तथा विवेक को ही लीजिए। जॉब के चलते कौस्तुभ को शहर और परिवार से हजारों किलोमीटर दूर जाना पड़ा। इस बीच चाहे कौस्तुभ के परिवार में किसी का जन्मदिन हो या कोई मदद, विवेक और प्रियंक हर समय कौस्तुभ का प्रतिनिधित्व करते रहे। यही नहीं, हर सप्ताह वे अपनी व्यस्तता से समय निकालकर अपने दोस्त के परिवार के साथ समय बिताने जरूर जाते रहे।

उन तीनों ने न तो किसी से ऐसा कोई वादा लिया था, न ही ये दोस्ती में रखी गई कोई शर्त थी... लेकिन दूर होते हुए भी तीनों एक-दूसरे के करीब रहकर एक-दूसरे की भावना का सम्मान कर रहे थे और रिश्ते निभा रहे थे। ये और ऐसे कितने ही उदाहरण आपको अपने आसपास मिल जाएंगे, जहां दोस्त एक-दूसरे की खुशी में खुश होते हों, उनमें प्रतिस्पर्धा होती है लेकिन स्वस्थ प्रतिस्पर्धा। कोई दुराव-छुपाव नहीं, कोई जलन की भावना नहीं।

कॉलेज के कैम्पस में एक दोस्त के फॉर्मल जूते और शर्ट-पेंट कई दोस्तों के काम आ जाते हैं... पड़ोस के अंकल को इंटरनेट पर चैटिंग करना भी वे सहजता से सिखा देते हैं और समय हुआ तो आंटी के लिए बाजार से सब्जी लाकर देने में भी उन्हें कोई दिक्कत नहीं... अपने दोस्त की बहन की शादी में बाकी दोस्त न केवल भाई और सहयोगी की भूमिका संभाल लेते हैं, बल्कि क्रिएटिव अरेंजमेंट्स भी करते हैं और शादी को भरपूर एन्ज्वॉय भी करते हैं...

इंटरनेट के जरिए हुई दोस्ती के जरिए वे देश-विदेश में एक-दूसरे के घर आकर सहजता से रुक जाते हैं... भले ही सालों उनके बीच कोई पत्र-व्यवहार न हो, लेकिन जब जरूरत पड़ती है तो वे साथ खड़े नजर आते हैं... एक दोस्त के धर्म का त्योहार सब मिल-जुल कर मनाते हैं.., वे अपने परिवार के साथ समय बिताने में भी विश्वास रखते हैं और रिश्ते को मजबूती से बांधे रखने का भी काम करते हैं।

युवाओं की यह सोच और विचारधारा हमें कहीं गहरे आश्वस्त भी करती है कि हमारे रिश्ते और हमारी भावनाएं सबका मोल है... नई पीढ़ी अपने इस रूप में हमारे लिए प्रेरणादायी भी है।