बुधवार, 24 अप्रैल 2024
  • Webdunia Deals
  1. मनोरंजन
  2. बॉलीवुड
  3. फिल्म समीक्षा
  4. Roy, Hindi Film, Ranbir Kapoor
Written By समय ताम्रकर

रॉय : फिल्म समीक्षा

रॉय : फिल्म समीक्षा - Roy, Hindi Film, Ranbir Kapoor
रॉय के प्रचार में रणबीर कपूर को चोर और फिल्म को थ्रिलर बताया गया है, लिहाजा दर्शक एक रोमांचक फिल्म की अपेक्षा लेकर फिल्म देखने के लिए जाता है, लेकिन फिल्म में थ्रिल की बजाय रोमांस और इमोशनल ड्रामा देखने को मिलता है। इस ड्रामे की रफ्तार इतनी सुस्त है कि आपको झपकी भी लग सकती है। फिल्म का एक किरदार कहता है कि यदि कहानी आगे नहीं बढ़ रही हो तो उसे वही खत्म कर देना चाहिए। अफसोस की बात यह है कि अपनी फिल्म के जरिये यह बात कहने वाले फिल्मकार ने खुद की बात को गंभीरता से नहीं लिया है। 
 
22 लड़कियों से रोमांस कर चुका कबीर ग्रेवाल (अर्जुन रामपाल) एक फिल्ममेकर है। मलेशिया में अपनी फिल्म की शूटिंग के दौरान उसकी मुलाकात लंदन में रहने वाली फिल्म मेकर आयशा आमिर (जैकलीन फर्नांडिस) से होती है। रॉय (रणबीर कपूर) एक मशहूर चोर है जिससे प्रेरित होकर कबीर फिल्म बनाता है। कबीर और आयशा एक-दूसरे के करीब आ जाते हैं और आयशा के जरिये कबीर अपनी कहानी आगे बढ़ाता है। रील लाइफ और रियल लाइफ के किरदार आपस में उलझ जाते हैं और मामला जटिल हो जाता है। 
विक्रमजीत सिंह ने फिल्म को लिखा और निर्देशित किया है। कंसेप्ट अच्छा है, लेकिन स्क्रीन पर इसे पेश करने में निर्देशक खुद ही कन्फ्यूज हो गए, तो दर्शकों की बात ही छोड़ दीजिए। फिल्म की शुरुआत अच्छी है जब एक मूल्यवान पेंटिंग को चुराने के लिए रॉय को कहा जाता है। उम्मीद बंधती है कि एक थ्रिलर मूवी देखने को मिलेगी, लेकिन धीरे-धीरे यह कबीर और आयशा की प्रेम कहानी में परिवर्तित हो जाती है। यह रोमांटिक ट्रेक बहुत ही ठंडा है। कबीर के प्रति आयशा का आकर्षित होने और रुठने को ठीक से पेश नहीं किया गया है। साथ ही इस प्रेम की वजह से कबीर का अपने आपको जान पाने वाला ट्रेक भी प्रभावित नहीं करता। कबीर और उसके पिता के बीच के दृश्य भी फिजूल के हैं और इनका मुख्‍य कहानी से कोई संबंध नहीं है। रॉय का पेंटिंग चुराने वाला प्रसंग बहुत ही सतही है। फिल्म के जरिये क्या कहने की कोशिश की जा रही है, समझ पाना बहुत मुश्किल है। 
 
 
विक्रमजीत सिंह ने स्क्रिप्ट की बजाय शॉट टेकिंग को ज्यादा महत्व दिया है। किरदारों की लाइफ स्टाइल को बेहतरीन तरीके से पेश किया है लेकिन कहानी को कहने का उनका तरीका बहुत ही उलझा हुआ है। उन्होंने संवादों के जरिये बात कहने की कोशिश ज्यादा की है। कुछ जगह किरदारों की बातचीत अच्छी लगती है, लेकिन कुछ समय बाद यही चीज बोरियत पैदा करती है। फिल्म का उन्होंने जो मूड रखा है उसमें गानों की बिलकुल जगह नहीं बनती। यही वजह है कि हिट गीतों का फिल्मांकन इतना खराब है कि देखने में मजा ही नहीं आता। 

रॉय का ट्रेलर देखें 
 
प्रमुख कलाकारों का अभिनय के मामले में गरीब होना भी फिल्म की कमजोर कड़ी है। अर्जुन रामपाल अपने लुक से प्रभावित करते हैं, एक्टिंग से नहीं। हैट और सिगरेट से उड़ते धुएं के जरिये उन्होंने अपने चेहरे को उन्होंने छिपाने की कोशिश की है। जैकलीन फर्नांडिस एक भूमिका तो ठीक से कर नहीं पाती हैं, ऐसे में दोहरी भूमिका उन्हें सौंपना उनके नाजुक कंधों पर बहुत भारी भार रखने के समान है। मेकअप और हेअर स्टाइल से अंतर पैदा करने की कोशिश की गई है, वरना दोनों किरदारों को जैकलीन ने एक ही तरीके से निभाया है। रणबीर कपूर का रोल छोटा है जिसे पूरी फिल्म में फैलाया गया है। विक्रमजीत सिंह उनके दोस्त हैं शायद इसीलिए रणबीर ने यह फिल्म की है। इसका दु:ख पूरी फिल्म में उनके चेहरे पर नजर आता है। पूरी फिल्म में बोरिंग एक्सप्रेशन लिए वे घूमते रहे।  
 
अंकित तिवारी, अमाल मलिक, मीत ब्रदर्स अंजान का संगीत मधुर है। हिम्मन धमीजा की सिनेमाटोग्राफी कमाल की है। कुछ संवाद भी अच्‍छे हैं, लेकिन एक फिल्म को देखने के लिए ये बातें काफी नहीं हैं।
 
बैनर : टी-सीरिज सुपर कैसेट्स इंडस्ट्री लि., फ्रीवे पिक्चर्स
निर्माता : दिव्या खोसला कुमार, भूषण कुमार, किशन कुमार 
निर्देशक : विक्रमजीत सिंह
संगीत : अंकित तिवारी, मीत ब्रदर्स, अमाल मलिक 
कलाकार : रणबीर कपूर, जैकलीन फर्नांडिज, अर्जुन रामपाल, अनुपम खेर
सेंसर सर्टिफिकेट : यूए * 2 घंटे 27 मिनट 
रेटिंग : 1.5/5