गुरुवार, 25 अप्रैल 2024
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Written By समय ताम्रकर

ट्रांसफॉर्मर्स- एज ऑफ एक्सटिंक्शन : मूवी रिव्यू

ट्रांसफॉर्मर्स- एज ऑफ एक्सटिंक्शन : मूवी रिव्यू -
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ट्रांसफॉर्मर्स- एज ऑफ एक्सटिंक्शन, ट्रांसफॉर्मर्स फ्रेंचाइज की मूवी है और ट्रांसफॉर्मर्स : डार्क ऑफ द मून का सीक्वल है। शिकागो में हुए आक्रमण के बाद की कहानी यह फिल्म कहती है। अफसोस की बात यह है कि ट्रांसफॉर्मर्स सीरिज की यह सबसे कमजोर फिल्म है जिसमें बहुत ज्यादा शोर है। एक छोटी सी कहानी को 165 मिनट तक खींचा गया है जिसकी वजह से स्पेशल इफेक्ट्स भी अपनी धार खो देते हैं और दर्शकों का सब्र अंत में जवाब देने लगता है।

टेक्सास में रहने वाले मैकेनिक केड येगर (मार्क वाहलबर्ग) जो मूलत: एक अविष्कारक है और नई चीजें ईजाद करता रहता है। उसके पास ज्यादा पैसे नहीं है और उसे अपने कॉलेज में पढ़ने वाली बेटी टेसा (निकोल पेल्ट्ज) की फीस भरनी है। कबाड़खाने से वह एक ट्रक खरीद लाता है ताकि उसके पार्ट्स बेचकर वह पैसे जुटा सके। उसके आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहता जब वह ट्रक ऑप्टिमस प्राइम में परिवर्तित हो जाता है।

ऑप्टिमस प्राइम की तलाश सीआईए को भी है और ट्रक की तस्वीर देख वे समझ जाते हैं कि यह केड के पास है। दूसरी ओर एक वैज्ञानिक ट्रांसफॉर्मर्स की अपने सेना में बनाने में जुटा है। केड, उसकी बेटी और बेटी का बॉयफ्रेंड अनचाहे रूप से ट्रांसफॉर्मर्स और उनको लेकर हो रहे विवादों में फंस जाते हैं। उन्हें एक लंबी लड़ाई लड़नी पड़ती है और वे किस तरह से परिस्थितियों से संघर्ष कर सफल होते हैं यह फिल्म का सार है।

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माइकल बे द्वारा निर्देशित रोबोट बनाम रोबोट की इस फिल्म में वो सब है जो ट्रांसफॉर्मस के प्रशंसक चाहते हैं, लेकिन कमजोर कहानी की बुनियाद होने के कारण यह फिल्म ज्यादा देर तक टिक नहीं पाती। अच्छाई बनाम बुराई की कहानी बेहद छोटी और सपाट है जिसे बहुत ज्यादा फैलाव दिया गया है। इस फैलाव में ढेर सारे स्पेशल इफेक्ट्‍स डाले गए हैं, लेकिन एक सीमा के बाद ये इफेक्ट्स भी अपना असर खो देते हैं।

फिल्म की शुरुआत उम्दा है और आशा जगाती है कि एक बेहतरीन फिल्म देखने को मिलेगी। पहला हाफ जबरदस्त है, लेकिन सेकंड हाफ के बाद निर्देशक और लेखक को समझ नहीं आया कि किस तरह फैलाई गई बातों को समेटा जाए और इस कारण से फिल्म पूरी तरह बिखर जाती है। दूसरे हाफ में ढेर सारे सब-प्लाट्स डाले गए हैं जिनका कोई मतलब नहीं है और बोरियत हावी हो जाती है।

क्लाइमैक्स जबरदस्त है। 'ट्रांसफॉर्मर्स' सीरिज के दर्शक विनाश का जो तांडव देखना चाहते हैं उन्हें क्लाइमेक्स में जी भर के ऐसे दृश्य देखने को मिलते हैं और ये दृश्य अद्‍भुत तरीके से शूट किए गए हैं। स्पेशल इफेक्ट्स इतने दमदार है कि दर्शक दांतों तले उंगली दबा लेते हैं, ले‍किन क्लाइमेक्स को भी इतना लंबा खींचा गया है कि मुंह से ये भी निकल पड़ता है कि अब बस करो, बहुत हो गया है।

विशालकाय रोबोट्स की इस विनाशकारी की इस लड़ाई में एक हॉट गर्ल, उसके पिता और उस लड़की के बॉयफ्रेंड के बीच रोचक संवाद सुनने को मिलते हैं जो माहौल को हल्का करने में कामयाब होते हैं।

मार्क वाहलबर्ग ने अपने किरदार को बेहद मजबूती से निभाया है जो अपनी बेटी की रक्षा के लिए हमेशा चिंतित रहता है और इसके लिए वह किसी से भी टकरा सकता है। निकोला पेल्ट्ज़, जैक रेनॉर, स्टेनलले टकी, केलसे ग्रामर ने अपने-अपने रोल बखूबी निभाए। फिल्म के स्पेशल इफेक्ट्स लाजवाब है।

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ट्रांसफॉर्मर्स- एज ऑफ एक्सटिंक्शन अपने लेखन की वजह से उम्मीदों पर खरी नहीं उतरती है, लेकिन इस सीरिज के फैंस के लिए इसमें पर्याप्त मसाले हैं।

निर्देशक : माइकल बे
कलाकार : मार्क वाहलबर्ग, निकोला पेल्ट्ज़, जैक रेनॉर, स्टेनलले टकी, केलसे ग्रामर
2 घंटे 45 मिनट * 3D
रेटिंग : 2.5/5