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कादर खान : हिन्दी फिल्म इंडस्ट्री की दमदार शख़्सियत

कादर खान : हिन्दी फिल्म इंडस्ट्री की दमदार शख़्सियत - Kader Khan, Kadar Khan, Hindi Film
- रोशन जोशी
 
‘अब्दुल रहमान खान’ और ‘इक़बाल बेग़म’ अफगानिस्तान में काबुल के करीब पहाड़ी इलाके पर एक गरीब और जाहिलों की बस्ती में अपना गुजर बसर किया करते थे। आठ बरस की उम्र में उनका बड़ा बेटा ‘शम्स उल रहमान’ किसी बीमारी से चल बसा। उसके बाद फिर दो बेटे ‘हबीब उल रहमान’ और ‘फज़ल उल रहमान’ भी आठ बरस के होते हुए खुदा को प्यारे हो गए। 
 
इक़बाल बेग़म ने अपने शौहर से कहा -"इस मुल्क की आबो हवा मेरे बच्चों को रास नहीं आती, क्यों ना हम कहीं और चलें?" अपने चौथे बेटे के जन्म पर उसकी सलामती और लम्बी उम्र की दुआ मांगते हुए दोनों मियाँ बीवी फौजियों की गाड़ी में बैठकर, कुछ रास्ता पैदल चल, कभी बस में कभी रेलगाड़ी में भटकते भटकते पाकिस्तान होते हुए बम्बई (मुंबई) आ पहुंचे।
 
मुंबई आकर यहाँ के कमाठीपुरा इलाके में रहने लगे, जहाँ शराब, चरस, गांजा, अफ़ीम, कोकीन, जुआं, पत्ते, सट्टा के साथ साथ दिन दहाड़े हत्या का भी माहौल था। वालिद मुंबई का बोझ बर्दाश्त नहीं कर सके। कुछ दिनों बाद दोनों मियाँ बीवी का निबाह न हो सका और दोनों तलाक़ लेकर अलग हो गए। 
 
इक़बाल बेगम के वालिद आये और उन्होंने कहा - "एक नौजवान, खूबसूरत, क़द्दावर, गरीब और पठान बेटी का तन्हा बम्बई में यूँ ऐसे रहना ठीक नहीं है।" उन्होंने अपनी बेटी की दूसरी शादी एक शख़्स से करवा दी जो पेशे से कारपेंटर थे। नन्हा बेटा मुंसिपल कार्पोरेशन के स्कूल में जाने लगा। 
 
घर में दुःख, फ़ाक़ा, तंगहाली का आलम इस कदर परेशान किए रहता था कि एक दिन सौतेले पिता ने बच्चे से कहा - "जा तेरे बाप से दो रुपये लेकर आ, तब खाना मिलेगा।" बच्चा पैदल पैदल जाकर अपने पिता से दो रुपये लेकर आया और तब घर में आटा, चावल, राशन आदि लाया जा सका। 
 
बच्चा परेशान रहने लगा और उसने अपनी माँ की आर्थिक मदद करने के लिए कुछ कमा कर लाने की सोची। पांचवी कक्षा में पढ़ रहे उस बच्चे को मोहल्ले के दूसरे बच्चों ने एक फैक्ट्री में मजदूरी करने जाने के लिए मना लिया। अपना बस्ता घर के एक कोने में पटका। 
स्कूल जाने के बजाये सुबह फैक्ट्री में मजदूरी के लिए जाने के लिए अपना कदम घर से बाहर निकाला ही था। अचानक पीछे से कंधे पर माँ ने हाथ रखा। माँ को भनक लग चुकी थी। इकबाल बेग़म ने अपने बेटे से सिर्फ इतना कहा... "तू कमाने जाना चाहता है, जा, मैं तुझे रोकूंगी नहीं, पर सोच बेटा इस तरह तू कितना कमायेगा? दो रुपये? तीन रुपये? पर याद रखना ऐसे इस तरह हमेशा तेरी औकात तीन रूपये की ही रहेगी। घर की तंगहाली और भूख से निपटने के लिए मैं मेहनत मजदूरी करुँगी। तू बस एक ही काम कर... तू पढ़। तू बस पढ़।"
 
बच्चे को लगा जैसे किसी ने गरम पिघला हुआ सीसा उसके बदन पर उंडेल दिया हो। वो भागता हुआ अंदर घर में गया और अपनी किताबें बस्ता उठा कर स्कूल की तरफ दौड़ता हुआ गया। जिंदगी भर अपनी माँ के शब्द "तू पढ़, तू बस पढ़' उसके कानों में ऐसे गूंजते गए कि उस बच्चे ने फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा। पाठ्यक्रम की किताबों के अलावा दूसरा भी तमाम साहित्य पढ़ डाला। 
 
पढ़ने वालों के लिए जगह की कमी कहीं नहीं है। शिवाजी पार्क, मरीन ड्राइव, आजाद मैदान के अलावा ये बच्चा कभी कब्रिस्तान में भी जाकर किताब खोल कर बैठ जाता। पढ़ना, पढ़ना और पढ़ते ही रहना दिमाग पर इस कदर हावी रहा कि किताब पढ़ते-पढ़ते वो बच्चा इंसानों के चेहरे पढ़ना सीख गया। बहुत कम लोग जानते हैं कि कादर खान दूर से देखकर सामने वाले व्यक्ति के होठों को हिलते देखकर भी समझ जाया करते थे कि वो उनके बारे में क्या बात कर रहा है।
 
इस्माइल युसूफ कॉलेज (बम्बई यूनिवर्सिटी) से ग्रेजुएशन करने के बाद 'मास्टर्स डिप्लोमा इन इंजीनियरिंग'(MIE) किया। पढ़ने का अगला स्टेप पढ़ाना है। अपने स्कूल और कॉलेज टाइम पर भी ट्यूशन्स लिया करते थे। एम. एच. साबू सिद्दीकी कॉलेज ऑफ़ इंजीनियरिंग, भायखला(मुंबई) में सिविल इंजीनियरिंग के प्रोफेसर की नौकरी करने लगे। ग़ुरबत और तंगहाली में अपना पूरा बचपन बिता चुके कादर खान के लिए तीन सौ रूपये महीना पगार उस ज़माने में बहुत थी।
 
स्कूल कॉलेज के ज़माने में नाटकों का मंचन करने का शौक प्रोफ़ेसर बनने के बाद भी कादर खान साहब को बना रहा। अदाकारी और लिखने का फ़न छुपता नहीं। एक नाटक के मंचन में अभिनय, लेखन और निर्देशन के तीनो पुरस्कार हासिल किए। वहाँ निर्णायक मंडली में कामिनी कौशल और निर्देशक नरेंद्र बेदी भी थे। उन्होंने कहा - "तुम इतने पढ़े लिखे हो, अदाकारी के साथ साथ लिखने का फ़न भी जानते हो, फिल्मों में क्यों नहीं आते?" एक दिन दिलीप कुमार साहब के कानों तक भी बात पहुंची। फिल्म 'सगीना' और 'बैराग' में छोटी भूमिकाएं मिली।
 
निर्माता रमेश बहल और निर्देशक नरेंद्र बेदी की फिल्म 'जवानी दीवानी' के बाद निर्माता रवि मल्होत्रा और निर्देशक रवि टंडन(अभिनेत्री रवीना टंडन के पिता) की फिल्म 'खेल खेल में' के डायलॉग लिखे। फिल्म इंडस्ट्री में धीरे धीरे नाम होने लगा। फिर निर्माता आइ. ए. नाडियाडवाला और निर्देशक नरेंद्र बेदी की फिल्म 'रफू चक्कर' आई। तीनों फिल्में सुपर हिट रही। फिल्मों के प्रस्ताव पर प्रस्ताव आने लगे। 
 
सिलसिला चल निकला। मनमोहन देसाई और प्रकाश मेहरा की अमिताभ बच्चन के साथ वाली ढेरों फिल्मों में कादर खान ने ऐसे ऐसे सुपर डुपर हिट डायलॉग लिखे जिनको सुनकर सिनेमा हाल में दर्शक तालियों की गड़गड़ाहट के साथ सिक्के उछाला करते थे, सीटियाँ बजाया करते थे। आज भी अमिताभ बच्चन के प्रशंसकों की जुबान पर वो डायलॉग जस के तस है।
 
संवाद लेखक (डायलॉग रायटर) के बतौर उन्होंने करीब ढाई सौ फिल्में लिखी, जिनमे से प्रमुख हैं- सुहाग, मुकद्दर का सिकंदर, अमर अकबर एंथोनी, शराबी, कुली, सत्ते पे सत्ता, देश प्रेमी, गंगा जमुना सरस्वती, परवरिश, मिस्टर नटवरलाल, खून पसीना, दो और दो पांच, इंक़लाब, गिरफ्तार, हम, अग्निपथ, हिम्मतवाला, कुली नंबर 1, मैं खिलाड़ी तू अनाड़ी, कानून अपना अपना, खून भरी मांग, कर्मा, सल्तनत, सरफ़रोश, जस्टिस चौधरी, धरम वीर। अग्निपथ और नसीब फिल्मों का स्क्रीन प्ले भी लिखा।
 
उन्हें खलनायक और कॉमेडियन की भूमिकाओं में देखते हुए कितनों का बचपन और जवानी बीती है। जीतेन्द्र, राजेश खन्ना, मिथुन चक्रवर्ती, श्रीदेवी जयाप्रदा, अरुणा ईरानी, असरानी और उनके खासमखास शक्ति कपूर के साथ वाली फिल्मों ने तो कामयाबी के रिकॉर्ड तोड़ डाले। गोविंदा अभिनीत फिल्मों का एक के बाद एक लगातार हिट होते चले जाना कादर खान के साथ का ही कमाल था।
मनमोहन देसाई से कादर खान की मजेदार बातचीत... अगले पेज पर 

(दिग्गज फिल्मकार मनमोहन देसाई से हुई मुलाक़ात को कादर खान आज भी ज्यों का त्यों सुनाते हैं।)
मनमोहन देसाई - "मेरे को मालूम है कि तुम मियाँ भाई लोगों को लिखने को आता नहीं है। तुम या तो शायरी लिखते हो या मुहावरे वगैरह। मुझे शेर ओ शायरी नहीं चाहिए। डॉयलॉग चाहिए। क्लैप ट्रैप डायलॉग चाहिए। तालियां बजना चाहिए। लिख सकता है? बकवास लिख के लाएगा तो मैं उसको फाड़ के वो उधर नाली में फेंक दूंगा। "
कादर खान - "अगर अच्छा लिख कर लाया तो?"
मनमोहन देसाई - "तो फिर मैं तुझे सिर पे बिठा के नाचूँगा, जैसे लोग गणपति को लेकर नाचते हैं।"
(मनमोहन देसाई ने सबसे पहले अपनी फिल्म 'रोटी' (राजेश खन्ना, मुमताज़) का क्लाइमैक्स लिखने का काम दिया। कादर खान ने उसे चैलेंज के बतौर लिया और रात भर बैठ कर डायलॉग लिख डाले। दूसरे दिन अपना लेम्ब्रेटा स्कूटर लेकर मनमोहन देसाई के घर खेतवाड़ी इलाके(चर्नी रोड स्टेशन के पास) में पहुंचे। वो मोहल्ले के बच्चों के साथ क्रिकेट खेल रहे थे, उन्होंने कादर खान की तरफ देखा और कुछ होठों से बुदबुदाये।)
कादर खान - "आपने मुझे गाली दी।"
मनमोहन देसाई – “नहीं, मैंने गाली नहीं दी।“
कादर खान – “सर, मैं बुदबुदाते हुए होठों को दूर से पढ़ लेने का हुनर जानता हूँ।“
(मनमोहन देसाई कादर खान की इस काबिलियत के इस कदर कायल हुए कि बरसों बाद उन्होंने फिल्म ‘नसीब’ में इस चीज का भी उपयोग किया, याद कीजिये जब हीरोइन दूरबीन की मदद से बहुत दूर विलेन के होठों को हिलता देख सारे डायलॉग समझ जाती है और बोलकर बता देती है।)
रोटी का क्लाइमैक्स पढ़कर मनमोहन देसाई इतने खुश हो गए कि उसी वक़्त हाथ का सोने का ब्रेसलेट निकाल कर दे दिया। पच्चीस हजार कैश और एक टेलीविजन सेट भी उठाकर दे दिया। कादर खान आज भी उनको बहुत याद करते हुए कहते हैं, “मनमोहन देसाई मुझे डांटकर, चिल्लाकर, झिंझोड़कर और गाली देकर काम करवा लिया करते थे।“)
मनमोहन देसाई - "कितने पैसे लेता है लिखने के?"
कादर खान (थोड़े सकुचाते हुए) - "पच्चीस हजार"
(विशुद्ध व्यावसायिक बुद्धि वाले गुजराती भाई मनमोहन देसाई चाहते तो तुरंत हाँ कह देते, मगर…..)
मनमोहन देसाई - "रायटर है या हज्जाम? मैं तेरे को एक लाख रुपये देगा। मस्त डायलॉग लिखना प्यारे।"
कादर खान के बारे में कुछ खास बातें... अगले पेज पर 

• अमिताभ बच्चन के साथ 'ज़ाहिल' फ़िल्म बनाने की इच्छा दिल की दिल में ही रह गई।
• फिल्म कुली के बाद शूटिंग शुरू करने वाले थे। अमिताभ बच्चन के एक्सीडेंट के बाद फिल्म अटक गई। फिर कादर खान अपनी दूसरी फिल्मों में खुद व्यस्त हो गए। बच्चन साहब राजनीति में चले गए और फिर बात आई गई हो गई। 'जाहिल' ना बना पाने का उन्हें हमेशा अफ़सोस रहा। बच्चन साहब एक जमाने में बहुत अच्छे दोस्त हुआ करते थे, इसलिए कभी कभार कुछ मौको पर कादर खान नाराजगी भी जाहिर कर चुके हैं। दोस्तों में ऐसा होता रहता है। बहरहाल कादर खान साहब की एक फिल्म जल्दी ही आने वाली है जिसका खुलासा बिग बी ने अभी कुछ दिनों पहले ही अपने फेसबुक और ट्विटर अकाउंट के जरिये किया है।
• दिन भर फिल्मों में शूटिंग, शाम को लिखना और पढ़ना एक साथ जारी रहता था। साथ साथ उस्मानिया यूनिवर्सिटी हैदराबाद से अरबी भाषा में एम. ए. भी कर लिया तो यार लोग हैरान रह गए, "ये आदमी सोता कब है?"
• अमिताभ बच्चन की तारीफ करते हुए कादर ख़ान कहते हैं, वो संपूर्ण कलाकार हैं, अल्लाह ने उनको अच्छी आवाज़, अच्छी जबान, अच्छी ऊंचाई और बोलती आंखों से नवाजा है।
• कादर खान अपने महत्वपूर्ण और अच्छे डायलॉग लिखकर ही नहीं बल्कि अपनी आवाज में रिकॉर्ड कर के हीरो को दिया करते थे। ताकि बोलते समय कामा, पूर्ण विराम, आवाज के उतार और चढ़ाव आदि का भी पूरा पूरा ध्यान रखा जाए। जिससे स्क्रीन पर परफॉर्मेंस वैसा ही उभर कर आता जैसा लिखते समय कादर खान साहब के जेहन में रहा हो।
• जन्म: 22 अक्तूबर 1935 या 1936। कुछ जगह 12 नवम्बर 1937 का उल्लेख भी है। 
* व्यक्तिगत जीवन में पत्नी अज़रा खान और बेटे सरफ़राज़ खान, शाहनवाज़ खान, क्यूडस खान हैं।