शुक्रवार, 19 अप्रैल 2024
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Written By अनिरुद्ध जोशी 'शतायु'

अधर्माचरण क्या है?

अधर्माचरण क्या है? - Buddha's precious Word
बुद्ध के पवित्र वचन
 
भगवान बुद्ध ने अपने उपदेश में कहा है- शरीर का अधर्माचरण तीन, वाणी का अधर्माचरण चार और मन का अधर्माचरण तीन तरह का होता है।
शरीर का अधर्माचरण :
1.प्राणातिपात : हिंसा करना, खून से अपने हाथ रंगना, मार-काट करना, प्राणियों के प्रति निर्दय होना।
2.अदिन्नादान : चोरी। दूसरे का बिना दिया हुआ धन लेना।
3.काम में मिथ्याचार : पराई स्त्रियों के साथ दुराचार करना।
 
वाणी का अधर्माचरण :
1.झूठ बोलना : न जानते हुए यह कहना कि मैं जानता हूं। न देखते हुए यह कहना कि मैंने देखा है। देखते हुए कहना कि मैंने नहीं देखा। इस तरह अपने लिए या दूसरे के लिए या थोड़े लाभ के लिए जान-बूझकर झूठ बोलना।
 
2.चुगलखोरी करना : फूट डालने के लिए यहां की बात सुनकर वहां कहना, वहां की बात सुनकर यहां कहना। मेलजोल वालों को फोड़ना, फूटे हुए को शह देना, गुटबाजी से खुश होना, गुट में रहना, भेद पैदा करने वाली वाणी बोलना।
 
3.कड़वी भाषा बोलना : तेज, कर्कश, दूसरों को कड़वी लगने वाली, दूसरों को पीड़ा देने वाली, क्रोध से भरी हुई, अशांति पैदा करने वाली वाणी बोलना।
 
4.प्रलाप करना : बे-वक्त बोलना, अयथार्थ बोलना, बिना उद्देश्य के बोलना, निरर्थक बोलना, अनीतिमय बोलना।
 
मन का अधर्माचरण :
1.अभिध्या : दूसरे के धन का, दूसरे की संपत्ति का लोभ करना। यह सोचना कि यह संपत्ति, जो दूसरे की है, मेरी नहीं है, किसी तरह मेरी हो जाए।
 
2.व्यापन्न चित्त : द्वेषपूर्ण संकल्प करना। जैसे ये प्राणी मारे जाएं, ये नष्ट हो जाएं, ये न रहें आदि।
 
3.मिथ्यादृष्टि : उलटी धारणा होना, अर्थात दान कुछ नहीं है यज्ञ कुछ नहीं है, सुकृत कुछ नहीं है, दुष्कृत कुछ नहीं है, लोक कुछ नहीं, परलोक कुछ नहीं- ऐसी धारणा होना।
 
इस तरह के आचरण वाले प्राणी शरीर छोड़ने के बाद नरक में जाते हैं। इसके विपरीत आचरण धर्माचरण है और वैसे करने वाले मरने के बाद स्वर्ग में उत्पन्न होते हैं।
 
संकलन : अनिरुद्ध जोशी 'शतायु'