शुक्रवार, 29 मार्च 2024
  • Webdunia Deals
  1. खबर-संसार
  2. व्यापार
  3. बजट 2017-18
  4. Notbandi, black money, Corruption, Union budget
Written By

कालेधन को लेकर 'हमाम में सभी नंगे हैं'!

कालेधन को लेकर 'हमाम में सभी नंगे हैं'! - Notbandi, black money, Corruption, Union budget
देश में नोटबंदी की घोषणा करते हुए प्रधानमंत्री ने अपने राष्ट्र के नाम संबोधन में कहा था कि इस ऐतिहासिक कार्रवाई का उद्देश्य भ्रष्टाचार और कालेधन को समाप्त करना है। सरकार ने नोटबंदी के नाम पर आम लोगों की बैंकों में जमा रकम को कालाधन बताकर जब्त कर लिया लेकिन देश में कालेधन के सबसे बड़े स्रोत (राजनीतिक दलों की काली कमाई) पर रोक लगाने का कोई ठोस उपाय नहीं किया है। यहां तक कि राजनीतिक दलों से जुड़ी सूचनाओं को पूरी तरह से आरटीआई के दायरे में नहीं लाया गया है।
इन सभी बातों का निष्कर्ष यही है कि कालेधन को लेकर सरकार की अपनी सुविधानुसार 'सलेक्टिव कार्रवाई का अर्थ' यही है कि इस मुद्दे पर सरकार की नीयत साफ नहीं है। देश की सरकार का मानना है कि लोगों को देशभक्ति का पाठ पढ़ाकर बैंकों के बाहर लाइनों में लगने के लिए मानसिक दबाव डाला जा सकता है लेकिन जहां ईमानदारी से कोशिश करने की जरूरत है तो सभी राजनीतिक दलों और इनके नेताओं की नीयत सिर्फ लोकतंत्र के नाम पर देश के लोगों के पैसों की लूट तक सीमित है।
 
उल्लेखनीय है कि 24 जनवरी को एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा है कि तमाम राजनीतिक दलों ने 2004-05 से लेकर 2014-15 के बीच बेनामी स्रोतों से 7,855 करोड़ रुपयों की फंडिंग पाई। विदित हो कि एडीआर वह संस्था है, जो कि राजनीतिक दलों के कामकाज को लेकर आंकड़े एकत्र करती है, सर्वेक्षण करती है और इनके निष्कर्षों को सार्वजनिक करती है।
 
इस रिपोर्ट के मुताबिक ये 7,855 करोड़ की रकम राजनीतिक दलों की पूरी कमाई का 69 फीसदी है। अज्ञात स्रोतों से प्राप्त इस आमदनी को राजनीतिक दलों ने अपने इंकम टैक्स रिटर्न में तो बताया है, मगर ये पैसा उन्हें किससे मिला, इसकी जानकारी उन्होंने छिपा ली। ये वो चंदे हैं, जो 20 हजार से कम वाले हैं। यह वो रकम है जिसका पूरा हिसाब राजनीतिक दलों ने नहीं दिया और इस पर उन्होंने टैक्स भी नहीं भरा। इसे अगर राजनीतिक दलों का कालाधन कहा जाए तो गलत न होगा।
 
यह बात सभी जानते हैं कि राजनीतिक दलों की आमदनी और खर्च को लेकर जो मौजूदा नियम हैं, उनमें गड़बड़ियां करने के इतने तरीके हैं कि राजनीतिक दलों को अपनी आमदनी का ठीक-ठीक हिसाब देना नहीं पड़ता है, क्योंकि 20 हजार से कम के राजनीतिक चंदे का न तो उन्हें स्रोत बताना पड़ता है और न ही उस पर टैक्स देना होता है। इसीलिए राजनीतिक दल 20 हजार से कम चंदे वाली तमाम पर्चियां बनाकर 20 हजार से कम के चंदे में अपनी आमदनी दिखा देते हैं।
 
करोड़ों की रकम को भी वे छोटे टुकड़ों में करके दिखा देते हैं। इनमें से कई बार उन कंपनियों से मिली रकम भी होती है जिसको ये राजनीतिक दल सत्ता में आने पर फायदा पहुंचाते हैं। चंदे की छोटी रकम दिखाने पर उनकी कोई जवाबदेही नहीं होती। लोकतंत्र की सबसे बड़ी देन यही है कि यह एक ऐसी शासन प्रणाली है जिसमें कभी किसी की कोई जिम्मेदारी नहीं होती, कोई जवाबदेही नहीं होती। 
 
इन खामियों को दूर करना जरूरी लेकिन... 
जब तक राजनीतिक दलों की आमदनी का हिसाब रखने की इस खामी को दूर नहीं किया जाता है तब तक हम तमाम पार्टियों के कामकाज में पारदर्शिता की उम्मीद नहीं कर सकते। आमतौर पर सभी राजनीतिक दल चंदों की रसीद भी नहीं रखते। प्रखर राष्ट्रवादी मोदी सरकार ने भी इस समस्या पर अब तक कोई ध्यान नहीं दिया है, वास्तव में इस मामले में सभी राजनीतिक दलों के बारे में यह कहना गलत नहीं होगा कि 'राजनीति के इस हमाम में सभी नंगे हैं'।
 
सभी राजनीतिक दलों और उनकी सरकारों का पूरा जोर मात्र इसी बात पर होता है कि जनता अपनी आमदनी और खर्च की पाई-पाई का हिसाब दे। मगर राजनीतिक दलों और नेताओं की आमदनी और खर्च के मामले में पारदर्शिता पर मोदी ने पूरी तरह से चुप्पी साध रखी है। ये बात तब और अखरती है और हास्यास्पद लगती है, जब प्रधानमंत्री मोदी बार-बार दावा करते हैं कि उन्होंने देश में कालेधन के खिलाफ धर्मयुद्ध छेड़ रखा है और वे इस देश से कालाधन मिटाकर ही दम लेंगे।
 
पिछली 8 नवंबर को नोटबंदी का ऐलान करके मोदी सरकार ने देश की अर्थव्यवस्था में से चलन की 86 फीसदी मुद्रा को गैरकानूनी घोषित कर दिया। नवंबर के आखिरी हफ्ते में सरकार ने देश को कालेधन से रहित बनाने के स्थान पर कैशलेस अर्थव्यवस्था बनाने का बड़ा अभियान छेड़ दिया। सरकार का दावा है कि वह हर लेन-देन को डिजिटल बनाकर उसकी निगरानी करना चाहती है ताकि कालेधन का लेनदेन और जमाखोरी को रोका जा सके। 
ये भी पढ़ें
समुद्र में फंसी चीनी नौका, भारतीय नौसेना ने की मदद...