कायप्पकोपं रक्खेय्य कायेन संवुतो सिया।
कायदुच्चरितं हित्वा कायेन सुचरितं चरे॥
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वची पकोप रक्खेय्य वाचाय संब्रुतो सिया।
वची दुच्चरितं हित्वा वाचाय सुचरितं चरे॥
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मनोपकोपं रक्खेय्य मनसा संवुतो सिया।
मनोदुच्चरितं हित्वा मनसा सचरितं चरे॥
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कायेन संवुता धीरा अथो वाचाय संवुता।
मनसा संवुता धीरा ते वे सुपरिसंवुता॥
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