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Written By WD

मनोज कुमार : देशभक्ति में डूबी फिल्मों के सरताज

मनोज कुमार : देशभक्ति में डूबी फिल्मों के सरताज - Manoj Kumar

बॉलीवुड में जब भी देश प्रेम की बात की जाती है तो प्रसिद्ध अभिनेता, निर्माता व निर्देशक मनोज कुमार को जरूर याद किया जाता है। अपने देश के लिए मर मिटने की भावना को फिल्मों में मूर्त रूप प्रदान करने के लिए मनोज कुमार का भारतीय सिनेमा जगत में प्रमुख स्थान रहा है।

 

1967 में बनी फिल्म ‘उपकार’ से देशप्रेम पर बनी फिल्मों की सफल शुरुआत के पश्चात, उन्होंने देशभक्ति की खुशबू में डूबी पूरब और पश्चिम, शोर व क्रांति जैसी कई हिट फिल्में दीं। मनोज कुमार ने अपनी फिल्मों के जरिए लोगों को देशभक्ति की भावना का गहराई से एहसास कराया, जिसने उन्हें हर दिल अजीज फिल्मकार बना दिया। इसी देशप्रेम की बदौलत उनके चाहने वाले उन्हें 'मिस्टर भारत' कहकर पुकारा करते थे। 


यूं तो मनोज कुमार की हर फिल्म यादगार रही परंतु उन्हें हरियाली और रास्ता, वो कौन थी?, हिमालय की गोद में, दो बदन, उपकार, पत्थर के सनम, नीलकमल, पूरब और पश्चिम, रोटी कपड़ा और मकान और क्रांति जैसी फिल्मों के लिए जाना जाता है।

फिल्म जगत के इस प्रसिद्ध फिल्मकार मनोज कुमार (वास्तविक नाम : हरिकिशन गिरि गोस्वामी) का जन्म 24 जुलाई 1937 को अबोटाबाद, पाकिस्तान में हुआ। दिल्ली विश्वविद्यालय के हिंदू कॉलेज से स्नातक करने के बाद मनोज ने फिल्म इंडस्ट्री में प्रवेश करने का निर्णय लिया। अपनी जवानी के दिनों में वे बॉलीवुड सुपरस्टार दिलीप कुमार से इतने प्रभावित थे कि शबनम (1949) फिल्म में दिलीप कुमार के नाम मनोज कुमार को हमेशा के लिए अपना लिया।

निर्देशक लेखराज भाकरी की 1955 में बनी फिल्म 'फैशन' से बॉलीवुड में अपनी शुरुआत करने वाले मनोज कुमार के करियर को इस फिल्म ने कोई खास फायदा नहीं पहुंचाया था। करियर की इस खराब शुरुआत के बाद वह दौर भी आया जब उन्हें 1960 में बनी फिल्म 'कांच की गुड़िया' में अभिनेत्री सईदा खान के अपोजिट पहला लीड रोल मिला। इस फिल्म से दर्शकों के बीच मिली पहचान का मनोज कुमार ने पूरा फायदा उठाया और फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा।

इसके बाद पिया मिलन की आस, रेशमी रुमाल, हरियारी और रास्ता, वो कौन थी और हिमालय की गोद में जैसी हिट फिल्मों की लाइन लगा दी। सस्पेंस थ्रिलर फिल्म 'वो कौन थी' में मनोज कुमार ने साधना के साथ काम किया था। इस फिल्म को, 'लग जा गले' और 'नैना बरसे' जैसे सदाबहार गीतों के लिए आज भी याद किया जाता है।

मनोज कुमार शहीद-ए-आजम भगत सिंह से बेहद प्रभावित हैं और इसी भावना ने उन्हें फिल्म 'शहीद' में देश के इस अमर सपूत को जीवंत करने की प्रेरणा दी थी। यह वही फिल्म थी जिसने इस महान अभिनेता को सच्चे देशभक्त की छवि प्रदान की।

फिल्म में मनोज की परफार्मेंस से खुश हुए प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने उन्हें फिल्म उपकार बनाने की प्रेरणा दी, जिसे बॉलीवुड में आज भी देशप्रेम पर बनी खूबसूरत फिल्मों में गिना जाता है। इस फिल्म ने उन्हें फिल्मफेयर का सर्वश्रेष्ठ निर्देशक का पुरस्कार दिलाने के साथ ही 'मेरे देश की धरती' गाने से नई पहचान भी दिलाई।

इसके बाद तो जैसे मनोज कुमार के दिल में बरसों से हिलौरें ले रहा देशप्रेम जाग उठा और जन्म हुआ सुपरहिट फिल्म ‘पूरब और पश्चिम’ का। इस फिल्म में उन्होंने देश प्रेम को नए रंग व रूप में प्रस्तुत किया। उन्होंने ना केवल पूर्व अर्थात भारत व पश्चिम अर्थात पाश्चात्य देशों के मूल्यों को तुलनात्मक रूप से प्रस्तुत किया अपितु, भारतीय सभ्यता व संस्कृति का सुंदर रूप में फिल्मांकन और प्रस्तुतिकरण भी किया। अपने ही देश को भूल कर विदेशी सभ्यता व संस्कृति के रंग में रंगे तथा स्वदेश को तिरस्कार की भावना से देखने वाले अप्रवासी भारतीयों की कहानी को, मनोज कुमार ने अपनी फिल्म के माध्यम से प्रस्तुत कर, एक सन्देश देने का प्रयास किया, जिसे दर्शकों के हर वर्ग ने बेहद सराहा।

1970 के मध्य में मनोज की एक के बाद एक तीन हिट फिल्में आईं। जीनत अमान के साथ सामाजिक मुद्दों पर बनी ‘रोटी कपड़ा और मकान’ (1974) के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ निर्देशक का दूसरा फिल्मफेयर अवॉर्ड दिया गया। इसी दौरान उन्होंने हेमामालिनी के साथ ‘संन्यासी’ (1975) और ‘दस नंबरी’ (1976) रिलीज हुई जो बॉक्स ऑफिस पर सफल रही।

मनोज कुमार ने अब तक बनाई गई सभी फिल्मों के अनुभव का उपयोग करके अपनी अगली फिल्म 'क्रांति' बनाई, जिसने उनके करियर को तो चरम पर पहुंचाया ही साथ ही साथ खराब दौर से गुजर रहे दिलीप कुमार की भी शानदार वापसी करवाई।

19वीं सदी के भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की कहानी बयान करती फिल्म क्रांति की सफलता का अंदाजा, इस बात से लगाया जा सकता है कि उन दिनों में 1.5 करोड़ की लागत से बनी इस फिल्म ने, बॉक्स ऑफिस पर 10 करोड़ से भी ज्यादा का बिजनेस किया था।

क्रांति के साथ ही अपनी बनाई गई फिल्मों की अभूतपूर्व सफलता का स्वाद चख चुके मनोज कुमार का खराब दौर भी शुरू हो गया था। उनकी 1989 में बनी फिल्म ‘क्लर्क’ फ्लॉप रही और ‘संतोष’, ‘कलयुग की रामायण’ जैसी फिल्मों से उनका करियर ग्राफ नीचे की ओर आता रहा।

1999 में अपने बेटे कुनाल गोस्वामी को लेकर 'जय हिंद' बनाई, जो सुपरफ्लॉप रही। लेकिन यही साल मनोज के लिए खुशी भी लेकर आया, जब उन्हें बॉलीवुड को दिए गए अपने उल्लेखनीय योगदान के लिए फिल्मफेयर के लाइफटाइम अचीवमेंट अवॉर्ड से नवाजा गया। अपने उत्कृष्ट फिल्मी करियर के लिए कई राज्यस्तरीय व राष्ट्रीय अवॉर्ड जीत चुके मनोज कुमार को 1992 में, भारत सरकार द्वारा पद्मश्री से सम्मानित किया गया था।

कुछ ही दिनों पहले एक राष्ट्रीय अखबार को दिए गए इंटरव्यू के दौरान वर्तमान समय में देशभक्ति पर बनी फिल्मों की सार्थकता के सवाल पर उन्होंने कहा कि, आज देशप्रेम पर बनी फिल्मों की सफलता फिल्म के आइडिया पर निर्भर करती है। फिल्मों को लेकर हमारे दर्शकों की पसंद विभिन्न पकवानों से सजी खाने की थाली की तरह है, जिन्हें फिल्मों में भी वैरायटी यानि अलग-अलग तरह की चीजें पसंद आती हैं। जिस फिल्म में यह वैरायटी है वो सफल हो जाती है, भले ही वह देशभक्ति पर बनी फिल्म ही क्यों ना हो।

इंडस्ट्री में 50 साल के अपने सफर पर मनोज कुमार ने संतोष जाहिर किया। उन्होंने कहा कि इन वर्षों में मैंने 40 से ज्यादा फिल्मों में काम किया जबकि दूसरों ने सैकड़ों फिल्में की। मैं बहुत विशेष फिल्में किया करता था।

मनोज कुमार ने अपनी फिल्मों के माध्यम से भारतीयता की खोज की। अपनी भावनात्मक फिल्मों की बदौलत उन्होंने मुनाफे से ज्यादा नाम कमाया। यही वजह है कि फिल्म जगत में मनोज कुमार को आज भी उनकी देशभक्ति से परिपूर्ण फिल्मों के लिए जाना जाता है।

मनोज कुमार को वर्ष दादा साहेब फाल्के पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया।