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Written By समय ताम्रकर

रामेश्वरी : एक दुल्हन जो पिया मन भायी

रामेश्वरी : एक दुल्हन जो पिया मन भायी -
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वैसे तो सभी दुल्हन सुंदर होती हैं। आकर्षक और मनमोहक होती हैं। लेकिन दुल्हन का दुल्हन होना तब सार्थक होता है, जब वह अपने पिया के मन यानी उसके दिल-दिमाग को भा जाए। ऐसी ही दुल्हन आई थी 1977 में। हिन्दी सिनेमा के परदे पर। पेश किया था राजश्री प्रोडक्शन ने। फिल्म का नाम था - दुल्हन वही जो पिया मन भाए। और दुल्हन बनी थीं आंध्र प्रदेश के काकीनाड़ा की साँवली-सुंदर-सलोनी तल्लुरी रामेश्वरी। बाद में सिर्फ रामेश्वरी के नाम से वे दर्शकों के बीच लोकप्रिय हो गईं। दुल्हन वही जो पिया मन भाये ने देश के सिनेमाघरों में सिल्वर और गोल्डन जुबिली मनाकर रातों-रात रामेश्वरी को स्टार बना दिया था।

जया की जगह
उस दौर में साँवले रंग की लड़की को हीरोइन के काबिल नहीं माना जाता था। गोरा रंग पहली शर्त होती थी। सांवली लड़की को हीरोइन की सहेली के रोल मिला करते थे। जया बच्चन ने रंग के बदले नहीं बल्कि अपनी प्रतिभा के बल पर सफलता पाई थी।

रामेश्वरी ने जब करियर आरंभ किया, तब जया बच्चन शादी कर परिवार में व्यस्त हो गई थी। रामेश्वरी के उदय के कारण यह माना गया कि फिल्म इंडस्ट्री को नई जया मिल गई है। रामेश्वरी ने एकदम सादगी अपनाई। ठीक जया भादुड़ी स्टाइल में उनका स्क्रीन प्रजेंस इतना प्रभावी हो गया था कि दर्शक टकटकी लगाकर देखा करता था।

इसके पहले कि रामेश्वरी उनसे की गई अपेक्षाओं पर खरा उतर पातीं, ना जाने उन्हें किसकी नजर लग गई। फिल्म सुनयना की शूटिंग के दौरान उनकी आँख में चोट लग गई। इससे उनकी एक आँख छोटी हो गई जो रामेश्वरी के करियर में बहुत बड़ी रूकावट बन गई। दुल्हन वही जो पिया मन भाये जैसी फिल्में उन्हें दोबारा नहीं मिल पाई। मजबूर होकर उन्हें सेकण्ड लीड वाले रोल करना पड़े।

हारे हुए हीरो रहे जीरो
रामेश्वरी के फिल्म करियर की एक ट्रेजेडी यह रही कि उन्हें अन्य दक्षिण भारतीय हीरोइन की तरह बम्बइया नामी-गिरामी हीरो नहीं मिल पाए। उस दौर में हर हीरो ग्लैमरस हीरोइन चाहता था और रामेश्वरी के पास सादगी थी। जबकि रामेश्वरी के पहले या बाद में दक्षिण भारत से आई वहीदा रहमान, हेमा मालिनी, जया प्रदा, श्रीदेवी को स्टार वैल्यू के हीरो मिलने से उनकी चमक-दमक दो गुनी हो गई थी।

रामेश्वरी को प्रेमकिशन (दुल्हन वही जो पिया मन भाये), राज किरण (मान-अभिमान, साजन मेरे मैं साजन की, वक्त वक्त की बात) और मुकेश खन्ना (मुझे कसम है) जैसे नायक मिले, जो बॉलीवुड फिल्मों में तीसरी पंक्ति के कलाकार माने जाते हैं।

सुनयना फिल्म में नसीरुद्दीन शाह जैसे नायक का साथ तो मिला, लेकिन नसीर आर्ट फिल्म के हीरो माने जाते थे और कमर्शियल फिल्मों के लिए उन्हें उपयुक्त नहीं माना जाता था। फिल्म अग्निपरीक्षा में अमोल पालेकर, शारदा और आशा फिल्म में जीतेन्द्र, कालका में शत्रुघ्न सिन्हा का साथ मिला,लेकिन रामेश्वरी लीड रोल में नहीं थी।

वक्त वक्त की बात में राकेश रोशन भी उनके साथ थे। उनकी भी संघर्षरत अभिनेता से ज्यादा हैसियत नहीं थी। मेरा रक्षक तथा आदत से मजबूर फिल्मों में मिठुन चक्रवर्ती सहनायक थे, लेकिन इनमें रामेश्वरी के अलावा अन्य हीरोइन भी थी। उस दौर के टॉप एक्टर्स अमिताभ, धर्मेन्द्र, विनोद खन्ना, ऋषि कपूर का साथ रामेश्वरी को कभी नहीं मिल पाया।

यही हाल फिल्म डायरेक्टर्स का रहा। ए-श्रेणी के निर्देशकों का स्पर्श नही मिलने से भी रामेश्वरी हिन्दी सिनेमा में अपना ऊँचा मकाम नहीं बना सकी। हीरेन नाग, जे. ओमप्रकाश और लेख टंडन के साथ एक या दो फिल्में करने से बात नहीं बन पाई।

फिर दक्षिण की ओर
अपने दशक के हिन्दी फिल्म सफर में रामेश्वरी को यह समझ आ गई थी कि वे उत्तर भारतीय सिनेमा में ज्यादा दिनों तक चल नहीं पाएगी और सुपरहिट सक्सेस तो उन्हें मिलना भी नहीं है। इसलिए उन्होंने तेलुगु फिल्मों में अपना अभिनय जारी रखा।

तेलुगु फिल्मों के प्रतिष्ठित फिल्मकार के.विश्वनाथ की फिल्म सीतामालक्ष्मी रामेश्वरी के करियर की क्लासिक फिल्म मानी जाती है। फिल्मों के ऑफर्स कम हो गए तो रामेश्वरी ने छोटे परदे की ओर भी कदम बढ़ाए। मितवा फूल के, जब लव हुआ, बाबुल का आँगन छूटे ना जैसे धारावाहिकों में उन्होंने काम किया।

मयूरपंखी तारिका
रामेश्वरी का जीवन-वृत्त बहुआयामी रहा है। पुणे फिल्म एंड टीवी इंस्टीट्यूट से 1975 में उसने अभिनय में स्नातक उपाधि प्राप्त की है। उन्होंने कई भाषाओं की फिल्मों में काम किया है। इंस्टीट्यूट के सहपाठी और पंजाबी फिल्मों के अभिनेता, निर्माता दीपक सेठ से शादी की है। दोनों के दो बेटे हैं- भास्कर प्रताप और सूर्य प्रेम।

अपने पति के साथ मिलकर 1988 में रामेश्वरी ने हिंदी फिल्म हम फरिश्ते नहीं का निर्माण कर अभिनय भी किया है। शेक्सपीयर के नाटक द कॉमेडी ऑफ एरर्स पर 2007 में पंजाबी फिल्म भी बनाई। इन दिनों कभी-कभी रामेश्वरी फिल्मों में दिख जाती है, जैसे बंटी और बबली (2005) और फाल्तू (2011) में।

प्रमुख फिल्में :
दुल्हन वहीं जो पिया मन भाये (1977), मेरा रक्षक (1978), सुनयना (1979), आशा (1980), मान अभिमान (1980), शारदा (1981), अग्नि परीक्षा (1981), आदत से मजबूर (1981), कालका (1983), मान मर्यादा (1984)