शनिवार, 20 अप्रैल 2024
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Written By समय ताम्रकर

हॉलिडे : फिल्म समीक्षा

Holiday : Movie Review | हॉलिडे : फिल्म समीक्षा
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सैनिक देश के बाहरी दुश्मनों से देशवासियों से रक्षा करता है, लेकिन देश के अंदर भी दुश्मन मौजूद हैं और इनसे निपटने में कई बार पुलिस असफल रहती है। सैनिक ही इनसे बेहतर तरीके से निपट सकते हैं। इस विषय पर नाना पाटेकर ने 'प्रहार' नामक उम्दा फिल्म बनाई थी। एआर मुरुगदास की 'हॉलिडे : ए सोल्जर इज नेवर ऑफ ड्यूटी' और 'प्रहार' में सिर्फ इतनी ही समानता है कि 'हॉलिडे' में एक सैनिक वही काम करता है जो पुलिस को करना चाहिए।

प्रहार में यह बात बेहद संजीदगी से कही गई थी तो 'हॉलिडे' में इसे टिपिकल बॉलीवुड मसालों के साथ परोसा गया है। दक्षिण भारत में मुरुगदास का बतौर निर्देशक बड़ा नाम है। कई हिट फिल्म वे दे चुके हैं। हिंदी में 'गजनी' जैसी बेहतरीन कमर्शियल फिल्म उन्होंने दी है। मुरुगदास की खास बात यह है कि वे लार्जर देन लाइफ फिल्मों में भी लॉजिक का ध्यान रखते हैं जिससे उनकी फिल्म उन दर्शकों को भी अपील करती है जो फिल्म देखते समय दिमाग को सिनेमाघर में लाते हैं, मगर 'हॉलिडे' में मुरुगदास का यह गुण कई जगह छूटता नजर आता है। बावजूद उन्होंने एक ऐसी फिल्म बनाई है जो दर्शकों का मनोरंजन करती है।

हॉलिडे तमिल फिल्म 'थुपक्की' का हिंदी रिमेक है। कैप्टन विराट बक्षी (अक्षय कुमार) ट्रेन भर के अपने साथियों के साथ मुंबई में अपने घर छुट्टी पर आता है। चालीस दिन की छुट्टी में वह देश पर आए एक खतरे को अपनी बुद्धि और ताकत के बल पर टाल देता है। इस दौरान वह रोमांस भी करता है। अपने सब इंस्पेक्टर दोस्त मुकुंद देशमुख (सुमित राघवन) के साथ हंसी-मजाक भी करता है और ताकतवर आतंकवादी के खतरनाक मंसूबों को असफल करते हुए उनका नामो-निशान भी मिटा देता है।

फिल्म की कहानी अविश्वसनीय है और कई जगह सिनेमा के नाम पर जमकर छूट ली गई है। फिल्म देखते समय कई सवाल आपको परेशान कर सकते हैं। आतंकवादी मुंबई में बारह अलग-अलग सार्वजनिक जगहों पर बम विस्फोट करने वाले हैं। उन आतंकियों को सरेआम विराट और उसके साथी गोली मार देते हैं, लेकिन उन्हें कैमरे की आंख क्यों नहीं पकड़ पाती, इसका जवाब नहीं मिलता।

विराट को हर चीज बेहद सहज और सुलभ है। बम, बंदूक वह बड़ी आसानी से प्राप्त कर लेता है। खतरनाक आतंकियों को वह अपने घर में छिपाकर कर रखता है और उन्हें टार्चर कर उनसे जानकारी लेता है, हालांकि ये सीन बड़े मनोरंजक हैं। पुलिस को बेहद भोंदू दिखाया गया है। बम विस्फोट और 12 आतंकियों के मारे जाने के बाद भी सारा मामला मुकुंद के जिम्मे ही रहता है। सीनियर पुलिस ऑफिसर तो फिल्म में दिखाए ही नहीं गए हैं। मुकुंद का भोंदूपन इसलिए रखा गया है ताकि फिल्म का हीरो स्मार्ट लगे और वह रूबिक क्यूब खेलते हुए दुश्मन को ढूंढ निकालने की तरकीब ढूंढ ले।

स्क्रिप्ट की इन खामियों को निर्देशक मुरुगदास ने अपने निर्देशन के बल पर बखूबी ढंका है। खास बात यह है कि नियमित अंतराल पर वे जानदार दृश्य परोसते रहे ताकि दर्शकों का ध्यान कमियों पर न जाए। बारह आतंकी को मारने वाला सीन अविश्वसनीय जरूर है, लेकिन फिल्म का प्लस पाइंट भी है।

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हीरो के मुख्‍य विलेन तक पहुंचने वाले ट्रेक को भी मुरुगदास ने बखूबी फिल्माया है। हालांकि चूहा-बिल्ली का खेल शुरू होने में उन्होंने काफी देर कर दी क्योंकि अक्षय-सोनाक्षी की लव स्टोरी को फिट करने में बहुत सारा समय बरबाद हुआ है। ‍फिल्म का विलेन (फरहाद दारूवाला) कई जगह होशियार लगता है तो कई बार बेवकूफ। क्लाइमेक्स में हीरो और उसकी फाइटिंग निश्चित रूप से बेहतरीन और फिल्म का प्लस पाइंट है, लेकिन उसके लिए जो सिचुएशन बनाई गई है वह निहायत ही हास्यास्पद है। इस वजह से आप सीन का पूरा मजा नहीं ले पाते।

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मुरुगदास अपनी एक्शन फिल्मों में लव स्टोरी को बखूबी पिरोते हैं, लेकिन 'हॉलिडे' में वो बात नहीं बन पाई। लव स्टोरी की अच्छी शुरुआत के बाद इसे बेहद खींचा गया है जिसकी वजह से इसका सारा असर जाता रहा। कॉमेडी के नाम पर गोविंदा के कैमियो रोल का बखूबी इस्तेमाल किया गया है। मुरुगदास के निर्देशन में खास बात यह है कि कहानियों की कमजोरी के बावजूद उन्होंने फिल्म को बोझिल नहीं होने दिया।

अक्षय कुमार लंबे समय बाद फॉर्म में नजर आए और उन्होंने अपना काम बखूबी निभाया है। ऑर्मी ऑफिसर के रोल को उन्होंने अच्छी तरह से जीवंत किया है। उन्हें सह कलाकारों से ज्यादा सहयोग नहीं मिला है और फिल्म का पूरा भार उन्होंने अपने कंधों पर ढोया है। उनके स्टंट्स लाजवाब हैं।

सोनाक्षी सिन्हा के लिए ज्यादा कुछ नहीं था। उनका रोल भी ठीक से लिखा नहीं गया है। मॉडर्न लड़की दिखाने के लिए उन पर एक शॉट बॉक्सिंग रिंग में और एक शॉट में शॉर्ट पहने उन्हें दिखाया गया है, लेकिन बाद में उनका किरदार कहीं से भी आधुनिक नहीं लगता। सोनाक्षी का अभिनय भी दमदार नहीं है।

विलेन के रूप में नया चेहरा फरहाद दारूवाला लिया गया है। फरहाद का काम अच्छा है, लेकिन अक्षय के सामने वे पिद्दी लगे। अक्षय कुमार जैसे सितारे के आगे लोकप्रिय चेहरा स्क्रिप्ट की डिमांड थी। सुमित राघवन को सोनाक्षी सिन्हा से ज्यादा फुटेज मिले हैं और उनका काम औसत रहा। जाकिर हुसैन के लिए खास स्कोप नहीं था। प्रीतम का संगीत अच्छा है और दो गीत सुनने लायक हैं।

भले ही 'हॉलिडे' में खामिया हैं, बावजूद इसके यह फिल्म मनोरंजन करती है।

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बैनर : रिलायंस एंटरटेनमेंट, सनशाइन पिक्चर्स प्रा.लि., हरी ओम एंटरटेनमेंट कं.
निर्माता : विपुल शाह, अरुणा भाटिया
निर्देशक : एआर मुरुगदास
संगीत : प्रीतम चक्रवर्ती
कलाकार : अक्षय कुमार, सोनाक्षी सिन्हा, फरहाद दारूवाला, सुमित राघवन, जाकिर हुसैन, गोविंदा (मेहमान कलाकार)
सेंसर सर्टिफिकेट : यूए * 2 घंटे 50 मिनट 48 सेकंड्स
रेटिंग : 2.5/5